आसमान में अदृश्य होता -सा धुंआ
झील में विलीन होते -से वर्षा -बूँद
भीड़ के कोलाहल में असुना -सी शिशु की चीत्कार --
ख़ाक होती -सी कल्पनाएँ
बिखर- बिखर जाती -सी आशाएँ
"हाय बचाओ " की अनसुनी -सी पुकार --
सिमटकर रहने की -सी विवशता
रुग्णता की लक्ष्यहीन -सी परिधि
पुनः सीढ़ियों पर डगमगाते -से पग बारम्बार --
ऐसे में भी जीवनाकृति का खींच पाता प्रारूप ---
और देख लेता भविष्य की कँपकँपाती खोह में थोड़ी -सी धूप---
अमर नाथ ठाकुर , १९८९ .