भवदारा भयहारा नाम सुना है तुम्हारा
तारो या न तारो तुम्हारे ऊपर है भार सारा
माँ तुम हो ब्रह्मांड व्यापक तुम ही ब्रह्मांड धारिणी सारा
न जाने तुम काली हो या हो राधा रानी
तुम घट-घट निवासिनी ओ जननी
मूलाधार कमल की कुंडलिनी
सुषुम्ना में ऊपर उठती स्वाधिष्ठान तक
फिर शनैः-शनैः चतुर्दल अधिष्ठान तक
चतुर्दल में निवासनेवाली कुलकुंडलिनी
षटदल वज्रासन में वसनेवाली
मानिनी
उससे ऊपर नाभिस्थान में मणिपुर चक्र धाम
वहाँ नीलवर्ण दशदल कमल सुनाम
सुषुम्ना पथ से आओ जननी
कमल कमल में रुको कमल रूपिणी
उसके ऊपर सुधा सरोवर
रक्त वर्ण द्वादश दल पद्म मंदिर
कर दो माँ पादपद्म से पद्म प्रकाश
हृदय में विभावरी तिमिर विनाश
और ऊपर जो है कंठस्थल
धूम्र वर्ण पद्म षोडशदल
इस पद्म के मध्य में अंबुज प्रकाश
यह आकाशरुद्ध सारा ही है आकाश
और ऊपर ललाट स्थान में द्विदल कमल
जिसे पाने को हर कोई विह्वल
जिसे पाने को हर कोई विह्वल
जहां हो जाता मन सदा आबद्ध
आनंद में रहना चाहता मन वहाँ निबद्ध
उससे भी ऊपर मस्तक में अति मनोहर
सहस्रदल पद्म है क्योंकि उनके भीतर
परम शिव है स्थित तहाँ
माँ आद्याशक्ति जितेंद्रिय जहाँ
ध्यावें योगींद्र मुनीन्द्र नगेन्द्र्कुमारी
वहाँ ही शिव की शक्ति माँ तुम सारी
तुम आद्याशक्ति तुम पंचतत्व तुम तत्वातीत निर्विकार
माँ पार करा दो भवसागर नाश करो वासना अहंकार
हे माँ तूँ साकार तूँ ही है निराकार !
कथामृत से साभार , रामकृष्ण परमहंस द्वारा गाये जाने वाले बांगला
भजन का मेरे द्वारा हिन्दी रूपान्तरण ।
अमर नाथ ठाकुर , 13 मार्च , 2015 , कोलकाता ।
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