Monday, 27 May 2024

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ



हर पल कुछ नया पाता हूँ

हर पल कुछ नया खोता हूँ

हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ 

मृत्यु के पहले जन्म का तय होना 

मृत्यु के उपरांत भी जन्म का होना 

इसलिए तो हर पल जन्म लेता हूँ ।



इस धरा के अनवरत घूर्णन से 

मौसम प्रति पल बदल जाता है

 विचार बदल जाता है

संगीत बदल जाता है

हर पल अपनी चाल बदल लेता हूँ

हर पल जन्म नया लेता  हूँ ।


बच्चे बड़े हो रहे होते हैं

जवान वृद्ध हो रहे होते हैं 

चेहरे की झुर्रियां अगणित बढ़ती जाती है

हर पल  जिंदगी चढ़ती जाती है

रंग बदलते रूप बदलते इस दुनियां में 

हर पल परिभाषा बदल देता हूँ

हर दिन हर पल जन्म नया पाता हूँ ।


आज वादा करता हूँ

कल वादे बदल देता हूँ

आत्मा वही होती है

क्योंकि प्रारब्ध बदल जाता है 

नव वस्त्र धारण जब कर लेता हूँ

हर दिन  जन्म नया लेता हूँ ।


हर पल दुःशासन जन्म पाता है

हर पल द्रौपदियां भी होती हैं

हर पल  चीर हरण होता है

हर पल नया शिशुपाल भी होता है 

हर क्षण गालियां बढ़ती जाती है

 हर क्षेत्र कुरुक्षेत्र बना होता है

हर पल एक महाभारत होता है

लेकिन मैं कुछ याद नहीं रखता हूँ 

क्योंकि हर पल मैं जन्म नया पाता हूँ ।


पांच गांव की कौन कहता है 

सूची अग्र पर भी समझौता नहीं करता हूँ

लेकिन छोड़ पूरा हस्तिनापुर देता हूँ

जब ईर्ष्या द्वेष से विस्मृत हो जाता हूँ

(जब सूक्ष्म शरीर में होता हूँ )

क्योंकि हर पल जन्म नया पाता हूँ ।


तुम मेरे मित्र हो या तुम मेरे शत्रु हो

क्या पता तुम अपने हो या तुम पराए हो 

न लेने का होश न देने का हवास

इस मतलबी दुनिया में नहीं कुछ निभाता हूँ

क्योंकि हर पल जन्म नया मैं लेता हूँ ।


कुछ मिले तो खा लेता हूँ

कुछ मिले खिला भी देता हूँ

लूट का भय नहीं होता है

क्योंकि संचित नहीं कुछ होता है

न अपना कोई घर होता है

न अपना कोई ठिकाना

मैं होता हूं रमता योगी

मैं होता हूं बहता पानी

हर पल विचरण में होता हूँ

हर पल कल - कल चलता रहता हूँ


हर पल गीत नया गुनगुनाता हूँ

हर पल जन्म नया पाता  हूँ ।


अमर नाथ ठाकुर, 27 मई, 2024, कोलकाता।






Saturday, 13 April 2024

राम ही राम


तन में मन में धन में 

घर में गाँव में देश में 

जहाँ देखो वहाँ राम ।

हर गली  हर कूचे में 

हर झोंपड़ी हर महल में 

हर रथ पे हर पताके पे राम ।

यत्र तत्र सर्वत्र राम ।

हर कोई पुकारे राम।


चिड़ियों के कलरव में

वन उपवन में पुष्पों में 

सूर्य की असंख्य रश्मियों में 

शिशुओं की खिलखिलाहट में 

असहायों की चीख चीत्कार में 

जन मानस के हर अश्रु में राम ।

हर अश्रु पुकारे राम।


जटायु के सुग्रीव के राम

शबरी के  केवट के राम 

हनुमान के विभीषण के राम,

 जन जन के राम ।

जन जन पुकारे राम।



ढोल मजीरे  पैजनियां में

वंशी में शहनाई में राम

प्राती में साँझ में 

सोहर में समदौन में 

हर राग विराग में राम ।

हर राग पुकारे राम।


वसंत में वर्षा में 

चिलचिलाती धूप हो 

या हो कड़ाके की सर्द शाम 

हर मौसम में राम ।

चैती हो या फाग की अठखेली

सीता मां हो या सीता मां की सहेली

हर संगीत में हर  जिह्वा पे राम ।

हर संगीत पुकारे राम।


विदाई में मिलन में 

हर नमस्ते में राम।

बिलखते में हंसते में 

दुःख में सुख में 

जन्म में मृत्यु में 

प्रेम में विषाद में 

हर प्रहर में हर क्षण में राम ।

हर क्षण पुकारे राम।


ऊपर नीचे इधर उधर 

जल में अग्नि में दिशाओं में 

आकाश में पाताल में हवा में 

सभी  पंच तत्वों  में राम।

हर तत्त्व पुकारे राम।


आंखों में कानों में 

सांसों में रोम-रोम में 

हर कदम -कदम पे राम।

राम ही राम।

हर रोम पुकारे राम।


तौल में गिनती में 

जीवन की हर क्रिया कलाप में 

जीवन के पूर्व जीवन के परे राम

राम ही राम राम मय राम।

हर राम पुकारे राम।


हममें तुममें उसमें सबमें 

हर जीव में हर निर्जीव में 

नदी में पहाड़ में राम

स्वयं राम में भी राम ।

हर कण पुकारे राम।


अयोध्या में आए राम

इसलिए अयोध्या धाम 

भारत में राम 

इसलिए भारत धाम।

आज तन पुलकित

आज मन प्रफुल्लित

ठुमक चले जब राम ।

हर गांव पुकारे राम।


राम लला का मान

मान रख मर्यादा का राम।

रे मन ! आओ भजें राम 

मर्यादा पुरुषोत्तम राम !

राम राम राम राम !

राम राम राम राम !


अमर नाथ ठाकुर, कोलकाता , 24 जनवरी, 2024.

Wednesday, 24 January 2024

राम ही राम

तन में राम 

मन में राम 

धन में राम

यत्र सर्वत्र 

राम ही राम ।


घर में राम

गांव में राम

देश में राम

जहां देखो

वहां राम ।

इस गली में राम

उस कूचे में राम

झोंपड़ी में राम 

महल में राम

रथ पे राम

पताके पे राम ।


चिड़ियों के कलरव में राम

वन उपवन में पुष्पों में राम

सूर्य की असंख्य रश्मियों में राम ।

हर खिलखिलाहट में राम

हर चीत्कार में राम

हर आंसू में राम ।


जटायु के राम

सुग्रीव के राम

शबरी के राम

केवट के राम 

हनुमान के राम

जन जन के राम ।


ढोल मजीरे 

पैजनियां में राम

शहनाई में राम

फूलों के पराग में राम

प्राती में संध्या में राम

सोहर में राम

समदौन में राम

हर राग विराग में राम ।

वसंत में राम

वर्षा में राम

चैती हो या फाग की अठखेली

सीता मां हो या सीता मां की सहेली

सबकी जिह्वा पे राम ।


विदाई में राम 

मिलन में राम 

नमस्ते में राम 

हंसते में राम

दुःख में राम

सुख में राम

जन्म में राम 

मृत्यु में राम

प्रेम में राम

विषाद में राम

कण कण में राम

क्षण क्षण में राम

जन जन में राम ।


ऊपर राम

नीचे राम 

इधर राम

उधर राम

जल में राम

अग्नि में राम

दिशाओं में राम

आकाश में राम

पाताल में राम

पंच तत्व में राम।


आंखों में राम

कानों में राम 

सांसों में राम

रोम रोम में राम ।

कदम कदम पे राम।

राम ही राम।


तौल में राम

गिनती में राम

जीवन की हर क्रिया में राम

जीवन के पूर्व राम

जीवन के परे राम

राम ही राम

राम मय राम।


हममें राम

तुममें राम

उसमें राम

सबमें राम

हर जीव में राम

निर्जीव में राम

नदी में राम

पहाड़ में राम

राम में भी राम ।


अयोध्या में आए राम

इसलिए अयोध्या धाम 

भारत में राम

इसलिए भारत भी धाम

तन पुलकित

मन प्रफुल्लित

ठुमक चले जब राम ।


राम लला का मान

मान रख मर्यादा का राम।

रे मन ! आओ भजें राम 

मर्यादा पुरुषोत्तम राम !

राम राम राम राम !


अमर नाथ ठाकुर, कोलकाता , 24 जनवरी, 2024.









Tuesday, 9 January 2024

राम आ रहे हैं

 राम आ रहे हैं 

जो जगत के धर्त्ता हैं  

जो सबके दुःख हर्त्ता हैं 

जो सबके पालन कर्त्ता हैं 

वो राम आ रहे हैं ।

कोर्ट ने आदेश दिया है 

इसलिए राम आ पा रहे हैं ।

राम रथ पर आएँगे 

रथ भक्त खींचेंगे 

कोर्ट ने कह दिया है 

अब राम को आना ही पड़ेगा ।

राम रुक नहीं सकते 

यह उनके सामर्थ्य में नहीं कि रुक जाएँगे 

कोई ऐसा सामर्थ्यवान नहीं कि राम को रोक दें 

राम को आना ही पड़ेगा 

कोर्ट की मर्यादा राम की मर्यादा से ऊपर कैसे हो सकती ?

राम का सामर्थ्य राम की मर्यादा से आगे कैसे !

क्योंकि मर्यादा का भी सामर्थ्य होता है 

इसलिए राम आ रहे हैं !

नाचो गाओ ख़ुशी मनाओ रे !

राम आ रहे हैं।

दीये जलाओ 

पटाखे चलाओ 

राम आ रहे हैं।



शासन बदलेगा 

तो वो प्रतिशोध लेगा 

फिर कोर्ट निर्णय बदलेगा 

क्योंकि उनकी मर्यादा उतनी  ही है ।

कहते हैं फिर राम का घर तोड़ेंगे 

फिर राम ठठरी में विराजेंगे ।

राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं 

राम को क्रोध नहीं आता 

राम प्रतिशोध नहीं लेते 

राम नहीं रोते ।

उनके प्रतिशोध को राम पूरा होने देंगे 

यह राम की मर्यादा है।


तब दशरथ ने आदेश दिया था 

और राम को वन जाना पड़ा था

अब कोर्ट ने  आदेश दिया है 

इसलिए राम आ रहे हैं ।

राम कोर्ट की अवमानना  नहीं कर सकते 

राम किसी को दुःख नहीं पहुँचाते 

मर्यादा पुरुषोत्तम हैं राम ।

राम आ रहे हैं 

राम को आना ही पड़ेगा ।


फिर जब व्यवस्था बदलेगी 

तो फिर राम वनवास को जाएँगे 

वन और पहाड़ की खाक छानेंगे ।

पूरा ब्रह्माण्ड दुःखी  होगा ।

सिर्फ़ सीता माँ और लक्ष्मण भाई ही क्यों 

पूरा जगत राम के साथ वन में होगा !

रावण को भी होना होगा 

क्योंकि रावण के होने से मर्यादा परिभाषित होती है ।

फिर कोई निर्णय आएगा 

मर्यादा वाला निर्णय ।

फिर राम आएँगे

आना ही पड़ेगा

क्योंकि राम जगत के स्वामी हैं।

मर्यादा पुरुष हैं।

राम की मर्यादा अनंत है अप्रतिम है ।

उन्हें किसी भी निर्णय को मानना ही पड़ेगा।

राम अब वाण नहीं चलाते ।

तरकश जो भरा हुआ है 

और धनुष जो तना हुआ है 

लेकिन हमको मालूम है 

ये संहारक वाण नहीं निकालेंगे 

और संहारक वाण नहीं भी चलाएँगे ।

राम को मर्यादा पसंद हैं 

राम जगत के खेवनहार हैं  

वह हम आपकी मर्यादा में विघ्न नहीं आने देते हैं।

वह हमें दुःखी नहीं कर सकते ।


राम का वन जाना आना लगा रहेगा 

हर युग में और मर्यादा में !


ऐसे हमारे राम आ रहे हैं।

नाचो रे , गाओ रे , ख़ुशी मनाओ रे !

हमारे आपके सबके राम आ रहे हैं !

राम आ रहे हैं !



अमर नाथ ठाकुर ,  9 जनवरी , 2024, कोलकाता ।






Thursday, 21 December 2023

अब न आता अगहन पूष का वो महीना

 धान काट कर घर  नहीं लाते अब अगहन में

इसलिए मेह नहीं गड़ते दालान या आंगन में

न बाँस काटना होता अब दबिया या कटार से 

और न मेह सजाना होता सिंदूर एवं पिठार से 

न पंडितजी का वेदोच्चार न मुहूर्त्त की गणना 

जरूरत नहीं मेह को छीलना या सजाना 

मेह में न दर्जनों धान के शीश ही बाँधना 

न इसकी फुनगी से धान का गुच्छ लटकाना 


गांव में अब नहीं बनते खलिहान

इसलिए नहीं होता दौनी धान 

मेह नहीं सो नहीं इसमें दर्जन बैल बहते

न इसे धान खाने से रोकने को जाबी पहनाते

बैलों को ललकारने की अब आवाज कहाँ 

न जुआली की सट सट फटकार वहाँ 

धान पुआल अलग करने की रीति  

यह अब कहां दिखाई देती


अब न होती धान की सूप से ओसाई 

रामैह जी राम से न गिनती और न तौलाई 

कहां होता अब धान की उसनाई

और न ही होती धान की सुखाई

और न फिर ढेकी में इसकी  कुटाई

धान रखने को न दिखती बांस की बखारी 

न चावल रखने को माटी की कोठी न्यारी 


अब न खुद्दी का आंटा न ही रोटी बनती

और न खुद्दी की खिचड़ी ही उबलती 

पुबरिया ओसरा पर सबेरे की धूप में बैठ कर,

अब न  मुड़ही खाते बच्चे गांती बांध कर ,

अब नहीं होता घूरा घेरकर बैठने का इंतजाम

न घूरा में आलू अल्हुआ पकाने का बच्चों का काम 


अब न होता नार - पुआल का गर्म बिछौना

और न बच्चों का उस पर उछल कूद करना 

अब न लगता नार -पुआल का ऊँचा टाल

जो खाए सभी माल - जाल जी भर साल


अब न गोहाली के सामने धूप में कुर्सी लगाना

इसलिए न कोई बैठक , न कोई मजमा जमाना

न फिर फिकर कि शाम के पहले कुर्सियां उठाना

और घर के अंदर इसे रख ओस से बचाना

अब न तौनी कंबल न कोई गमछी ओढ़ना 

अब तो ओवरकोट जैकेट और कैप का जमाना 

ये अब अगहन पूष नहीं भई दिसंबर का है महीना 


अब नहीं रहा अगहन पूष का वो महीना

अब धान कटाने को न मजदूर बुलाना

अब न कटे धान की ओगाही करना

न धान को कटाकर बैल गाड़ी से ढोना

अब क्या मतलब बोझों की गिनती से 

कौन  खोद निकाले धान चूहे के बिल से 

न धन लोढ़नी से तकरार होना 

न आँटी बांधने का दरकार होना 

अब न बोइन देने का कोई झमेला 

न बोझ बराबर करने का कोई बखेड़ा


अब तो खेतों में थ्रेशर भेज दिया जाता है

धान अलग कर ट्रैक्टर में लादा जाता है

और सीधे व्यापारी को बेच दिया जाता है

नार पुआल अब समेट रखने का विधान नहीं 

क्योंकि  गाय बैल पालने में कोई शान नहीं 

खेतों में ही नार पुआल जला देते हैं 

धुएँ के ग़ुबार से दिशायें भभका  देते हैं 


नहीं कूटा जाता है हरे धान का ऊखल में करारा चूड़ा

अब न बगिया, न मुड़ही की लाई , न कोई शक्कर का ढेला

अब न नवान्न पूजन का कोई अनुष्ठान 

न अग्नि को समर्पण का कोई विधान

बाजार से खरीद लाते अब सारे अन्न- पान

अब नहीं रहा अगहन पूष का वो महीना

लुप्त हो रही रीति चलन संस्कार ,क्या कहना !


अमर नाथ ठाकुर

21 दिसंबर, 2023, कोलकाता ।

Thursday, 7 December 2023

बीएसएनएल/एमटीएनएल पेंशन भोगियों की व्यथा नरेंद्र मोदी जी के समक्ष

 हमारे देश के हमारे आदरणीय , यशस्वी एवं लोकप्रिय प्रधानमंत्री श्रीमान् मोदी जी ,


हमें कुछ कहना है किंतु पता नहीं यह पत्र आपके पास पहुँचकर भी आपके सम्मुख रखी जाएगी या नहीं।हमारी बात इस पत्र के माध्यम से आपके पास पहुँचकर भी शायद आपको न बतायी जाये।आपके पास तो हज़ारों , लाखों प्रतिवेदन प्रति दिन पहुँचते होंगे और संभव नहीं कि उन सारी बातों को आपके सम्मुख रखी जाती हो।एक सफल जन प्रतिनिधि या कहें राजा के लिए यह धर्म है प्रजा की हर सुख दुःख वाली बातें अपने तक पहुँचाने की व्यवस्था करे । आपके 'मन की बात' कार्यक्रम से तो लगता है कि कुछ महत्त्वपूर्ण बातें ज़रूर आपके पास पहुँचती हैं और इसी विश्वास के साथ कि हमारी बात भी जरुर आपके पास पहुँचेगी और बीएसएनएल/एमटीएनएल के 1 अक्तूबर , 2000  के बाद से सेवा निवृत्त क़रीब साढ़े चार लाख पेंशन भोगियों की कटु व्यथा जरूर आपके कानों तक जाएगी , निम्नलिखित बातें आपके विचारार्थ रख रहा हूँ :

DOT के अधीन DTS एवं DTO के सभी कमर्शियल कामों के लिए उनकी सभी परिसंपत्तियों, कर्मचारियों एवं अधिकारियों को ट्रांसफ़र करते हुए 1 अक्तूबर , 2000 से बीएसएनएल का गठन किया गया । मुंबई और दिल्ली के लिए पहले से ही एमटीएनएल था।बीएसएनएल में ट्रांसफ़र कर दिये गए सभी कर्मचारियों और अधिकारियों को बिना किसी डेप्यूटेशन भत्ते के डेप्यूटेशन पर माना गया और इनकी सेवा शर्त्तें सभी सरकारी ही रहीं। सरकारी नियमों के तहत इस तरह के डेप्यूटेशन की अवधि अधिकतम पाँच वर्षों तक ही हो सकती थी , अतः बीएसएनएल के हिसाब से सभी सेवा शर्त्तों को बनाने की प्रक्रिया भी शुरू की गयी । 2003-04 तक ग्रुप B, C एवं D वर्ग के सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को बीएसएनएल एवं एमटीएनएल में शामिल (Absorb) कर लिया गया। 2005 में ग्रुप A वर्ग के अधिकारियों को भी शामिल करने की कोशिश शुरू की गयी। ग्रुप A संवर्ग के अधिकांश ITS एवं P&TAFS के अधिकारियों ने सेवा शर्त्तें मनोनुकूल नहीं होने की वजह से बीएसएनएल एवं एमटीएनएल में शामिल नहीं होने की इच्छा व्यक्त की। सरकार की तरफ़ से कुछ ज़बरदस्ती भी की गयी और ग्रुप A संवर्ग के कई अधिकारियों को बीएसएनएल एवं एमटीएनएल से निकाला भी गया । नियम के मुताबिक़ बीएसएनएल से निकाले गए इन अधिकारियों को विभिन्न  विभागों में पद की कमी होने से सरप्लस सेल में भी रखा जाना था एवं निवर्तमान नियमों के तहत कार्रवायी होनी थी। लेकिन बाद में ऐसा नहीं हुआ और  ITS के सदस्य बीएसएनएल में बार-बार डेप्यूटेशन पर लिए जाते रहे और यही अधिकारी गण  बीएसएनएल की प्रगति में सेंध मारते रहे। इन सब में विस्तार से न जाकर हमें यह बताना है कि वह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बिन्दु जिसने लगभग सभी कर्मचारियों एवं कुछ अधिकारियों को बीएसएनएल में शामिल होने के लिए आकर्षित किया वह था केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों की भाँति सरकारी कोष से सरकारी पेंशन की सुविधा और वह भी DOT और बीएसएनएल की संपूर्ण संयुक्त सेवा वर्ष के आधार पर। इसके लिए केंद्रीय कैबिनेट ने उस समय के निवर्तमान पेंशन नियम में ज़रूरी संशोधन करके ग़ज़ट के द्वारा नोटिफाई भी कर दिया था। पेंशन नियम में यह ज़रूरी संशोधन वाला रूल 37A था। साथ ही बीएसएनएल में शामिल सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लिए सरकार ने यह नियम बनाया कि इनको  वेतन केंद्रीय वेतन CDA आधारित न देकर पीएसयू के लिए निर्धारित CDA के समानान्तर IDA आधारित वेतन दिया जाएगा जो एक प्रक्रिया के तहत किया गया, जो सरकार चाहती तो इस ढंग से मजबूर न भी कर सकती थी और आज पेंशन संशोधन की भारी समस्या आती ही नहीं ।

उसके बाद निवर्तमान सरकार ने बीएसएनएल कर्मचारियों के साथ खिलवाड़ करना शुरू किया। कुछ वर्षों बाद यह नियम बना दिया कि बीएसएनएल से सेवा निवृत्त कर्मचारियों के पेंशन का 60 % हिस्सा बीएसएनएल के खाते से देना होगा एवं बकाया 40 % हिस्सा सरकार देगी। यह सरकार के लिखित आश्वासन और करार के प्रतिकूल था जिस आधार पर कर्मचारियों ने DOT छोड़कर सरकार की इच्छा के अनुरूप बीएसएनएल का काम व्यवधान रहित चले इसलिये बीएसएनएल जॉइन किया था। सरकार के इस पलटी का बीएसएनएल के कर्मचारियों ने भारी विरोध किया और अंततः सरकार को वह संशोधन , जिसके तहत पेंशन का 60 % हिस्सा बीएसएनएल को वहन करना था , वापस लेना पड़ा । अतः दूरसंचार विभाग से 1 अक्तूबर, 2000 को बीएसएनएल में शामिल (Absorbed) सभी कर्मचारियों एवं अधिकारियों को सेवानिवृत्ति के उपरांत केंद्रीय सरकार की भाँति केंद्रीय सरकार के कंसोलिडेटेड फण्ड से पेंशन मिलने की व्यवस्था पूर्ण रूप से स्थापित हो गयी।

बीएसएनएल के सेवा निवृत्त पेंशन भोगियों के पेंशन संशोधन/बढ़ोत्तरी को लेकर सरकार ने अपनी खोट नियत का प्रदर्शन 2008-09 में भी किया था । छठे वेतन आयोग की अनुसंशा के उपरांत केंद्रीय सेवा निवृत्त कर्मियों के पेंशन की बढ़ोत्तरी 1 जनवरी , 2006 से हो गयी। पब्लिक सेक्टर उपक्रमों के कर्मियों के वेतन संशोधन के द्वितीय वेतन आयोग की अनुसंशा 1 जनवरी , 2007 से लागू होनी थी, अतः बीएसएनएल के सेवा निवृत्त पेंशन भोगियों के पेंशन 1 जनवरी , 2006 से न संशोधित कर 1 जनवरी, 2007 से संशोधित की गयी। लेकिन ये संशोधन लागू करने में सरकार ने चार - पाँच वर्षों का समय लिया, अनुनय विनय जब नहीं प्रभावी रहे तब बीएसएनएल कर्मियों को वृहद् आंदोलन करके दबाव बनाना पड़ा। इस समय पता चल गया कि सरकार बीएसएनएल से सेवा निवृत्त पेंशन भोगियों के केंद्रीय कर्मियों के सेवा निवृत्त कर्मियों के संशोधित पेंशन के अनुरूप पेंशन संशोधन नहीं देना चाहती है । यह पेंशन रूल 37A का सरासर उल्लंघन था । सरकार के लिखित आश्वासन के बावजूद, पेंशन नियम में रूल 37A  जोड़ने के बाद भी केंद्रीय कर्मियों के समानांतर बीएसएनएल के सेवा निवृत्त पेंशन भोगियों को पेंशन संशोधन के लाभ से वंचित रखना संविधान प्रदत्त समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं तो क्या था/है !

सरकार की नियत में खोट का खुल्लम-खुल्ला एक और प्रदर्शन फिर तब हुआ जब केंद्रीय कर्मियों के सातवें वेतन आयोग की अनुसंशा 1 जनवरी , 2016 से लागू की गयी और केंद्रीय उपक्रमों के कर्मियों के तृतीय वेतन संशोधन की अनुसशा  1 जनवरी , 2017 से लागू हुई। केंद्र सरकार के पेंशन भोगियों के संशोधित पेंशन 1 जनवरी , 2016 से लागू हुए लेकिन बीएसएनएल से सेवा निवृत्त पेंशन भोगियों के पेंशन पिछली स्थापित परंपरा के मुताबिक़ 1 जनवरी, 2017 से लागू नहीं किए गये ( पिछला संशोधन 1 जनवरी , 2006 से नहीं लागू कर 1 जनवरी, 2007 से लागू हुआ और इसलिए इस बार भी 1 जनवरी , 2016 से न लागू होकर पिछले संशोधन के दस वर्ष बाद 1 जनवरी 2017 से लागू हो जाना चाहिये था ) । बीएसएनएल से सेवा निवृत्त पेंशन भोगी क़रीब साढ़े चार लाख की संख्या में हैं और पल-पल दिन रात लगभग सात वर्षों से आशा में और बीएसएनएल जॉइन करने के पश्चात्ताप की ज्वाला में तपते रहे हैं। ये अधिकांश सत्तर साल की उम्र में आ गये हैं और दर्जनों के हिसाब से प्रति महीने पेंशन बढ़ोत्तरी की आशा में  स्वर्ग सिधारते जा रहे हैं। 

बीएसएनएल पेंशन भोगियों के पेंशन संशोधन 2017 से न लागू किए जाने के संबंध में बड़े ही अस्वाभाविक और हास्यास्पद तर्क ये दिये गये कि चूँकि कई वर्षों से घाटे में चल रहे बीएसएनएल में केंद्रीय उपक्रमों के लिए अनुमोदित तृतीय वेतनमान के शर्तों के मुताबिक़ वर्तमान में कार्यरत कर्मियों को 1 जनवरी, 2017 से लागू होने वाले संशोधित वेतनमान 1 जनवरी, 2017 से नहीं दिये जा सकते, इसलिए बीएसएनएल से सेवानिवृत्त पेंशन भोगियों के पेंशन संशोधित नहीं किए जा सकते। उनका तर्क था कि ऐसा करने से 2017 से पूर्व सेवा निवृत्त और बाद में सेवा निवृत्त होने वालों के बीच पेंशन में बहुत बड़ी असमानता पैदा हो जाएगी। यह ऐसा विध्वंसकारी और अराजक तर्क है कि भविष्य में बीएसएनएल के साथ होने वाली किसी भी दुर्घटना का दोष पूर्व में बीएसएनएल से सेवा निवृत हो चुके कर्मियों पर डाला जा रहा है। यह उसी तरह का तर्क है कि शेर के द्वारा पहाड़ पर पिया जा रहा नदी का पानी नीचे नदी में पानी पी रहे मेमने ने जूठा कर दिया हो। आश्चर्य तो तब हुआ जब संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद जी ने संसद में बीएसएनएल पेंशन भोगियों के पेंशन संशोधन को यही तर्क देकर नकार दिया।  पूर्व संचार मंत्री मनोज सिन्हा जी भी यही तर्क देकर पेंशन संशोधन की माँग को टालते रहे थे और आज तक केंद्रीय पेंशन भोगियों के मुक़ाबले में बीएसएनएल पेंशन भोगी जो पेंशन रूल 37A के सहारे से बराबरी के हक़दार थे, कभी भी उनके समकक्ष नहीं आ सके। बीएसएनएल पेंशन भोगी इस तरह वर्षों से उपेक्षा, भेद-भाव और असमानता के शिकार बने रहे हैं। इस तरह के तर्क इस बात को पुष्ट करता है कि भविष्य में बीएसएनएल का अस्तित्व न हो तो बीएसएनएल से सेवानिवृत्त पेंशन भोगियों के पेंशन वृद्धि या संशोधन की बात कल्पनातीत ही होगी क्योंकि तब यहाँ कोई वेतनमान ही नहीं होगा। यदि बीएसएनएल को पूर्ण रूप से प्राइवेट हाथों में दे दिया जाय तो वहाँ कोई केंद्रीय सरकार या किसी केंद्रीय उपक्रम का कोई वेतनमान नहीं बल्कि कोई और वेतनमान होगा जो बहुत कम भी हो सकता है तो इन स्थिति में पूर्व में बीएसएनएल से सेवा निवृत्त पेंशन भोगियों के पेंशन वृद्धि या संशोधन का मामला एक काल्पनिक बात होगी या अप्रत्याशित रूप से वर्तमान तर्क के अनुसार उनके पेंशन कम भी कर दिये जा सकेंगे। कुछ वर्षों के उपरांत दूर संचार विभाग से आकर 1 अक्तूबर, 2000 से बीएसएनएल में शामिल (Absorbed) सब के सब कर्मी सेवा निवृत्त हो जाएँगे और इस वर्तमान तर्क के आधार पर पेंशन में कौन सी असमानता रहेगी ? क्या उसके बाद जीवित पेंशन भोगी अपने पेंशन संशोधन की आशा को तब त्यागने को बाध्य हो जाएँगे ? अतः कुतर्क के द्वारा पेंशन संशोधन को अटकाया या टरकाया या अन्यायोचित घोषित नहीं किया जा सकता। 

बीएसएनएल पेंशन भोगियों के कई संगठन वर्त्तमान में संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव जी से पिछले एक साल से ज़्यादे समय से मिलते रहे हैं और अंत में श्रीमान वैष्णव जी ने इनकी बात सुनी, पेंशन संशोधन की तार्किकता को समझा और उन्होंने कई बार यह बात उनके साथ के बाद के मीटिंगों में दुहरायी भी कि बीएसएनएल में संशोधित वेतनमान लागू हो या न हो, सेवा निवृत्त पेंशन भोगियों की पेंशन संशोधन की माँग रूल 37A के आलोक में जायज है और वर्तमान में कार्यरत कर्मचारियों के वेतन संशोधन से पेंशन संशोधन के मामले को डिलिंक करने की बात मान ली। लेकिन ढाक के वही तीन पात। अभी तक मंत्री महोदय ने इस संबंध में कोई आदेश नहीं निकलवाया।

बाद में एक प्रस्ताव बना मंत्री वैष्णव जी के प्रयासों की वजह से ही , और  DOP&PW में भी भेजा गया जो प्रस्ताव दूरसंचार विभाग के संचार भवन में कार्यरत ITS और फाइनेंस के अधिकारियों की देखरेख में तैयार किया गया था। यह प्रस्ताव विसंगतियों से भरा पूरा था। इसमें केंद्रीय सरकार के उपक्रमों के लिए तृतीय वेतन संशोधन आयोग की अनुसंशा के मुताबिक़ वेतनमानों पर 5 %, 10 % या 15 % की वेतनवृद्धि के बिना ही शून्य प्रतिशत की वृद्धि के साथ तैयार किया गया था जिससे अधिकांश पेंशन भोगियीं के पेंशन में शून्य बढ़ोत्तरी हो रही थी। वैसे इस प्रस्ताव में ख़ामियों की वजह से DOP&PW ने भी संभवतः अपनी सहमति नहीं दी थी, साथ ही बीएसएनएल के पेंशन भोगी संगठनों ने भी दूर संचार विभाग के द्वारा इस पर चर्चा के लिए बाद में बुलाये मीटिंग में शून्य प्रतिशत वृद्धि वाले इस प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया था। बीएसएनएल के पेंशन भोगी इस  प्रस्ताव में विभिन्न वेतनमानों में तृतीय वेतन आयोग की अनुसंशा के मुताबिक़ 15% बढ़ोत्तरी के साथ पेंशन संशोधन की माँग कर रहे थे। क्योंकि ऐसी स्थिति में ही ये पेंशन के मामले में केंद्रीय पेंशन भोगियों के समकक्ष आ पाते। 5 %, 10 % या शून्य प्रतिशत की वृद्धि से पेंशन निर्धारित करना बीएसएनएल के अभी के घाटे और स्थिति का दोष पूर्व में सेवा निवृत्त कर्मियों के ऊपर डालने जैसी बात होती और इसलिए 15 % के इतर कोई भी बढ़ोत्तरी अन्यायोचित ही होती/होगी। इसके बाद ऐसा भी पता चला कि बीएसएनएल के पेंशन भोगियों को पेंशन संशोधन देने में अनुमानित खर्च निकालने के लिए दूर संचार विभाग ने एक फाइनेंसियल इम्प्लिकेशन भी तैयार करवाया जिसमें DOE को भी शामिल करवाया गया। फिर यह फाइल किसी निर्णय के लिए मंत्री श्री वैष्णवजी एवम् दूर संचार सचिव के बीच संभवतः झूलती रही। चार-पाँच महीने पहले सचिव महोदय किसी अन्य उत्तरदायित्व के लिए चुन लिए गये और पेंशन संशोधन का वह फ़ाइल किसी निर्णय या अनिर्णय के मुताबिक़ कहीं रख दे गये और इस तरह बीएसएनएल के सेवा निवृत्त पेंशन भोगियों के पेंशन संशोधन का मामला अधर में ही अटका रह गया ।

इस बीच में एक और महत्त्वपूर्ण घटना घटी । विभिन्न पेंशन भोगी संगठन ठोकरें खाने के बाद निराश होकर तीन साल पहले ही सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल के प्रिंसिपल बेंच दिल्ली की शरण में न्याय की गुहार में में भी चले गये थे। इसका निर्णय पिछले सवा दो महीने पहले बीएसएनएल पेंशन भोगियों के पक्ष में आया। ट्रिब्यूनल ने स्पष्ट कहा कि सरकार अपने वादे से  मुकर नहीं सकती और बीएसएनएल पेंशन भोगियों का पेंशन किसी भी  हालत में उनके समकक्ष केंद्रीय पेंशन भोगियों के पेंशन के समरूप होना चाहिए। टिब्यूनल ने यह भी कहा कि केंद्रीय वेतन आयोग का पेंशन संशोधन का निर्देश बीएसएनएल से सेवा निवृत्त पेंशन भोगियों के लिये भी लागू होना चाहिए। इस प्रकार बिना किसी लाग-लपेट के यह आदेश पेंशन संशोधन को स्थापित करता है। आदेश को लागू करने का दस सप्ताह का समय दिया गया जो समाप्त हो चुका है। दस सप्ताह बीतने  के उपरांत भी न्यायाधिकरण का आदेश न तो लागू हुआ है और न तो इसे हाई कोर्ट में चैलेंज ही किया गया है। 

यहाँ बड़े ही खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि दूर संचार विभाग में ये हो क्या रहा है, ये क्यों अराजक सी स्थिति  है कि एक तरफ़ तो दूर संचार विभाग बीएसएनएल से सेवा निवृत्ति के उपरांत सातवें वेतन आयोग अथवा केंद्रीय उपक्रमों के लिए तीसरे वेतन आयोग के द्वारा अनुशंसित वेतनमान  के अनुसार पेंशन संशोधन की फाइल चलाता है और दूसरी तरफ़ ठीक इसके विपरीत सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल के प्रिंसिपल बेंच दिल्ली में बीएसएनएल से सेवानिवृत्त पेंशन भोगियों के किसी भी पेंशन संशोधन को रोकने की ज़ोरदार क़वायद करता है । इस तरह का उदाहरण क्या केंद्रीय सरकार के किसी भी विभाग में देखा गया है ? हमारी सीमित जानकारी में हमें ऐसा नहीं लगता । 

मामला ऐसा है कि जब बीएसएनएल का गठन हुआ तो सरकार की नीतियों के मुताबिक़ दूर संचार विभाग के सभी कर्मचारियों और अधिकारियों को बीएसएनएल/एमटीएनएल में शामिल होना था । इस बात का विरोध ITS और P&TFAS कैडर के अधिकारियों ने ज़ोरदार तरीक़े से किया (इन दो कैडरों के अधिकांश अधिकारी बीएसएनएल/एमटीएनएल में absorb भी नहीं हुए ) और इसलिए आज भी बीएसएनएल में कार्यरत कर्मचारियों अथवा बीएसएनएल के सेवा निवृत पेंशन भोगियों के कल्याण या सुविधाओं से संबंधित किसी भी प्रस्ताव में ये व्यवधान डालते हैं । वर्तमान बीएसएनएल के सेवानिवृत्त पेंशन भोगियों के पेंशन संशोधन का प्रस्ताव इसी घालमेल का शिकार हो रखा है। दूरसंचार विभाग के संचार भवन में इन्हीं ITS एवं P&TAFS के अधिकारियों का वर्चस्व है और ये दूरसंचार विभाग में किसी भी सरकारी  निर्णय को बदलने और तोड़ने - मरोड़ने में लगकर व्यवस्था को प्रदूषित करते रहते हैं। 

बीएसएनएल के पेंशन भोगियों के पेंशन संशोधन में स्पष्ट पेंशन रूल 37A होने के बावजूद उपर्युक्त दो कैडर वाले ने हर बार प्रस्ताव को रोका और मंत्री तक को गुमराह किया जिस कारण मंत्री तक ने संसद में प्रश्नोत्तर में कहा कि बिना बीएसएनएल के कर्मचारियों के वेतन संशोधन के बीएसएनएल के सेवा निवृत्त पेंशनभोगियों का पेंशन संशोधन संभव नहीं और बीएसएनएल के लगातार घाटे में रहने के कारण वेतन आयोग के शर्त्तों के हिसाब से वेतन संशोधन संभव नहीं। इन्होंने DOP&PW के बीएसएनएल के सेवा निवृत्त पेंशन भोगियों के पेंशन संशोधन से संबंधित परामर्श को वर्षों तक लटकाकर रखा और इसे मंत्री तक प्रस्तुत ही नहीं किया। फिर मंत्री अश्विनी वैष्णव जी के निर्देश पर पेंशन संशोधन प्रस्ताव को पिछले साल आगे बढ़ाया तो शून्य वृद्धि के साथ और उस प्रस्तावित टिप्पणी में यह भी नेगेटिव कथन लिखा कि बीएसएनएल के सेवा निवृत्त पेंशन भोगियों के पेंशन वैसे ही पहले से ज्यादा है। इतना ही नहीं जब सातवें वेतन आयोग की पेंशन वृद्धि की अनुशंसा को सरकार ने 4 अगस्त,  2016 में स्वीकार कर आदेश पारित किया तो उसमें भी केंद्रीय उपक्रमों के पेन्शन संशोधन की बात मानी गयी थी और उस आदेश में स्पष्ट उल्लेख भी किया गया था , लेकिन इन दो कैडर के अधिकारियों ने इस निर्णय को फलीभूत ही नहीं होने दिया।

संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव जी ने कई बार विभिन्न पेंशन भोगी संगठनों से कहा कि बीएसएनएल के वेतन से बीएसएनएल के पेंशन वृद्धि का मामला डिलिंक कर दिया गया है जिससे पेंशन भोगियों के पेंशन वृद्धि में सर्वाधिक अड़चन दूर हो गया है। लेकिन उपर्युक्त दो कैडर के वर्चस्व ने संचार भवन को अपनी गिरफ़्त में इस कदर ले रखा है कि ये वेतन और पेंशन वृद्धि के डिलिंकिंग का मामला अधिसूचित नहीं हो पाया। जब आरटीआई के द्वारा इस बावत पूछा गया तो स्पष्ट रूप से कहा गया कि डिलिंकिंग का ऐसा कोई प्रस्ताव विचारार्थ नहीं है। श्री मान प्रधान मंत्री जी, ये दूरसंचार विभाग में हो क्या रहा है ? ऊपर जो बात एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल में लंबित पेंशन वृद्धि के मामले में हमने प्रस्तुत किया है यह चौंकाने वाली, आश्चर्य में डालने वाली और चिंताजनक है कि एक तरफ़ मंत्री पेंशन वृद्धि का प्रस्ताव बनवाते हैं, वेतन और पेंशन वृद्धि को डिलिंक करने की बात बार-बार दुहराते हैं, और दूसरी तरफ़ ट्रिब्यूनल में डायरेक्टर लेवल के ऑफिसर संचार विभाग के प्रतिनिधि के तौर पर भेजा जाकर पेंशन वृद्धि की बात का लिखित और मौखिक तौर पर भारी विरोध करते हैं, वेतन और पेंशन वृद्धि के संबंध को डिलिंक करने को हर संभव तर्क से नकारते हैं। यह घोर अराजकता है और स्पष्ट तौर से बताता है कि सरकार कैसे तत्वों को संचार भवन में प्रश्रय देती है जो बीएसएनएल के कर्मियों और पेंशन भोगियों के  न्यायोचित कल्याण की बात में  भी विरोधाभासी कदम उठाती है, अड़चन डालने का काम करती है , गुमराह करती है और टरकाती है।

हम एक बीएसएनएल पेंशन भोगी क्या सोचें ? क्या संचार मंत्री प्रधान मंत्री कार्यालय के दबाव में होते हैं कि पेंशन संशोधन से क्यों कुछ सौ करोड़ के अतिरिक्त दबाव सरकार पर पड़े ? क्या संचार मंत्रालय ऊपर कथित इन कैडरों के इंटेलेक्चुअल करप्शन की गिरफ़्त में है ? क्या IAS बैकग्राउंड वाले अश्विनी वैष्णव जी इन इंटेलेक्चुअली करप्ट ऑफ़िसरों की गिरफ़्त में काम करते हैं ? क्या सरकार किसी भी सूरत में बीएसएनएल पेंशन भोगियों को न्यायोचित पेंशन वृद्धि भी नहीं देना चाहती है ? प्रधानमंत्री श्री मान मोदी जी से करबद्ध निवेदन है कि पेंशन संशोधन के लिए स्पष्ट पेंशन रूल 37A के होते हुए भी ये जो तत्व हैं जो  मंत्री को , संसद को गुमराह करते हैं और बीएसएनएल के पेंशन भोगियों के पेन्शन संशोधन पर इंटेलेक्चुअल करप्शन करके मामले को अटकाते हैं, की जाँच करके उसे दंडित करके सिस्टम को साफ़ करेंगे ? क्या अब जब कि सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल के प्रिसिपल बेंच दिल्ली ने पेंशन वृद्धि में स्पष्ट आदेश दिया है उसको शीघ्र लागू करेंगे या इन इंटेलेक्चुअली करप्ट ऑफ़िसरों के परामर्श के अनुसार हाई कोर्ट/सुप्रीम कोर्ट  में मामले को लटकाएँगे और सभी साढ़े चार लाख बीएसएनएल/एमटीएनएल पेंशन भोगियों के तिल-तिल कर पेन्शन वृद्धि के इंतज़ार में स्वर्गीय होने का इंतज़ार करेंगे ?

श्रीमान जी, ऊपर जो बातें हमने बीएसएनएल के लिए की है वही पेंशन वृद्धि के लिए एमटीएनएल के लिए भी सच है। अतः ये सारी बातें बीएसएनएल/एमटीएनएल के लिये मानी जाएँ। हम विभिन्न आदेशों अथवा अन्य दस्तावेज को यहाँ संलग्न नहीं कर रहे हैं क्योंकि ये प्रतिवेदन तब भारी-भरकम हो जाएगा। वैसे भी सारे तथ्य संचार मंत्रालय के संबंधित अनुभाग में उपलब्ध है और बीएसएनएल/एमटीएनएल का हर पेंशन भोगी एवं संचार भवन का हर संबंधित कर्मचारी और अधिकारी इन तथ्यों से पूर्णतः अवगत होना चाहिए । 

अंत में हम हमारे प्रिय प्रधानमंत्री जी से आशा कर सकते हैं कि ये पत्र आपके पास ज़रूर पहुँचेगा और इस पर अविलंब दो तरह की कार्रवायी होगी : पहला , स्पष्ट पेंशन रूल 37A होने के बाद भी बीएसएनएल/एमटीएनएल के पेंशन भोगियों के पेंशन संशोधन के मामले को ईर्ष्या, द्वेष और अविवेकपूर्ण ढंग से उलझाने वाले, अटकाने वाले, टरकाने वाले और मंत्रियों तक को गुमराह करने वाले, बाल की खाल निकालने वाले संचार भवन में बैठे अधिकारियों के विरुद्ध इंटेलेक्चुअल करप्शन का मामला दर्ज हो और शीघ्र जाँच बैठे और सिस्टम की शीघ्र सफ़ाई हो ; दूसरा, बीएसएनएल/एमटीएनएल के पेंशन भोगियों के पेंशन संशोधन के लिए प्रिंसिपल बेंच, सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल , दिल्ली के आदेश के अनुसार उसे असीमित काल तक अटकाने के लिये उच्च अथवा उच्चतम न्यायालय में चैलेंज न कर एवं सरकार के वायदे के मुताबिक़ पेंशन रूल 37A का उपयोग करके सातवें वेतन आयोग की अनुशंसा के मुताबिक़ केंद्रीय सरकार के पेंशन भोगियों के समकक्ष और उनके समरूप पेंशन संशोधन की अति शीघ्र व्यवस्था की जाये, जिससे साल 2000 से अब तक बीएसएनएल/एमटीएनएल से सेवा निवृत्त हुए अधिकांश पेंशन भोगी जो सत्तर की उम्र को भी पार कर गये हैं, उनको पेंशन वृद्धि की और अधिक प्रतीक्षा न करनी पड़े और ये निरीह पेंशन भोगी केंद्रीय पेंशन भोगियों के साथ समानता से अपने न्यायोचित पेंशन वृद्धि को प्राप्त कर कुछ और वर्षों तक चैन से जी सकें।

जय हिन्द !

धन्यवाद के साथ हम हैं बीएसएनएल से सेवानिवृत्त एक पीड़ित पेंशन भोगी ,

अमर नाथ ठाकुर , फ्लैट - 4C , टावर-5, पनाश , महीष बथान , साल्ट लेक , सेक्टर - 5 , कोलकाता-700102.

मोबाइल नंबर : 6290169743/9434735796 ईमेल : thakuran@rediffmail.com







Wednesday, 1 November 2023

होता यहां नीम का एक पेड़

 

जहां तेज धूप की माया में

नीम की घनी छाया में 

रख देते एक खटिया

बिछा देते एक पटिया

तुम बैठते

वह बैठता

हम भी बैठते

फिर होती खट्टी - मीठी बतिया ।

राग -द्वेष स्वतः मिट जाते

क्यों स्वार्थ में फिर भटकते ।

पुलिस कचहरी की बात नहीं होती

जरूर करते एक दूसरे को नमस्ते ।


काका के घर की चीनी होती

भाई के घर का प्याला,

तुम चाय बनवाते

हम भिजवाते ठेकुआ का डाला ।

न घर तोड़ने की बात होती

और न होता कोई बंटवारा !


होता यहां नीम का एक पेड़

हम सब मिल बतिया लेते ढेर।


अमर नाथ ठाकुर,1 नवंबर, 2023, कोलकाता।

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...