फूलों के आगे हों
या हों शूलों के पीछे
फूलों के पीछे हों
या हों शूलों के आगे
फूलों में उपलाते हों
या शूलों में हों डूबते
क्यों हम इनसे हों मर्यादित
क्यों कभी दुखित हों
क्यों कभी लालायित
क्यों ये हमारी सीमा बांधे
क्यों ये हमें करे विचलित
आत्म-वेदना में भी क्यों न हंसना
हो
पर- पीड़ा में क्यों हों आह्लादित
ज़रा हम निज से बाहर झाँकें
ज़रा हम समतल पर ताकें
ज़रा हम क़ुदरत से सीखें
आँखें मीचें मन को सींचें
क्यों न हम दुत्कार सहेंगे
क्यों न हम उपकार करेंगे
क्यों सिर्फ फूलों से महकेंगे
हम न अब शूलों में दहकेंगे
तिलक लगा भाल पर अब निकल
पड़े हैं
हर क्षण दयामय जो साथ अटल खड़े
हैं .
अमर नाथ ठाकुर , १८ मार्च ,
२०१५ , कोलकाता .
The main issue , seems to be addressed herein , is to come out from me as appears by "PANCHINDRIYAS" and to deep into " CHÍRONTON / EVERLASTING ME.
ReplyDeleteRightly said , Jadunathjee.
ReplyDeleteThanks for recording your comment also.
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