राज नेता समय गँवाते कांव – कांव में ।
राष्ट्र को छोड़ डगमगाती नाव में
।
मुंगेरी लाल के हसीन ख्वाब में
।
अशर्फ़ियाँ ढूँढती सरकार उन्नाव
में ।
फिर वादे होंगे अगले चुनाव में
।
मंहगाई फुनगी छूती , किलो बिकता पाव
में ।
नेताओं ने नमक डाली है घाव में
।
सब कुछ पढ़ लो भाई उसके हाव – भाव
में ।
जनता अब आ रही ताव में ।
जाग - जाग भाई शहर में और गाँव
में ।
यदि समय बिताना है अगला पाँच बरस
छांव में ।
लगा दो सब कुछ इस बार दांव में
।
बदल डालो व्यवस्था , मिटा डालो गंदगी
!
कूद पड़ो चुनाव क्षेत्र में , हे बहना , हे संगी !
अमर नाथ ठाकुर , 23 अक्तूबर , 2013 , कोलकाता ।
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