Monday, 27 May 2024

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ



हर पल कुछ नया पाता हूँ

हर पल कुछ नया खोता हूँ

हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ 

मृत्यु के पहले जन्म का तय होना 

मृत्यु के उपरांत भी जन्म का होना 

इसलिए तो हर पल जन्म लेता हूँ ।



इस धरा के अनवरत घूर्णन से 

मौसम प्रति पल बदल जाता है

 विचार बदल जाता है

संगीत बदल जाता है

हर पल अपनी चाल बदल लेता हूँ

हर पल जन्म नया लेता  हूँ ।


बच्चे बड़े हो रहे होते हैं

जवान वृद्ध हो रहे होते हैं 

चेहरे की झुर्रियां अगणित बढ़ती जाती है

हर पल  जिंदगी चढ़ती जाती है

रंग बदलते रूप बदलते इस दुनियां में 

हर पल परिभाषा बदल देता हूँ

हर दिन हर पल जन्म नया पाता हूँ ।


आज वादा करता हूँ

कल वादे बदल देता हूँ

आत्मा वही होती है

क्योंकि प्रारब्ध बदल जाता है 

नव वस्त्र धारण जब कर लेता हूँ

हर दिन  जन्म नया लेता हूँ ।


हर पल दुःशासन जन्म पाता है

हर पल द्रौपदियां भी होती हैं

हर पल  चीर हरण होता है

हर पल नया शिशुपाल भी होता है 

हर क्षण गालियां बढ़ती जाती है

 हर क्षेत्र कुरुक्षेत्र बना होता है

हर पल एक महाभारत होता है

लेकिन मैं कुछ याद नहीं रखता हूँ 

क्योंकि हर पल मैं जन्म नया पाता हूँ ।


पांच गांव की कौन कहता है 

सूची अग्र पर भी समझौता नहीं करता हूँ

लेकिन छोड़ पूरा हस्तिनापुर देता हूँ

जब ईर्ष्या द्वेष से विस्मृत हो जाता हूँ

(जब सूक्ष्म शरीर में होता हूँ )

क्योंकि हर पल जन्म नया पाता हूँ ।


तुम मेरे मित्र हो या तुम मेरे शत्रु हो

क्या पता तुम अपने हो या तुम पराए हो 

न लेने का होश न देने का हवास

इस मतलबी दुनिया में नहीं कुछ निभाता हूँ

क्योंकि हर पल जन्म नया मैं लेता हूँ ।


कुछ मिले तो खा लेता हूँ

कुछ मिले खिला भी देता हूँ

लूट का भय नहीं होता है

क्योंकि संचित नहीं कुछ होता है

न अपना कोई घर होता है

न अपना कोई ठिकाना

मैं होता हूं रमता योगी

मैं होता हूं बहता पानी

हर पल विचरण में होता हूँ

हर पल कल - कल चलता रहता हूँ


हर पल गीत नया गुनगुनाता हूँ

हर पल जन्म नया पाता  हूँ ।


अमर नाथ ठाकुर, 27 मई, 2024, कोलकाता।






Saturday, 13 April 2024

राम ही राम


तन में मन में धन में 

घर में गाँव में देश में 

जहाँ देखो वहाँ राम ।

हर गली  हर कूचे में 

हर झोंपड़ी हर महल में 

हर रथ पे हर पताके पे राम ।

यत्र तत्र सर्वत्र राम ।

हर कोई पुकारे राम।


चिड़ियों के कलरव में

वन उपवन में पुष्पों में 

सूर्य की असंख्य रश्मियों में 

शिशुओं की खिलखिलाहट में 

असहायों की चीख चीत्कार में 

जन मानस के हर अश्रु में राम ।

हर अश्रु पुकारे राम।


जटायु के सुग्रीव के राम

शबरी के  केवट के राम 

हनुमान के विभीषण के राम,

 जन जन के राम ।

जन जन पुकारे राम।



ढोल मजीरे  पैजनियां में

वंशी में शहनाई में राम

प्राती में साँझ में 

सोहर में समदौन में 

हर राग विराग में राम ।

हर राग पुकारे राम।


वसंत में वर्षा में 

चिलचिलाती धूप हो 

या हो कड़ाके की सर्द शाम 

हर मौसम में राम ।

चैती हो या फाग की अठखेली

सीता मां हो या सीता मां की सहेली

हर संगीत में हर  जिह्वा पे राम ।

हर संगीत पुकारे राम।


विदाई में मिलन में 

हर नमस्ते में राम।

बिलखते में हंसते में 

दुःख में सुख में 

जन्म में मृत्यु में 

प्रेम में विषाद में 

हर प्रहर में हर क्षण में राम ।

हर क्षण पुकारे राम।


ऊपर नीचे इधर उधर 

जल में अग्नि में दिशाओं में 

आकाश में पाताल में हवा में 

सभी  पंच तत्वों  में राम।

हर तत्त्व पुकारे राम।


आंखों में कानों में 

सांसों में रोम-रोम में 

हर कदम -कदम पे राम।

राम ही राम।

हर रोम पुकारे राम।


तौल में गिनती में 

जीवन की हर क्रिया कलाप में 

जीवन के पूर्व जीवन के परे राम

राम ही राम राम मय राम।

हर राम पुकारे राम।


हममें तुममें उसमें सबमें 

हर जीव में हर निर्जीव में 

नदी में पहाड़ में राम

स्वयं राम में भी राम ।

हर कण पुकारे राम।


अयोध्या में आए राम

इसलिए अयोध्या धाम 

भारत में राम 

इसलिए भारत धाम।

आज तन पुलकित

आज मन प्रफुल्लित

ठुमक चले जब राम ।

हर गांव पुकारे राम।


राम लला का मान

मान रख मर्यादा का राम।

रे मन ! आओ भजें राम 

मर्यादा पुरुषोत्तम राम !

राम राम राम राम !

राम राम राम राम !


अमर नाथ ठाकुर, कोलकाता , 24 जनवरी, 2024.

Wednesday, 24 January 2024

राम ही राम

तन में राम 

मन में राम 

धन में राम

यत्र सर्वत्र 

राम ही राम ।


घर में राम

गांव में राम

देश में राम

जहां देखो

वहां राम ।

इस गली में राम

उस कूचे में राम

झोंपड़ी में राम 

महल में राम

रथ पे राम

पताके पे राम ।


चिड़ियों के कलरव में राम

वन उपवन में पुष्पों में राम

सूर्य की असंख्य रश्मियों में राम ।

हर खिलखिलाहट में राम

हर चीत्कार में राम

हर आंसू में राम ।


जटायु के राम

सुग्रीव के राम

शबरी के राम

केवट के राम 

हनुमान के राम

जन जन के राम ।


ढोल मजीरे 

पैजनियां में राम

शहनाई में राम

फूलों के पराग में राम

प्राती में संध्या में राम

सोहर में राम

समदौन में राम

हर राग विराग में राम ।

वसंत में राम

वर्षा में राम

चैती हो या फाग की अठखेली

सीता मां हो या सीता मां की सहेली

सबकी जिह्वा पे राम ।


विदाई में राम 

मिलन में राम 

नमस्ते में राम 

हंसते में राम

दुःख में राम

सुख में राम

जन्म में राम 

मृत्यु में राम

प्रेम में राम

विषाद में राम

कण कण में राम

क्षण क्षण में राम

जन जन में राम ।


ऊपर राम

नीचे राम 

इधर राम

उधर राम

जल में राम

अग्नि में राम

दिशाओं में राम

आकाश में राम

पाताल में राम

पंच तत्व में राम।


आंखों में राम

कानों में राम 

सांसों में राम

रोम रोम में राम ।

कदम कदम पे राम।

राम ही राम।


तौल में राम

गिनती में राम

जीवन की हर क्रिया में राम

जीवन के पूर्व राम

जीवन के परे राम

राम ही राम

राम मय राम।


हममें राम

तुममें राम

उसमें राम

सबमें राम

हर जीव में राम

निर्जीव में राम

नदी में राम

पहाड़ में राम

राम में भी राम ।


अयोध्या में आए राम

इसलिए अयोध्या धाम 

भारत में राम

इसलिए भारत भी धाम

तन पुलकित

मन प्रफुल्लित

ठुमक चले जब राम ।


राम लला का मान

मान रख मर्यादा का राम।

रे मन ! आओ भजें राम 

मर्यादा पुरुषोत्तम राम !

राम राम राम राम !


अमर नाथ ठाकुर, कोलकाता , 24 जनवरी, 2024.









Tuesday, 9 January 2024

राम आ रहे हैं

 राम आ रहे हैं 

जो जगत के धर्त्ता हैं  

जो सबके दुःख हर्त्ता हैं 

जो सबके पालन कर्त्ता हैं 

वो राम आ रहे हैं ।

कोर्ट ने आदेश दिया है 

इसलिए राम आ पा रहे हैं ।

राम रथ पर आएँगे 

रथ भक्त खींचेंगे 

कोर्ट ने कह दिया है 

अब राम को आना ही पड़ेगा ।

राम रुक नहीं सकते 

यह उनके सामर्थ्य में नहीं कि रुक जाएँगे 

कोई ऐसा सामर्थ्यवान नहीं कि राम को रोक दें 

राम को आना ही पड़ेगा 

कोर्ट की मर्यादा राम की मर्यादा से ऊपर कैसे हो सकती ?

राम का सामर्थ्य राम की मर्यादा से आगे कैसे !

क्योंकि मर्यादा का भी सामर्थ्य होता है 

इसलिए राम आ रहे हैं !

नाचो गाओ ख़ुशी मनाओ रे !

राम आ रहे हैं।

दीये जलाओ 

पटाखे चलाओ 

राम आ रहे हैं।



शासन बदलेगा 

तो वो प्रतिशोध लेगा 

फिर कोर्ट निर्णय बदलेगा 

क्योंकि उनकी मर्यादा उतनी  ही है ।

कहते हैं फिर राम का घर तोड़ेंगे 

फिर राम ठठरी में विराजेंगे ।

राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं 

राम को क्रोध नहीं आता 

राम प्रतिशोध नहीं लेते 

राम नहीं रोते ।

उनके प्रतिशोध को राम पूरा होने देंगे 

यह राम की मर्यादा है।


तब दशरथ ने आदेश दिया था 

और राम को वन जाना पड़ा था

अब कोर्ट ने  आदेश दिया है 

इसलिए राम आ रहे हैं ।

राम कोर्ट की अवमानना  नहीं कर सकते 

राम किसी को दुःख नहीं पहुँचाते 

मर्यादा पुरुषोत्तम हैं राम ।

राम आ रहे हैं 

राम को आना ही पड़ेगा ।


फिर जब व्यवस्था बदलेगी 

तो फिर राम वनवास को जाएँगे 

वन और पहाड़ की खाक छानेंगे ।

पूरा ब्रह्माण्ड दुःखी  होगा ।

सिर्फ़ सीता माँ और लक्ष्मण भाई ही क्यों 

पूरा जगत राम के साथ वन में होगा !

रावण को भी होना होगा 

क्योंकि रावण के होने से मर्यादा परिभाषित होती है ।

फिर कोई निर्णय आएगा 

मर्यादा वाला निर्णय ।

फिर राम आएँगे

आना ही पड़ेगा

क्योंकि राम जगत के स्वामी हैं।

मर्यादा पुरुष हैं।

राम की मर्यादा अनंत है अप्रतिम है ।

उन्हें किसी भी निर्णय को मानना ही पड़ेगा।

राम अब वाण नहीं चलाते ।

तरकश जो भरा हुआ है 

और धनुष जो तना हुआ है 

लेकिन हमको मालूम है 

ये संहारक वाण नहीं निकालेंगे 

और संहारक वाण नहीं भी चलाएँगे ।

राम को मर्यादा पसंद हैं 

राम जगत के खेवनहार हैं  

वह हम आपकी मर्यादा में विघ्न नहीं आने देते हैं।

वह हमें दुःखी नहीं कर सकते ।


राम का वन जाना आना लगा रहेगा 

हर युग में और मर्यादा में !


ऐसे हमारे राम आ रहे हैं।

नाचो रे , गाओ रे , ख़ुशी मनाओ रे !

हमारे आपके सबके राम आ रहे हैं !

राम आ रहे हैं !



अमर नाथ ठाकुर ,  9 जनवरी , 2024, कोलकाता ।






मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...