जाड़े में दिन में तेज़ धूप वाला सूरज हो
रात में सामने दहकती आग का शोला न्यारा
गर्मी में दिन में शीतल पवन हो
और रात में श्वेत धवल चन्दा प्यारा ।
वर्षा में उमड़ते-घुमड़ते बादलों के बीच बूँदा-बाँदी हो
और चमकती कड़कती बिजली का इशारा
बसन्त में पौधों-फसलों की हरी-हरी चादर हो
और रंग-बिरंग मुखरित मंजरित पुष्पों का नज़ारा ।
न कोई बर्फीली शीतलहरी हो न कंप-कंपाती ठिठुराती ठंढ
सुबह सबेरे न कोई कुहरे की मार हो रात में न कोई धुंध ।
ग्रीष्म में न कोई सनसनाती लू हो न ऊमष की चिट चिट करती मार हो
न उफनती नदी हो न टूटता बाँध और न कोई बाढ़ की ही हुँकार हो ।
तो क्यों हम जंगल बिगाड़ें क्यों करें प्रकृति से खिलवाड़
क्यों पर्यावरण प्रदुषण का खेल हो क्यों कोई उजाड़ ।
पर्वत हमें सुशोभित करते रहें नदियाँ बहती रहे लगातार ,
जंगल में मँगल होता रहे क्यों चले इन पर कोई कटार ।
झरनों का कल-कल मधुर गान हो
कोयल की कूक और पपीहे की तान हो ।
मंदिर में मंगल आरती हो मस्जिद में अजान हो
गिरिजा में घंटा बजे द्वारे में गुरु ग्रन्थ की शान हो ।
प्रकृति संग शान्ति से रहें तो क्यों कोई प्रकृति प्रकोप हो
प्रकृति कल्याणकारी बने क्यों कोई प्रकृति विक्षोभ हो ।
न हो विनाशकारी वृष्टि न आए मर्मांतकारी तूफ़ान
क्यों भूकम्प- भूस्खलन भी करे धरा को वीरान ।
वृक्ष पिता समान हो नदियाँ हों माँ समान
पर्वत हमारा बंधु हो झील-झरने में भी मानो प्राण ।
बदहवास हो न बाँधें नदी न तोड़ें निर्दयता पूर्वक पहाड़
न जलाएँ वृक्ष और न करें प्रकृति पर कोई अत्याचार ,
तो क्यों हो असमय वर्षा क्यों हो असमय तूफ़ान
क्यों स्खलित होगा पहाड़ क्यों बनेगा कहीं रेगिस्तान ।
प्रकृति और मानव का रिश्ता है युगों-युगों का , इसे निभाना है ।
मानव-जीवन खुशहाल बनाना है , तो प्रकृति को बचाना है ।
आएँ संकल्प करें , और यह हमारा नव वर्ष का विधान हो
सभी निरोग रहें , सभी सुखी हों , सर्वत्र शान्ति का गान हो
प्रकृति हमारा पालक रहे हमें प्रकृति का इतना भान हो
नव वर्ष की हमारी शुभकामना कि मानवता महान हो !
अमर नाथ ठाकुर , 27 दिसम्बर , 2015 , कोलकाता ।