Sunday, 6 May 2018

मालूम होता है यह अपना शहर है

मालूम होता है यह अपना ही शहर है

ढेर के  ढेर पड़े कूड़े सड़क किनारे
उस कूड़े में मरे चूहे बहुतेरे 
तिस पर उछल-कूद करते कौए
रेंगते  कीड़े,भिनभिनाती मक्खियाँ और ततैये  
दुर्दान्त दुर्गन्ध का कहर है ।
मालूम होता है यह अपना ही शहर है !

ओवरफ्लो होता सीवर का काला काला पानी
सड़क बीच बिना कवर का मेनहोल विनाशकारी
जगह -जगह दीवाल पर पेशाब करते खड़े लोग
और उससे आती भीषण बदबू का जहर है ।
मालूम होता है यह अपना ही शहर है !


सरसराती सरपट भागती गाड़ियाँ
गड्ढों से  पानी छिटकाती गाड़ियाँ 
दुबकते सहमते चलते लोग
सड़क में गड्ढे हैं या गड्ढों में सड़क है ।
मालूम होता है यह अपना ही शहर है !

एम्बुलेंस को भी ओवरटेक करती गाड़ियाँ
सायरन बजाती  नेताओं वाली गाड़ियाँ
रौंग साइड से भी तीव्र गति में गुजरती सवारियाँ
चौराहे पर लाल बत्ती पर भी जो ढाए कहर है ।
मालूम होता है यह अपना ही शहर है !

बस , ट्रेन के छत पर सफर करते लोग
ट्रेन की खिड़की से लटकती सायकिलें
बस की खिड़की से लटकते  दूध के कैंटर
ऑटो ड्राइवर के दाहिने भी बैठी सवारियाँ
सड़क बीच भी चढ़ती-उतरती सवारियाँ
यह ऐसा कैसा लॉ एंड ऑर्डर है ?
मालूम होता है यह अपना ही शहर है !

धुआँ छोड़ती गाड़ियाँ बेशुमार
हॉर्न बजाती गाड़ियों की भरमार 
तौर तरीक़े सब तार तार 
सड़क पर प्रदूषण की  यह कैसी  लहर है ?
मालूम होता है यह अपना ही शहर है !


बीच सड़क पर पगुराती गायें
चहलकदमी करती भैंस, बकरे-बकरियाँ 
 ट्रैफिक नियम को धता बताते ।
सड़क किनारे की झुग्गी झोंपड़ियाँ
और शौच करते बच्चों की किलकारियाँ
स्वच्छता अभियान का मज़ाक उड़ाते।
हार छिनने की बातें , 
मोबाइल झपटने की करामातें ,
सड़क पर घटती हर क्षण और हर प्रहर है ।
मालूम होता है यह अपना ही शहर है !

ऑफिस के कोनों में थूकते कर्मचारी
पान और खखार से सने पटे दीवार
टॉयलेट से आते पेशाब की बदबू अपार 
चोक हो रखा पानी से भरा वाश बेसिन
लिफ्ट रोककर मिनटों बतियाते लोग
गेट पर झपकी लेते सेक्युरिटी के जवान
नहीं कहीं कोई कुछ भी जैसे उलट- पलट और गड़बड़ है ।
मालूम होता है यह अपना ही शहर है !

सड़क किनारे हनुमान की मूर्त्तियों के पहरे
बस स्टेशन पर, पार्क में,सड़क किनारे
चादर फैलाए नमाज़ पढ़ते मौलवी बहुतेरे
मन्दिर में आरती , मस्ज़िद में कान फाड़ू अज़ान
भीड़ भरे बाज़ार में भी लुटते लोक-जहान  
अपहरण  और  रेप  की    घटना आम  ।     
गोली चले,बम फूटे फिर भी पब्लिक बेखबर है ।
मालूम होता है यह अपना ही शहर है !

जिस शहर में भी जाता हूँ कठिन नहीं गुज़र बसर है ।
शहर की वही दिनचर्या है शहर का वही जीवन चक्र है ।
और मालूम होता है हर शहर ही अपना शहर है !

अमर नाथ ठाकुर , 6 मई , 2018 , मेरठ ।


























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