Wednesday, 7 July 2021

दीप एक जला है

 शनैः शनैः दिन ढल रहा

पल-पल सूर्य मलिन हो रहा

घने काले बादलों में ओझल

नीचे शान्त नीरव भूतल

मन्द-मन्द शीतल-शीतल पवन

छुप-छुप गुदगुदाता तन-मन ।

 अँधियारी छाने लगी है

समझदारी जाने लगी है ।

हे ईश्वर ! कैसा ये विकट समय

गुनगुनाएँ तमसो मा ज्योतिर्गमय ।

एक अकेला निश्तेज चंद्र 

प्रकट हुआ है पहरेदारी में

मुस्करा-मुस्करा सहस्र तारे भी हैं

उसकी सेवादारी में ।


राह कँटीला है

जीवन पथरीला है

और दीप एक डटा है

तिल-तिल जो जला है

आशा और विश्वास में जो पला है

अकेले - अकेले यह लड़ा है

ठान लिया है इसने दृढ़ मन में

लड़ेगा सूरज निकलने तक इस जीवन में ।


अमर नाथ ठाकुर , 7 जुलाई, 2021,कोलकाता ।



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