Wednesday, 18 March 2015

तिलक लगा भाल पर अब निकल पड़े हैं



फूलों के आगे हों
या हों शूलों के पीछे
फूलों के पीछे हों
या हों शूलों के आगे
फूलों में उपलाते हों
या शूलों में हों डूबते

क्यों हम इनसे हों मर्यादित
क्यों कभी दुखित हों
क्यों कभी लालायित
क्यों ये हमारी सीमा बांधे
क्यों ये हमें करे विचलित
आत्म-वेदना में भी क्यों न हंसना हो  
पर- पीड़ा में क्यों हों आह्लादित

ज़रा हम निज से बाहर झाँकें
ज़रा हम समतल पर ताकें
ज़रा हम क़ुदरत से सीखें
आँखें मीचें मन को सींचें

क्यों न हम दुत्कार सहेंगे
क्यों न हम उपकार करेंगे
क्यों सिर्फ फूलों से महकेंगे
हम न अब शूलों में दहकेंगे

तिलक लगा भाल पर अब निकल पड़े हैं
हर क्षण दयामय जो साथ अटल खड़े हैं .



अमर नाथ ठाकुर , १८ मार्च , २०१५ , कोलकाता . 

3 comments:

  1. The main issue , seems to be addressed herein , is to come out from me as appears by "PANCHINDRIYAS" and to deep into " CHÍRONTON / EVERLASTING ME.

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