कौन है कहाँ , कहाँ है कौन
कौन है बोलता , कौन है मौन ।
अथाह ज्ञान की सीमित कथा
सीमित ज्ञान की अधूरी व्यथा ।
खोखले ज्ञान की अज्ञानता में
डूब
पीता रहा अज्ञानता का ज्ञान ,
जानकर भी हम अपने आत्म
से क्यों रह गए अनजान ?
श्रुति की बातें , गीता का भी सार
करूणा का प्रदर्शन , जीव मात्र
से प्यार ।
निष्काम कर्म , फल बिना विचार
ज्ञान – पथ कंटीला , भक्ति-योग ही आधार ।
जीवन तो मृत्यु - पथ का द्वार
मृत्यु जीवन की निश्चित हार ।
कौन है अपना , कौन पराया
ये सब माया का संसार ।
ये काया भी असत्य , निरर्थक
आत्मा बिना यह अचल निराधार ।
दुःख – सुख तो मन का भ्रम है
हास - क्रंदन नहीं कोई
व्यापार ।
क्षणिक तुष्टि में क्यों हों उल्लसित
ईश्वर भज जो अनंत आनंद का पारावार ।
निर्बल-दुखिया की सुध ले ले रे
बंदे ,
जो कृष्ण-ईशा-खुदा का रूप साकार ।
अमर नाथ ठाकुर , 24 मई , 2014 , कोलकाता ।