जहां तेज धूप की माया में
नीम की घनी छाया में
रख देते एक खटिया
बिछा देते एक पटिया
तुम बैठते
वह बैठता
हम भी बैठते
फिर होती खट्टी - मीठी बतिया ।
राग -द्वेष स्वतः मिट जाते
क्यों स्वार्थ में फिर भटकते ।
पुलिस कचहरी की बात नहीं होती
जरूर करते एक दूसरे को नमस्ते ।
काका के घर की चीनी होती
भाई के घर का प्याला,
तुम चाय बनवाते
हम भिजवाते ठेकुआ का डाला ।
न घर तोड़ने की बात होती
और न होता कोई बंटवारा !
होता यहां नीम का एक पेड़
हम सब मिल बतिया लेते ढेर।
अमर नाथ ठाकुर,1 नवंबर, 2023, कोलकाता।
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