Wednesday, 18 February 2015

क्या विचित्र है मुस्कराना





चमचई
  
हम वही राग अलापते हैं  जो वह सुनना चाहता है
हम वही कार्य करते हैं  जो वह करवाना चाहता है
हम वही आलेख लिखते हैं जो वह लिखाना चाहता है ।
  
फिर वह हमेशा मुस्कराता रहता है
हम  भी सब समझ मुस्कराते रहते हैं ।

ईमानदारी

हम जो भी राग सुनाते हैं वह आनंद पूर्वक सुन लेता है
हम जो भी कार्य करते हैं वह अनुमोदन करता जाता है
हम जो भी टिप्पणियाँ लिखते हैं वह सहमति प्रदान करता है । 

फिर निश्चिंत हो वह मुस्कराता रहता है  
और हम भी क्यों सब समझ मुस्कराते रहते हैं ।

दादागिरी

हम कुछ भी सुनाएँ वह नहीं सुनता है
हम कुछ भी करें वह नहीं स्वीकारता है
हम कुछ भी लिखें वह नहीं पढ़ता है ।

और फिर वह हमें देख  मुस्कराता रहता है
हम भी अपनी कमजोरियों पर मुस्करा भर रह जाते हैं ।

भरोसा

हम जब तक नहीं सुनाते वह किसी की नहीं सुनता है
हम जब तक नहीं करते वह होने का इंतजार करता है
हम जब तक नहीं लिखते वह किसी की नहीं पढ़ता है ।

हमारी उपस्थिति से ही वह मुस्कराने लगता है
हम भी उसकी समीपता पर मुस्करा लेते हैं ।


अमर नाथ ठाकुर , 18 फरवरी , 2015 , कोलकाता ।  

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