जब माला से फूल बिखरने लगे
जब हार से मोती निकलने लगे
जब परिवार से सदस्य बिछुड़ने
लगे
जब प्रेम-जीवन में गालियाँ चलने
लगे
तो फिर क्या बच जाता है ?
विश्वास में शंका वास करने लगे
जब भक्ति में स्वार्थ दिखने लगे
जब प्रसाद में कंकड़ मिलने लगे
जब पके आम में कीड़े सहरने लगे
तो फिर क्या बच जाता है ?
जब स्कूल से बच्चे ही मुकरने लगे
जब संगीत के स्वर गायब होने लगे
जब गीत से लय जाने लगे
जब सितार के तार टूटने लगे
तो फिर क्या बच जाता है ?
जब किताब के पन्ने फटने लगे
जहाज के सम्मुख चट्टान मिलने लगे
जब खड्ड में सड़क विलीन होने लगे
पिंजड़ा खुल जाए और परिंदा उड़ने
लगे
तो फिर क्या बच जाता है ?
जब आत्म-विश्वास ही डिगने लगे
घोड़ा दब जाए तोप से गोले दगने
लगे
जब शरीर से प्राण –पखेरू उड़ने
लगे
तो फिर क्या बच जाता है ?
अमर नाथ ठाकुर , 10 जून , 2014 , कोलकाता ।
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