सूखे छिद्रदार पत्ते
लोटते-पोटते
उड़ते-तैरते
खड़खड़ाते
अपने पेड़ से भी दूर चले जाते
और न जाने कहाँ खो जाते !
ये आभा हीन
खोखले और रस हीन
चौंकाने वाले
खलबली मचाने वाले
उथल-पुथल मचा देने वाले
निम्न विचार भी
चंद दिनों में
न जाने कहाँ
विलीन हो जाते हैं ।
ये निम्न विचार
नयी ताज़गी लिए
वृक्ष की नयी कोंपलों की
भाँति
हो जाते हैं पुनः प्रकट ।
नयी कोंपलें तो
छाया और सौंदर्य देती हैं ,
सुनहरे भविष्य की संभावना
होती हैं ।
लेकिन ये निम्न और ओछे विचार ,
समाज की भलाई से इसका नहीं
कोई सरोकार
पुनः पुनः आकर फैला जाती है विकृतियाँ
और कुसंस्कार ।
अमर नाथ ठाकुर , 13 सितंबर , 2014 , कोलकाता ।