मेहनत,थकावट और पसीने
उमर भर चलने-फिरने
दौड़ने के सपने
न जाने कितनी-कितनी नींदें सजाए
और हम चलते जाएँ ---
हर क्षण काम के साए
काम का बोझ तो भी नहीं सताए
ये तो मन को भाए
और हम गाते गाएँ ---
धमकियां इज्ज़त लूटने की
चमकियां हंगामा मचाने की
हुमकियां धैर्य के चरमराने की
क्या-क्या नहीं दुःख पाए
और हम गिरते डगमगाएँ ---
कटाक्ष और फजीहत
फिर बासी सड़ी गालियाँ
व्यंग्य -भरी तालियाँ
छद्म प्रेम-दान की चालाकियाँ
बार-बार सताए
और हम जार-जार रोएँ ---
अमर नाथ ठाकुर , ५ जुलाई २०१३ , कोलकाता.