कोई नहीं हो अपना
जब इस शहर में
नहीं घट सकती कोई दुर्घटना --
अनजाने को कौन जाने
जो कोई बन्दूक ताने
लूटें हमारे खजाने --
जरूरत भी क्या जो हम लगे यहाँ सजाने
धन , पद और गुमान की ढोल बजाने --
झुक -झुक कर जब काम चले
क्यों कोई चले यहाँ सीना ताने
और लोग बोलें पागल -दीवाने --
पके फल जब खुद गिरे
क्यों कोई पत्थर मारे --
मुस्की से जब काम चले
क्यों चले ठहाका लगाने --
फिर क्यों कोई देख ललचाए
और कुछ अनहोनी घट जाए
न कोई बने अपना --
क्यों घटे कोई दुर्घटना ---
अमर नाथ ठाकुर , ५ अप्रैल , २०१२.
Durghatna to ham banate hain
ReplyDeleteJab bichhare dil milte hain
to Ansu bahte hain
Dukhi dil milte hain
tab bhi to durghatna hoti hai
vaise durghatna na ho, ka sandesh bahut achha laga