Sunday, 25 May 2014

जीवन दर्शन



कौन है कहाँ  , कहाँ है कौन
कौन है बोलता  , कौन है मौन ।
अथाह ज्ञान की सीमित कथा
सीमित ज्ञान की अधूरी व्यथा ।
खोखले ज्ञान की अज्ञानता में डूब
पीता रहा अज्ञानता का ज्ञान ,
जानकर भी हम अपने आत्म
से क्यों रह गए अनजान ?
श्रुति की बातें , गीता का भी सार
करूणा का प्रदर्शन , जीव मात्र से  प्यार ।
निष्काम कर्म  , फल बिना  विचार
ज्ञान – पथ  कंटीला , भक्ति-योग ही आधार ।
जीवन तो मृत्यु - पथ का द्वार
मृत्यु जीवन की निश्चित हार ।
कौन है अपना , कौन पराया
ये सब माया का संसार ।  
ये काया भी असत्य , निरर्थक
आत्मा बिना यह अचल निराधार ।  
दुःख – सुख तो मन का भ्रम है
हास - क्रंदन नहीं कोई व्यापार ।
क्षणिक तुष्टि  में क्यों हों उल्लसित
ईश्वर भज जो अनंत आनंद का पारावार ।
निर्बल-दुखिया की सुध ले ले रे बंदे ,
जो  कृष्ण-ईशा-खुदा का रूप साकार ।



अमर नाथ ठाकुर , 24 मई , 2014 ,  कोलकाता । 


मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...