वीर जब निकल पड़ते हैं
बाधाएँ विकल हो उठते हैं
काँटे पथ के फूल बन जाते हैं
रोड़े पैरों की धूल बन जाते हैं
वीर जब निकल पड़ते हैं
वीर तब रौंदते चलते हैं
वीर तब रौंदते चलते हैं
खड्ड मैदान सपाट बन जाते हैं
नदी तालाब नावों के खाट बन जाते हैं
वीर जब निकल पड़ते हैं
वीर तब दहाड़ मारते हैं
वीर तब दहाड़ मारते हैं
शेर सवारी के लिए तैयार रहते हैं
हाथी रखवाली को साभार रहते हैं
वीर जब निकल पड़ते हैं
पहाड़ भरभराने लगते हैं
सागर थरथराने लगते हैं
नारों पर भीड़ उमड़ने लगती है
इशारों पर भीड़ बिखरने लगती है
वीर जब निकल पड़ते हैं
वीर जब निकल पड़ते हैं
सूरज उनके पीछे होता है
चाँद उनके नीचे होता है
आसमान पाताल की ओट में होता है
तारे चरणों की धूल चाट रहा होता है
वीर जब निकल पड़ते हैं
पत्थर भी पिघल पड़ते हैं
बिजलियाँ कड़क राह दिखलाती हैं
मेघों का गर्जन-तर्जन विजय-स्वर सुनाता है
लोट-लोट कर वृक्ष पल्लव तन को सहलाता है
वीर जब निकल पड़ते हैं
दिशाएँ दल - मल दल - मल करते हैं
पथ के अंगारे बुझने लगते हैं
समुद्र दो फाँक हो जाता है
लक्ष्य तूफान बन स्वयं आ पड़ता है
वीर जब निकल पड़ते हैं
अंधेरे भी जाग उठते हैं
वीर सत्य , ईमान की ढाल में चलते हैं
मेहनत , कर्त्तव्यनिष्ठा की खाल में मचलते हैं
समता-एकता के पताके तब लहराने लग जाते हैं
वीर जब निकल पड़ते हैं
वीर जब निकल पड़ते हैं
चेलों के दल के दल बन पड़ते हैं
चोर-लूटेरे दूर भाग पड़ते हैं
दीनों-निर्बलों के दिन फिर जाते हैं
अत्याचारी सिर पीट-पीट कर रह जाते हैं
वीर जब निकल पड़ते हैं
वीर ही सिर्फ सफल होते हैं
कायर तो पग-पग पर विफल होते हैं ।
वीर जब निकल पड़ते हैं ।
वीर जब निकल पड़ते हैं ।
अमर नाथ ठाकुर , 8 जुलाई , 2015 , कोलकाता ।
Aaj ki din me kitne veero ko pitche se chaku mar diya jata hain, Lekin veerta ko khotom nehi kiya ja sakhta hai. Ek bolodan dega to dash AAA jayega. Kitne ko khotom koroge eisa ? Isse bhalai isi me hain ki apne me kaerota ko khotom kor do aur khud hi veer ban jao.
ReplyDeleteमेरा भी ऐसा ही कहना है जदु जी ।
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