Saturday, 13 September 2014

निम्न विचार



सूखे छिद्रदार पत्ते
लोटते-पोटते
उड़ते-तैरते
खड़खड़ाते
अपने पेड़ से भी दूर चले जाते
और न जाने कहाँ खो जाते   !

ये आभा हीन
खोखले और रस हीन
चौंकाने वाले  
खलबली मचाने वाले
उथल-पुथल मचा देने वाले
निम्न विचार भी
चंद दिनों में
न जाने कहाँ
विलीन हो जाते हैं ।

ये निम्न विचार  
नयी ताज़गी लिए
वृक्ष की नयी कोंपलों की भाँति 
हो जाते हैं पुनः प्रकट ।

नयी कोंपलें तो
छाया और सौंदर्य देती हैं ,
सुनहरे भविष्य की संभावना होती हैं ।  
लेकिन ये निम्न और ओछे  विचार ,
समाज की भलाई से इसका नहीं कोई सरोकार  
पुनः पुनः आकर फैला जाती है विकृतियाँ और कुसंस्कार ।




अमर नाथ ठाकुर , 13 सितंबर , 2014 , कोलकाता ।  

Tuesday, 9 September 2014

क्या-क्या नहीं देखा हमने



गणित बदलते ,
भूगोल बदलते देखा है हमने ।
ईमान बदलते देखा है हमने ।

धर्म बदलते ,
कर्म बदलते देखा है हमने ।
मर्म समझते देखा है हमने ।

झूठ-सच करते ,
काले-सफ़ेद करते देखा है हमने ।
अर्थ का अनर्थ लगाते देखा है हमने ।

दोस्त को दुश्मन बनते ,
देव को दानव बनते देखा है हमने ।
(साधु को शैतान बनते देखा है हमने।) 
पशु को मानव बनते देखा है हमने ।

कुत्ते की वफादारी ,
बिल्ली की होशियारी देखी है हमने ।
शिशु की समझदारी देखी है हमने ।

दिन में चाँद – सितारे ,
रातों को सूरज चमकते देखा है किसी ने ?
प्रकृति को अप्राकृतिक होते सुना है किसी ने ?

लेकिन झेलम-तवी को तो उफनते देखा है सबने ।
फिर  वहाँ प्रकृति को लूट मचाते देखा है सबने ।
वो भारत का मुकुट है ,
जहाँ  कराहती मानवता को देखा है सबने ।
अबकी जहाँ आत्मा को भी विलखते देखा है सबने ।
हृदय विदीर्ण हुआ जाता ,
क्या-क्या वहाँ  नहीं देखा हमने ।



अमर नाथ ठाकुर , 9 सितंबर , 2014 , कोलकाता ।      

Monday, 8 September 2014

माँ तुम्हें प्रणाम



               -1- 
             
अभेद्य सुरक्षा – कवच प्रदान कर   
अपनी रक्त-मज्जा–हवा से पोषित कर  
मुझे पैदा किया माँ तुमने असह्य पीड़ा झेलकर ।
फिर बड़ा किया स्तनों का दूध पिलाकर ।
कभी वक्ष से चिपका कर
कभी पीठ पर लाद कर
कभी बाँहों में झुलाकर
माँ तुमने मुझे दुलराया ।
मेरी  रूलाई में रोकर
मेरी किलकारी में मुस्कुराकर
मेरी उँगलियाँ थामकर
ता ता थैया ता ता थैया गाकर  
मुझे चलना सिखाया ।
मुझे समझा नाक के बाल
अपने दिल का टुकड़ा
और अपनी आँखों का तारा ।
सारे जहां से भी न्यारा ।
सत्य और ईमानदारी का पाठ सिखाया ,
चोरी और ठगी को  कोसों दूर भगाया ।
अपनी त्याग और सहनशीलता से सराबोर हो ,
कर्त्तव्य निष्ठा और ममता में भाव विभोर हो ,    
ऊबड़ – खाबड़ कंकरीले पथ का चलैया
मधुर संगीत का तान छोड़ने वाला गवैया
बना दिया जीवन-जल-तरंग में तैरने वाला खेवैया ।
और बन गया प्रेम-पथ पर रास रचाने वाला तुम्हारा कन्हैया ।



              -2-


माँ कल जब तुम यहाँ नहीं होओगी ,
माँ मेरी यादों में तुम तब भी होओगी ।
मैं याद करूंगा तुम्हारी  आँचल की छाया ,
तुम्हारी पुचकार और तुम्हारी करूणा का साया ।
तुम मेरे दिल में जैसे बसती हो अनवरत बसी रहोगी
तुम्हारी ममता मेरे अश्रु-कण में अजस्र बहती रहेगी ।
मेरा मस्तक तेरी  चरण-धूलि और आशीर्वाद का सदा आकांक्षी रहेगा ,
और तब भी मेरा पथ तुम्हारे चंद्र-सूर्य-सदृश आभा से सदा आलोकित रहेगा ।



अमर नाथ ठाकुर , 7 सितंबर , 2014 , कोलकाता ।     

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...