जिसका रूप नहीं
वह है हर रूप में
जिसका रंग नहीं
वह है हर रंग में
जो इस जगह नहीं
वह है हर जगह में
जिसका कोई घर नहीं
किन्तु सब हैं उसके घर में
जिससे कोई छोटा नहीं
किन्तु जिससे कोई बड़ा भी नहीं
जो सब में है
जिसमें सब है
उसकी कोई छाया नहीं
सब किन्तु हैं उसकी छाया में
स्वयं जो अदृश्य है
किन्तु जो सबको है देखता
जिसको हम नहीं सुनते
किन्तु जो सबको है सुनता
जिसकी आहट हम नहीं पाते
किन्तु जो सबकी आहट लेता
जिसे हम नहीं गिन सकते
किन्तु जो सबकी है गिनती रखता
सबका प्रसाद वह ग्रहण करता है
सब उसका ही प्रसाद है ग्रहण करता
वह राजा की चाह में है
वह दरिद्र की आह में है
दुश्मनों की डाह में है वह
दोस्तों की वाह-वाह में है वह
उसे नहीं कोई मार सकता
वह सबको किन्तु है तारता
नहीं उसका कोई पालन करता
वह सबका है पालन करता
उसकी नहीं है कोई काया
किन्तु सत्य उसका साया
कौन है वह
क्या है वह
कहाँ है वह
किस कण में है वह
कण-कण में है वह
वह अक्षय अक्षुण्ण आनंद स्रोत
पग-पग राह दिखाता असीम अनंत ज्योति
स्वामी विवेकानंद से अभिप्रेरित
अमर नाथ ठाकुर , 12 जनवरी , 2015 , कोलकाता ।
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