Sunday, 14 July 2013

केदार का तांडव या भागीरथी का भटकाव



तबकी गंगा के घमंड को तोड़ शिव ने जटा में समायी थी --
कठोर तप उपरांत भगीरथ ने सगर-संतति को मुक्ति दिलायी  थी --

तब पग-पग पर गंगा भटकी थी -
घाटी -घाटी में मटकी थी -
कभी गौ ने कभी ऋषि ने गटकी थी -
भगीरथ-प्रयास से गंगा सागर तक में फुदकी थी --

कुपित कपिल से शापित जो -
सगर के साठ सहस्र संतति को -
मिली थी आत्मा की शान्ति जो -

क्या अब भी शेष भ्रान्ति थी -
उसके बाद अब क्या जरूरत थी -
अपने पथ पर तो  बह रही अनवरत थी -

क्या यह केदार के तांडव का था प्रादुर्भाव --
या केदार की जटा में फिर से उलझी भागीरथी का भटकाव --

अमर नाथ ठाकुर , २८ जून , २०१३, कोलकाता .

No comments:

Post a Comment

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...