मैं हर पल जन्म लेता हूँ
हर पल कुछ नया पाता हूँ
हर पल कुछ नया खोता हूँ
हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ
मृत्यु के पहले जन्म का तय होना
मृत्यु के उपरांत भी जन्म का होना
इसलिए तो हर पल जन्म लेता हूँ ।
इस धरा के अनवरत घूर्णन से
मौसम प्रति पल बदल जाता है
विचार बदल जाता है
संगीत बदल जाता है
हर पल अपनी चाल बदल लेता हूँ
हर पल जन्म नया लेता हूँ ।
बच्चे बड़े हो रहे होते हैं
जवान वृद्ध हो रहे होते हैं
चेहरे की झुर्रियां अगणित बढ़ती जाती है
हर पल जिंदगी चढ़ती जाती है
रंग बदलते रूप बदलते इस दुनियां में
हर पल परिभाषा बदल देता हूँ
हर दिन हर पल जन्म नया पाता हूँ ।
आज वादा करता हूँ
कल वादे बदल देता हूँ
आत्मा वही होती है
क्योंकि प्रारब्ध बदल जाता है
नव वस्त्र धारण जब कर लेता हूँ
हर दिन जन्म नया लेता हूँ ।
हर पल दुःशासन जन्म पाता है
हर पल द्रौपदियां भी होती हैं
हर पल चीर हरण होता है
हर पल नया शिशुपाल भी होता है
हर क्षण गालियां बढ़ती जाती है
हर क्षेत्र कुरुक्षेत्र बना होता है
हर पल एक महाभारत होता है
लेकिन मैं कुछ याद नहीं रखता हूँ
क्योंकि हर पल मैं जन्म नया पाता हूँ ।
पांच गांव की कौन कहता है
सूची अग्र पर भी समझौता नहीं करता हूँ
लेकिन छोड़ पूरा हस्तिनापुर देता हूँ
जब ईर्ष्या द्वेष से विस्मृत हो जाता हूँ
(जब सूक्ष्म शरीर में होता हूँ )
क्योंकि हर पल जन्म नया पाता हूँ ।
तुम मेरे मित्र हो या तुम मेरे शत्रु हो
क्या पता तुम अपने हो या तुम पराए हो
न लेने का होश न देने का हवास
इस मतलबी दुनिया में नहीं कुछ निभाता हूँ
क्योंकि हर पल जन्म नया मैं लेता हूँ ।
कुछ मिले तो खा लेता हूँ
कुछ मिले खिला भी देता हूँ
लूट का भय नहीं होता है
क्योंकि संचित नहीं कुछ होता है
न अपना कोई घर होता है
न अपना कोई ठिकाना
मैं होता हूं रमता योगी
मैं होता हूं बहता पानी
हर पल विचरण में होता हूँ
हर पल कल - कल चलता रहता हूँ
हर पल गीत नया गुनगुनाता हूँ
हर पल जन्म नया पाता हूँ ।
अमर नाथ ठाकुर, 27 मई, 2024, कोलकाता।