Monday, 23 August 2021

पहले मुझे जलने दे


-1-


 सोच रहे लपेट में नहीं आने के तरीके ?


 कुछ  दोस्त तो गुजर गये

दर्जनों  रिश्ते - नाते वाले लाइन में हैं 

छींकने - खाँसने से भी अपने डर रहे हैं 

भयभीत हो अपना रहे हैं टोने - टोटके ।


मन्दिर मस्जिद के हैं पट बन्द

सैलून पार्लर भी दिख रहे चन्द 

मॉल के आगे  छाया है सन्नाटा 

सड़क पर नहीं लोक जन दीखते ।


मिलना - जुलना खेलना भी बन्द है 

शादी - ब्याह संस्कार टल गये हैं 

पर्व - त्यौहार पर रोक लगे हैं 

लोग घरों में  हैं , जानवर बेखौफ सड़क पे ।


मोबाईल में नजरें गड़ी हैं 

अफवाहें बेशुमार चल पड़ी हैं

ऑक्सीजन की विकट कमी है 

अस्पतालों में लाश लाश से कहते...ज़रा हँट के ।


श्मशान में लाशों के ढेर में पड़ा,

एक लाश ने दूसरे से झट कहा,

रुक , पूरी जिन्दगी तो जानी दुश्मन रहे  

अब तुमसे क्या यारी है 

दुनियाँ से जाने की पहले मेरी बारी है 

अतः पहले मुझे जलने दे ,  दूर तूं हट ,

नहीं पसंद कोरोना में रहना तुमसे लिपट के ।  


-2-


बाएँ हाथ ने अखबार उठाया 

दायें ने कहा रुक, साबुन लगाया ?

फिर स्विच को पोंछा , कुंडी को धोया ,

रिमोट से टीवी चलाया ।

और जब दायें हाथ से कौर उठाया 

मुँह ने रोका, नहीं खाता ,  हाथ धोया ?

मेरी आत्मा हर पल टोका - टोकी करती  है, 

अपने ही तन से भेद - भाव करती है ।

बहस करो तो निर्विकार बन फरमान सुना देती है । 

 मुझे छोड़ बंधन मुक्त हो जाने का उपक्रम  दिखा जाती है ।

 कोरोना में साथ - साथ रहना  ठीक नहीं, 

कहती है दूर - दूर रहना ही बिलकुल सही ।

समय शेष नहीं, कह देता हूँ झट से बिना लाग - लपेट के ।

नहीं पसन्द कोरोना में रहना तुमसे लिपट के ।



अमर नाथ ठाकुर , २३ अगस्त ( मई ,२०२१  की परिस्थिति के आधार पर ) , २०२१ , कोलकाता .



 










मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...