-१-
अलगनी पर फैला
भींगा-भींगा तौलिया मैला
उस पर कमीज़ और उसके ऊपर पायजामा
कपड़ों और सिर्फ कपड़ों का हंगामा .
बिछौने की सिलवटें
जैसे शब्दहीन आहटें
असंयमित तकिये तकिया के ऊपर
तिस पर असभ्य गंदा-सा चादर
फिर बगल में लंबायमान कंबल
जैसे कर रहा हो सबको बेदखल.
कोने-कोने में लटके मकड़ी के जाले
दरवाजे और खिडकी पर अधखुले परदे भोले-भाले.
फेरे कपड़ों का अंबार
बिखरे अखबार .
जंगले की जाली में पड़ी धूल की परतें
अधमोड़े फटे कालीन जैसे तोड़ती शर्तें .
रसोई का तो ढंग ही निराला
अंचार खुला है और बिखरा है मशाला
खरकटल जूठे बर्त्तनों के ढेर
सब्जियों के छिलके सेर-के-सेर
टिप-टिप-टिप-टिप करते नल
गिरे-पड़े-अधभरे पानी के बोतल
खुली तेल की शीशी
थाली कटोरा चम्मच चार
बासी भात बासी रोटी
तिस पर तैरती मक्खी तिलचट्टे बेशुमार .
बाथरूम का अधखुला दरवाजा
बेडरूम की अधखुली अलमारी
उटपटांग कुर्सियां असंतुलित स्टूल
की करती हुई घुड़सवारी.
उलटे चप्पल, करवट लिए जूते
और मौजे से रह-रह आते बास
खूंटी से उलटे टंगे लहराते
फटे कैलेण्डर के व्यंगपूर्ण अट्टहास.
तीन दिनों से पड़ी
आधी चाय वाली प्याली
टेबुल पर छोड़ती पेंदी की
वृत्ताकार भूरी निशानी .
टूथ-ब्रश डाइनिंग टेबुल पर
टूथ-पेस्ट विराजती बालकनी में
साबुन फ्रिज पर , हिंग गोली बाथरूम में
फर्श पर पड़ी चाभियां दांत बिचकाए भ्रम में.
भले ही न हो कोई कटाक्ष
और न हो कोई मजाक
न कोई ताली या गाली
घर बनेगा भूतन का डेरा
यदि न हो घर में घरवाली .
-२-
घर में व्यवस्था लाने वाली
अब यहाँ नहीं बसने वाली
वह घर की लक्ष्मी दुर्गा या काली.
जिस नारी से घर होता सुसज्जित
उस नारी से क्यों न हो देश व्यवस्थित
नारी नहीं अब सिर्फ घर का गहना
अब क्यों कोई जुल्म सहना
नारी सशक्तिकरण के उद्घोष से
नारी दिवस पर हनुमान सरीखी जोश से
गदा थामेगी अब घर वाली नारी .
नारी अब आँसू नहीं बहाएगी
नारी अब आँचल नहीं फैलाएगी
वात्सल्य पौरुष की निशानी बनेगी
घर-आँगन के बंधन तोड़ नारी
अब दुनिया चलाएगी .
दया माया करुणा ममता स्नेह
ये सब पुरुष तुम भी संभालो
नफरत दुश्मनी क्रोध हिंसा तोड़-फोड़ नारी-सुलभ
गुण भी बनेंगे , पुरुष ! ये मन तुम बना
लो.
Wah !!
ReplyDelete