Sunday, 29 May 2016

भीड़ में सब तत्क्षण है



ये भीड़ थमती नहीं
क्योंकि ये भीड़ थकती नहीं ।

ये भीड़ कमती भी नहीं
इसमें किसी की चलती नहीं ।

 यहाँ न कोई भ्रम है
चाहे न कोई क्रम है ।

जहाँ हर कोई बोलेगा
जहाँ न कोई सुनेगा ।

लोग नहीं यहाँ बिछुड़ते हैं
क्योंकि यहाँ तो लोग जुड़ते हैं ।

यहाँ लोग अनजान मिलेंगे
लोग पहचान के भी मिलेंगे ।

 यहाँ नहीं कोई खून-खराबा होता
तो भी यहाँ शोर-शराबा होता ।
यहाँ होता है कुतूहल पूर्ण कोलाहल
और उत्तेजना पूर्ण बरबस हलचल ।

यहाँ भीड़ में जेब कतरे होते हैं
इसमें लोग साफ़ सुथरे भी होते हैं ।

भीड़ में कौन किसकी सुनता है
जब कोई खुद की नहीं गुनता है ।

यहाँ लोग बहकते हैं
किन्तु लोग नहीं दहकते हैं ।

यहाँ भीड़ भी सहमती है
क्योंकि भीड़ में सहमति है ।

लोग जब साथ में होते हैं
लोग तब ठाट में रहते हैं ।

यहाँ की भीड़ मुझे हमेशा  भाती है
नहीं यहाँ कोई भेद-भाव सताती है ।

यहाँ न जान का खतरा होता है
क्योंकि यहाँ न मान का बखरा होता है ।

लोग यहाँ भीड़ में नहीं झगड़ते
क्योंकि यहाँ बातों पर नहीं भड़कते ।

भीड़ की  नहीं कोई जाति है
भीड़ का नहीं कोई धर्म ।
क्षण कुछ भीड़ में बिताओ
जान लोगे  भीड़ का मर्म ।

भीड़ में सब तत्क्षण है
इसलिये नहीं कोई आरक्षण है ।

क्या गाऊं यहाँ के भीड़ की महिमा
क्या दूँ यहाँ की भीड़ को उपमा ।

(हावड़ा और सियालदह स्टेशन की भीड़ से प्रेरणा पाकर)

अमर नाथ ठाकुर , 7 नवम्बर  , 2015 , कोलकाता ।





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