ये भीड़ थमती नहीं
क्योंकि ये भीड़ थकती नहीं ।
ये भीड़ कमती भी नहीं
इसमें किसी की चलती नहीं ।
यहाँ न कोई भ्रम है
चाहे न कोई क्रम है ।
जहाँ हर कोई बोलेगा
जहाँ न कोई सुनेगा ।
लोग नहीं यहाँ बिछुड़ते हैं
क्योंकि यहाँ तो लोग जुड़ते हैं ।
यहाँ लोग अनजान मिलेंगे
लोग पहचान के भी मिलेंगे ।
यहाँ नहीं कोई खून-खराबा होता
तो भी यहाँ शोर-शराबा होता ।
यहाँ होता है कुतूहल पूर्ण कोलाहल
और उत्तेजना पूर्ण बरबस हलचल ।
यहाँ भीड़ में जेब कतरे होते हैं
इसमें लोग साफ़ सुथरे भी होते हैं ।
भीड़ में कौन किसकी सुनता है
जब कोई खुद की नहीं गुनता है ।
यहाँ लोग बहकते हैं
किन्तु लोग नहीं दहकते हैं ।
यहाँ भीड़ भी सहमती है
क्योंकि भीड़ में सहमति है ।
लोग जब साथ में होते हैं
लोग तब ठाट में रहते हैं ।
यहाँ की भीड़ मुझे हमेशा भाती है
नहीं यहाँ कोई भेद-भाव सताती है ।
यहाँ न जान का खतरा होता है
क्योंकि यहाँ न मान का बखरा होता है ।
लोग यहाँ भीड़ में नहीं झगड़ते
क्योंकि यहाँ बातों पर नहीं भड़कते ।
भीड़ की नहीं कोई जाति है
भीड़ का नहीं कोई धर्म ।
क्षण कुछ भीड़ में बिताओ
जान लोगे भीड़ का मर्म ।
भीड़ में सब तत्क्षण है
इसलिये नहीं कोई आरक्षण है ।
क्या गाऊं यहाँ के भीड़ की महिमा
क्या दूँ यहाँ की भीड़ को उपमा ।
(हावड़ा और सियालदह स्टेशन की भीड़ से प्रेरणा पाकर)
अमर नाथ ठाकुर , 7 नवम्बर , 2015 , कोलकाता ।
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