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सोच रहे लपेट में नहीं आने के तरीके ?
कुछ दोस्त तो गुजर गये
दर्जनों रिश्ते - नाते वाले लाइन में हैं
छींकने - खाँसने से भी अपने डर रहे हैं
भयभीत हो अपना रहे हैं टोने - टोटके ।
मन्दिर मस्जिद के हैं पट बन्द
सैलून पार्लर भी दिख रहे चन्द
मॉल के आगे छाया है सन्नाटा
सड़क पर नहीं लोक जन दीखते ।
मिलना - जुलना खेलना भी बन्द है
शादी - ब्याह संस्कार टल गये हैं
पर्व - त्यौहार पर रोक लगे हैं
लोग घरों में हैं , जानवर बेखौफ सड़क पे ।
मोबाईल में नजरें गड़ी हैं
अफवाहें बेशुमार चल पड़ी हैं
ऑक्सीजन की विकट कमी है
अस्पतालों में लाश लाश से कहते...ज़रा हँट के ।
श्मशान में लाशों के ढेर में पड़ा,
एक लाश ने दूसरे से झट कहा,
रुक , पूरी जिन्दगी तो जानी दुश्मन रहे
अब तुमसे क्या यारी है
दुनियाँ से जाने की पहले मेरी बारी है
अतः पहले मुझे जलने दे , दूर तूं हट ,
नहीं पसंद कोरोना में रहना तुमसे लिपट के ।
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बाएँ हाथ ने अखबार उठाया
दायें ने कहा रुक, साबुन लगाया ?
फिर स्विच को पोंछा , कुंडी को धोया ,
रिमोट से टीवी चलाया ।
और जब दायें हाथ से कौर उठाया
मुँह ने रोका, नहीं खाता , हाथ धोया ?
मेरी आत्मा हर पल टोका - टोकी करती है,
अपने ही तन से भेद - भाव करती है ।
बहस करो तो निर्विकार बन फरमान सुना देती है ।
मुझे छोड़ बंधन मुक्त हो जाने का उपक्रम दिखा जाती है ।
कोरोना में साथ - साथ रहना ठीक नहीं,
कहती है दूर - दूर रहना ही बिलकुल सही ।
समय शेष नहीं, कह देता हूँ झट से बिना लाग - लपेट के ।
नहीं पसन्द कोरोना में रहना तुमसे लिपट के ।
अमर नाथ ठाकुर , २३ अगस्त ( मई ,२०२१ की परिस्थिति के आधार पर ) , २०२१ , कोलकाता .