Monday, 29 November 2021

भ्रष्टाचार और ईमानदारी

 दूध वाला सिर पर हाथ रख पेड़ पर बैठे बन्दर के नीचे गुहार लगा रहा था । बन्दर के कब्जे में दूध वाले की कमाई की पूरी पोटली थी । बन्दर ने पोटली खोल ली थी और एक - एक कर के सिक्के गिराना शुरू कर दिया था --- एक सिक्का कुएँ में और एक सिक्का दूध वाले के सिर पर । आधा पैसा दूध वाले को मिला आधा पैसा कुएँ के पानी में गया । दूध वाले को दूध का पैसा मिला और पानी का पैसा पानी में चला गया । दूध वाले को सबक मिल गया था । इस कथा से हम सब भारतीय वाकिफ हैं । हम सब यह भी जानते हैं कि फिर दूध वाले ने कसम भी खाई थी इस घटना के बाद कि वह अब दूध में पानी कभी नहीं मिलाएगा । और बचपन में पढ़ी इस कहानी के बाद हम सब ने विश्वास कर लिया था कि उस दूध वाले ने अपने दूध में फिर कभी पानी नहीं मिलाया । 

हाँ , बिलकुल हम बात विमुद्रीकरण ,भ्रष्टाचार और काले धन की ही कर रहे हैं तथा उसके बाद लोकसभा में पेश किये गये वित्त विधेयक की जिसमें कहा गया कि बिना हिसाब के धन की घोषणा पर आधे से ज्यादा सरकार के खजाने में चली जाएगी ।

लेकिन हम बहुत दिनों से सोच यह रहे हैं कि क्या अब अपने यहाँ उस दूध वाले जैसे लोग हैं जिसने बन्दर वाली घटना के बाद फिर से दूध में पानी न मिलाने का प्रण लिया और ऐसा कर दिखाया  ? 


यदि आप में किसी के पास इस बात का उत्तर हो तो कृपया जरूर बताइये ! 


अमर नाथ ठाकुर , मेरठ  28 -11-2016.

Saturday, 13 November 2021

मैथिली फकड़ा /कहबी/कहाबत /लोकौक्ति

मिथिला में हर क्षेत्र में एक विशिष्ट परम्परा अछि तैं लs कs मिथिला के संस्कृति भारतीय संस्कृति में  विशिष्टता  सं सुसज्जित अछि . मैथिली भाषा ओही में सं एक . मैथिली भाषा भारतीय भाषा में सबसे मधुरगर एवं रसगर भाषा में सं एक. उत्तर बिहार एवं नेपालक तराई में लोकक भाषा मैथिली थीक. जखन ई भाषा में फकड़ाक लोक प्रयोग करैत छथि तs अई भाषा के मधुरता में अनेक बढ़ोत्तरी भs जाएत छैक। किन्तु किछु दशक सँ मैथिल लोकनि मिथिला छोड़ि पलायन कs रहल छथि आ ताहि कारण अपन भाषा केँ तिरस्कृत कs रहल छथिन। अई में सबसे पैघ कुठाराघात भेल अछि मैथिलीक फकड़ा पर।मैथिली भाषाक फकड़ा मैथिली भाषा के रस के असली जान थिक। एकरा एना कोना मृतप्राय होमs देबै । मैथिली फकड़ा सँ जुड़ल अछि अनेक मैथिल परम्परा आ मैथिल सामाजिक जीवन आ व्यवहार , जे हमरा सभ शीघ्र बिसरि जाएब। ई अकूत भंडार जे अपन पूर्वज सब सँ सैकडों बरस से आएल अछि ओकरा एना केना छोड़ि देबैक। हम अपन पत्नी क संग तैं ई एक टा प्रयास केने छी फकड़ा संकलन के । मिथिला, मैथिल आ मैथिली सँ लगातार संपर्क संगहि विभिन्न मैथिली ब्लॉग  , फेसबुक आओर व्हाट्सएप्प ग्रुप के सहयोग सँ ई संकलन प्रकाशित करैत अनेक हर्ष भs रहल अछि। ई संकलन के काज एखन जारी अछि । अई में आरो बढ़ोत्तरी हेतैक , बहुत गुंजाइश छैक । पाठक गण अहाँ सभ के सहयोग अपेक्षित ।
त लिअ आनन्द मैथिली फकड़ाक । कतौ - कतौ माने बुझs में यदि दिक्कत होएत , त हमरा खबरि करू, हम अर्थ स्पष्ट करs के भरपूर चेष्टा करब। समय समय पर त्रुटिक निवारण सेहो हम करैत रहब ।


  "अ " , "आ"    

1.अपना लेल लल, गोइठा बीछे चल 

2.अनकर धन पाबी , ते अस्सी मन तौलाबी 

3. अनेर धुनेर के राम रखबार 

4. अघाएल बक/बगुला के पोठी तीत 

5. अलखोसरी के दू टा फोंसरी भेल , एक गो फुटि गेल , एक गो टहकि गेल 

6.अनका कौआ सगुन बताबे , अपने कौआ विष्ठा खाए 

7. अपन घर हगी भर , दोसरक घर थुकितो डर

8. अहाँक चीज, हमरे चीज , हमर चीज हें हें 

9. अप्पन बाबा के पोखरि छी , लागल लागल छोछै छि

10.  अपन देवता के पुड़िये  नैय , ब्रह्म बाबा के पूड़ी

11. अढ़नी दुसलैन बढ़नी के , सूप दुसलैन चालैन के 

12. अन्हरा गाम के कनहा राजा 

13. अन्हार घर साँपे साँप

14. अन्हेर गाए के राम रखबार 

15. अन्हरा के जगने की, धधरा के तपने की 

16. असकर रनियाँ,  तैं गिरथनिया

17. अप्पन भूख ते चूल्हा फूंक , सएं के भूख ते माथा दुःख 

18. ओल सनक बोल 

19. अनका दुसि गेल लबड़ी , अपने काँचे बड़ी 

20. अरती पर परती , मेघडमबर  पर छाया , बाप रहथिन्ह पेट में , पूत गेलखिन्ह गाया 

21 . अनकर डाबा , अनकर घी , हमरा अहाँ के लगैय की 

22 . आदि नहि घी,  अन्त नहि दही , ताहि भोजन के गीड़ब कही 

23. आइंठो खेलौं , पेटो नैय भरल 

24. अपन थीक नैय , आनक ठीक नैय 

25. अपने छी खाट पर , टांग दुनु टाट पर 

26. आएल पानि , गेल पानि , बीचे बिलाएल पानि 

27. अपन गेल अपनौती में , आ किदन करs गेल पितयौती में 

28. ओझा गेल गाम सं , भूत भेल नटुआ 

29. अपन मुँह टेढ़ , बगुला मुँह छेड़

30. अरबा खाएब , त अबेर किया करब 

31. अपने मोने तीन मन 

32. अबल दुबल पर सितुआ चोख 

33. आँखिक आन्हर , नाम नयनसुख

34. आमदनी अठन्नी , खर्चा रुपैया

35. अन्हेर नगरी , चौपट राजा 

     टके सेर भाजी , टके सेर खाजा

36. आब लगलै पूत तs आब लगलै दुःख ,

      कमाए लगलै पूत तs पड़ाए लगलै दुःख

37. अपन पुत्ता ,मारे मछा, पत्ता बहे झोर, 

      अनकर पुत्ता मारे मछा, नयना बहे नोर

38. अलगी के पेट भेल , पमरिया के साय पड़ल

39. अपन हारल बौह के मारल, किओ नैय बाजए

40. अपने मरीह , अपने जीबिह, अपने उठि के टाटी बनिह

41. आ गे दगरिन आ गे दगरिन ,गोड़ तोरा  लागियौ, 

     दरद मोरा छुटि गेल, लोल तोहर दगियौ

42. अगहन में मुसो के दु टा बौह होई छै

43. अनका बतहे हँसी , आ अनका बतहे कानी

44. अनकर दालि चौर अनकर घी , तोहर बाप के लगै छौ की /अनकर दालि अनकर घी, हमर बाप के जाय यै की

45. अगहन बरसे बुढ़ बियाए , किए ने देश  रसातल  जाए

46. अपना लेल लल्ल , अनका लेल दानी

47. असगर नारि करै कौआरि

48. आप आप कहि मुइलें पुत्ता,खटिया तर में पानि 

तेहन पाठ ने पढ़लें पुत्ता , अपने सिर बिसानी

49. आँखिक चकमक काया निरोग

50. अपन बड़ाई केलनि मनको दाई

51. आमा माई के पहिले काज/जग

52. अपन पराभव बाजीतो लाघव

53. असगर बृहस्पतियो झूठ

54. आँखि ठेहुन अपना ,सैंय बेटा झपना

55. अपन पूत ने पूरल आस, नाती लेल बुढ़ गया बास

56. अहाँ काचे ओल छीs , नैय तs गोबरक चोत छी

57. आय माय के ठोपे नैय बिलाड़ि के भरि माँग

58. असगर जनियाँ बड़ पदमिनिया

59. अन्हा गाँव में कन्हा राजा 

60. आईंठ कुटि खाए के गनुआ मोंट 

61. आँग में माँग नहि,  माथ में टोपी 

62.  आगू नाथ नैय पाछू पगहा 

63. अतरा पतरा सोम दिन जतरा

64. अधजल गगरी छलकत जाय 

65. अपन बरद के कुढ़ेरै सँ नाथब, अहाँ के की 

66. अलखक चान , ऊसरक दूबि 

67. आबैत देत  आदर , जाइते देत हस्त , तखने  गिरहथ रहत मस्त 

68. अपना मन के मौजी, त बौह कें कहलउ भौजी 

69. आगुक जनमल गोड़ लगाबे 

70. अग्रसोची सदा सुखी 

71. अपन घरैता मछरी खेता, हमरा के कुरबुर कैता

72. अपन लेल मंगनू, दुआरे दरबेस

73. अपन पैर काटि क परक यात्रा

74. अबिते एलौं  चूल्हि बिलमेलौं , अरिपन पोइछ केँ लिट्टी लगेलौं

75. आतुर ग्राहक महँग बेसाह 

76. अशर्फी क लुटि आर कोयला पर छाप 

77. अक्का में चक्का , बड़ेरी में धक्का , सैंय के कहलक हेयौ बड़का  कक्का 

78. अपन बियाह भ गेल त लगने खतम

79. अपन पुत्र आ दोसरक कनियाँ बड़ सुन्दर 

80. आन्हर बिलाय माँड़े तिरपित 

81. आलू दम मसल्ला कम , भौजी नाचे छमाछम

82. अनकर आस , बीयैन के बसात  

83. अकलेल कुटे धान बकलेल कुटे धान हमरा चउरे सँ काम

84. अगिला रंग नय् रंगल गेल, दोसर रंग भट रंगे भेल



''इ'' , "ई"

1.  इचना माछ कबै के झोर , तै लए बुढ़बा/मनसा कंठी तोड़ 

2. ई जुनि बुझि पिया बड़ हित , जेहने करेला तेहने तीत 

3.  इए बीए पास , लिए दीए साफ़ 

4. इ भनसियाके के करत मना , बैसाख मास कहु भट्टाक सन्ना 

5. इचना पोथी चायल दिऔ , ते रौह के सिर बिषाय 

6. ई बुढ़ बढ़ही  गाम कमेताह , जिनका रुखान ने बसूली





"उ" , "ऊ"

1.  ऊँचे बाभन , नीचे डोम

    की तारय बाभन , की तारय डोम

2. उच्चा चढ़ि चढ़ि देखा , सब घर एकहि लेखा 

3. ऊंटक मुँह में जीरक फोड़न 

4.  उचरिन कतौ खुचरिन बैसे , गोठ बिछुनी कतौ कोबरा बैसय

5. उक सं फूंक बड़ भारी 

6. ऊधो के लेब , नैय माधो के देब 

7. ऊँट जनमल पीपर केँ ठूठ करै लेल 

8. उगहु चान कि लपकब पुआ

9. उट्ठा के बैठा कहए , चलती के कहए गाड़ी

   मूरख के पण्डित कहए, पण्डित के भिखारी 

10. ऊपर फिटफाट , भीतर सं मोकामा घाट 

11. ऊपर भर , त नीचा स झड़, हगबा क आगू बघबाक डर 

12.  उखरि में मुँह देलहुं,  त मुसरा के की डर

13.  उड़न्त में बगेड़ी , गड़न्त में ओल, आ जलन्त में रौहक नहि जोड़

14. उपाय ने किछु , दरी बिछौना

15. उत्तम खेती , मध्यम वाम , अधम चाकरी , भीख निदान






"ए " , "ऐ"

1. एहन घर ने बिहाहियौ बाबा, पदितो होएत सेहन्ता

2. ऐलक लुतिया देलक लगाय , आ अपने लुतिया रहल पराय

3. एक गुन मारि , चारि गुन बपरहारि 

4. एक टा बेटा बेटा नैय, एक टा टाका टाका नैय

5. एक टा कनियाँ  ले नुआ नैय भात , दोसर ले हिया फाट 

6. एई नदिया/नगर  के यैह वेवहार , खोलू धरिया उतरु पार

7. एक बापुत कें  दल , सब बापुत चल 

8. एक दिन हमहूँ छलौं नारि , मधुपुर छल ससुरारि

9. एक गाछ राहैड़ , सभ सं बाहरि

10. एक ते राकस , तै पर स नोतल

11. एहन झापने झपनियाँ , जे भाप ने लागे आँगनियाँ

12. एक दिन मनसा  जोतलनि हर , हगलनि , पादलनि , भेलनि जर 

13. एबाक ननदि एबे करती , भरि भरि थरिया खेबे करती , चारि अँगना घीनेबे करतीह 

14. एक दिन के रानी भेलीह , दांड़ी चढ़ि के हगए गेलीह

15. एक समय में किछु नहि भावय,सींक डोले ते हँसी लागय

16. एहन कतेए ही,  जे ननईद खेतीह घी

17. एतनी टा मुसरी , पुआर तर घुसनी

18. एकटा टाका छलौ गे छौड़ी , खन खोईछा, खन पौती

19. एक जुनि रुसैथ बाबूक बाप, जिनका प्रसादे नुआ भात
20. एक चिड़ैया ऐसनी,खुट्टा पर बैसनी।मुट्ठी मुट्ठी चाउर चिबाबै,से चिड़ैया कैसनी।।



"ओ" , "औ "

1. ओझा लेखे गाम बताह , गामक लेखे ओझा बताह 

2. ओझा खसला स्वर्ग सँ रुसला गामक लोक सँ

3. ओछही के रिन नैय खाय , ओखली वाली के  घर में धी नहि बियाही



"क "

1. कतय राजा भोज , कतय भोजबा तेली 

2. करनी देखियौन मरनी बेर 

3. कनियाँ बरक झगड़ा , पंच भेल लबड़ा 

4. कनने खीजने जम पतियाय ?

5. कौआक श्रापे बेंग मरे ?

6.  काज काल दाई, आ भोज काल छिनारि

7. करे ने खेती करे ने फंद, घर में नाचे मूसा चन्द

8.  ककरो चास दी , बास नहि

9. कोरा में चिल्का ,  नगर में ढिंढोर / शोर

10. ककरा कहबै के पतिएतै , जकरे कहबै सएह लतीएतै 

11. कहाँ धरब छितनी , कहाँ धरब साग , फलां एलैथ हमर बड़ भाग 

12. कांख तर अँचार , आ देखाबय पोथी के बिचार 

13. करनी नैय धरनी , आ नाम सुवर्णी

14. कनफुसरी के भरि देह फोंसरी

15. कनहा कुकुर माँड़े तिरपित 

16. कनियाँ मनिया झींगा के झोर , कनियाँ माए के ल गेल चोर 

17. केकर खेती , केकर गाए , कोन पापी रोमए जाए 

18. कक्का चोर भतीजा पाजी , काकी क माथ पर जुताबाजी 

19. कनियाँ स लोकदनिया भारी 

20. कनहा बियाह में सतरह आफद

21. कियो पूछे नैय , आ पिछौड़ लागल गाए   

22. कंटीरबाक जनम हेतै त केथरी गन्हेबे करएत

23. कोढ़िया उठताह त पहाड़ उनटेता 

24. कानल कनियाँ रहिये गेल, कानी छँटाओल बर घूरिये गेल 

25. कतबो करे  कियो हानी , तैयो नहि छोड़ी धर्मक बानी 

26. कुकुर पोसे कियो , नेर देखे किओ 

27. कनियाँ के लहठी,  बजनियाँ के शंख 

28. केश उपाड़ने मुर्दा हलुक 

29. कनही गाए के भिने बथान 

30. करू बहुरिया लूरू खुरू , दुनु साँझक बखड़ा एके साँझ में हुरु

31. काज ने धंधा , अढ़ाई रोटी बंधा  

32. काने के मोन छल , त आँखि में गड़ल खुट्टी

33. कमौनी खटौनी कें एक बखरा, बैसल बिलाड़ि कें तीन बखरा

34. कोढ़िया उठला , ते भरि घर तमला 

35. केहन केहन गेला , त मोंछ बला एला

36. का पर करब श्रृंगार , पिया मोर परदेशी  

37. कीनी धनिक जेकाँ , राखी गरीब जेकाँ 

38.काम के नैय काज के ,आ दुश्मन अनाज के 

39. करनी नहि धरनि , ठोर चमकौनी

40. कएल धएल पर श्री  जगरनाथ 

41. किछु खनहन,  किछु बन्हन 

42. कमौआ पूत के थारी में घी 

43. कमाबे लँगोटी बला ,खाए धोती बला

44.  केलनि धेलनि  हीरा , माँड़ पसेलनि जीरा

45.  कखनो पूड़ी पचास , कखनो घर उपास 

46. कनही गाए के भिन्ने बथान 

47. ककरौ जेठ पूत ककरौ छौड़ा 

48. कनियाँ आँखि में नोरे नैय , लोकनियाँ आँखि में नोर

49. ककरो कुटिया ककरो झोर , ककरो आँखि सँ बहि छन्हि नोर

50.  काज में जाएब नैय , खाए में छोड़ब नैय

51. केहन केहन  गेल्ला , त मोंछ वाला एल्ला 

52. की करै छी गप्प , दिओ लप्पे लप्प 

53. कोन-कोन काज करू, ढेपा चलाऊ की चोभा लगाऊ

54.  कपाड़ बुड़ियाय छै त , कादो मे फसल  हाथी के बेंग सेहो लातियाबई छै  

55. कौआ मुँह न भनिअए बेद 

56.  कंगाली में आटा गिल

57.कुकुर काटे अनचिन्हार के, बनिया काटे चिन्हार के 

58. कूदे फाने तोड़े तान, ताके राखे दुनियां. 

59.  कानल कनियाँ रहिये गेल 

60. कियो नाचे घर-आँगन ,कियो नाचे दुआरी

61. कुटि पीसि खो मउगि बहु हमर हो ,नुआ फटऊ त नैहर जो 

62. करिया झुमरि खेलै छी,ढील पटा पट मारै छी

63. कहक छला यौ,कहा गेल हौ,अही लेल तू मारबै रौ 

64. केहन केहन घोड़ी भसल जाए ,आर नार -घोड़ी कहे एतबे पाइन

65. कोढ़िया जन के मुँड़ेर सन के आटी

66. कारी बाभन कैल राड़ , ओकरा सँ नहि उतरि पार

67. किओ बियाएल कुथिकs , किओ कहलक बेटिये 

64. ककरो बोरे बोरे नून, ककरो रोटियौ पर आफत 

65. किरपिनी के दूना खर्च

66. कारी घोड़ी लाल लगाम , ओय पर बैसे गद  गद  राम 

67. कनियाँ के ठोप , अनारत राति के भगजोगनी 

68. काम के नैय काज के , दुश्मन अनाज के 

69. काजक माए के घर करू , बेटाक माए के बहार करू

70. को खाएब कि कटहर खाएब 

71. कुटिया पिसिया सब जाने , मर्द रहे जे आगि आने









"ख"

1. खस्सी के जान जाय , खेबैया के स्वादे नय

2. खोह मुँह खेसारी साग 

3. खस्सी मारि घरबैया खाय , हत्या लेने पाहून जाय 

4. खाए छी घरे स , कानैत छी अगहने स 

5. खाए लेल किछु नैय , नहाय लेल भोरे 

6. खेत खाय गदहा , मारि खाए जोलहा 

7. खिचड़ी संग जे मछरी खाए , मुइल बौहक नैहर जाए 

8. खलिया बन्दूक ठांय ठांय 

9. खेती करी त तरकारी , नौकरी करी त सरकारी

10. खुरपी के ब्याह में हँसुआ के गीत 

11. खो मंगला पड़ल रह

12. खाइथ  भीम , हगथि शकुनि 

13. खा के मुति, सुति बाम , बैद  बुलावे कोनो काम

14. खा क पसरी , मारि क ससरी

15. खीरा खा के पेनी तीत 

16. खीर खेलौं , पूड़ी खेलौं , खुद्दी लेल जी लगले 

17. खेतीक चुकल किसान , डारिक चुकल बानर , कतौ के नैय

18. खेवैया के राम देवैय्या 

19. खाक जीबन , तीसी तीमन

20. खाई ले लाई ने पादs मिठाई

21. खा पूत खा,भोजो जूनि आगाह 

22. खँजन चललीह बगड़ाक चालि अपनो चालि बिसरि गेलीह

23. खाय लेल माछ भात , बियाय लेल बेटी



"ग "

1.  गोआरक सोहारल माछ आ मलाहक सोहारल दही एके सन

2.  गाँव नोते नहि , बेलाही नोत

3.  गरीबक जीबन , सजिमनिक तीमन 

4. गाम करे हल माल , बौह मांगे चुम्मा 

5. गाय गोरू मिलान तं ठेहुने पानि दुहान 

6. गदहा खसला स्वर्ग सँ , रुसला गामक लोक सँ

7. गेल मौगी जे खेलक मीठ, गेल पुरुख जे खेलक तीत

8. गीत कवित्त सभ बिसरी , जखन माथ पड़े दुःख के गठरी

9.  गाल वाली जीत गेल , माल वाली हारि गेल

10. गाए बिकाएल चरबाही में 

11. गेल भैंस पानि में 

12. गामक हारल,  बौहक मारल 

13. गोर मौगी गौरवे आन्हर

14. गाबय बजाबय से धक्का पाबै , डांड़  घुमाबय से टाका पाबय 

15. गदहा जेता स्वर्ग , छान लगले जेतैन्ह / गदहा गेल स्वर्ग , छान लगले गेलन्हि

16.  गुरक मारि ढोकरबे जानि

17. गुड़क नफा चुट्टी खा गेल

18. गरीबक बेटी धनिकक घर गेल, एके सूप धान में ऊबजुब/तर उप्पर भेल

 


"घ "

1. घुन संग गहुम पिसाय

2.  घर टूटने जारनीक दुःख

3. घर पर खड़ नैय , तकिया पर स्वागतम 

4.  घर दही त बाहरो दही 

5. घर पकैयै कुरथी रोटी , बाहर सुखाय य जोड़ा धोती

6. घर में छौड़ा , नगर में ढिंढोरा 

7. घर आँगन भौजी के, छल छल करे ननदौ 

8. घर भुजी भाँग नैय , मियां पादे चूड़ा

9. घर पर खड़ नैय ,  कान पर बीड़ी 

10. घर घोड़ा पैदल चले , बाट चले बत छीन 

     थत्ती राखे कुटुम्ब घर , बूढ़ीक लक्षण तीन 

11. घर फुटय ते गँवार लुटय 

12.  घर मुसरी दंड पेले

13. .घरक भेदिया लंका डाह

14. घोनी फेनी नोनी साग

15. घर फुटय त गँवार लुटय

16. घोड़ाक  लात आर दोगलाक बात एके बराबर 



"च "

1. चोरक मुँह चान सन

2.  चोर चोर मसियौत भाय 

3. चिन्हे न जाने , मौसी मौसी करे 

4. चोरी ते चोरी ऊपर सं सीनाजोरी 

5. चोर बाजे जोर सं 

6. चिन्हले छौंड़ी समधिन भेल 

7. चमकून चन्ना हेरै छी , ढील पटापट मारै छी 

8. चिड़ियन के जान जाए , आ लड़कन के खिलौना 

9. चालैन दुसलैन सूप कें जिनका सहस्र टा छेद

10. चालि , प्रकृति आ बेबाय , ई तीनू संगहि जाय

11.  चौठी चन्दा बड़ अनन्दा , खिरिया पुरिया खा रे बन्दा 

12. चेल्हा पोठी चाल दय , रौहक सिर  बिषाय  

13. चूड़ा दही आइंठ , आ लड्डू निरऐंठ 

14. चूड़ा के गवाही दही 

15. चुपके चुपके आएल चोर, पहिले चोरेलक बेटा मोर, बेटा चोरा कs मुट्ठी मे लेल ,  धन सर्वस्व पर दाबी देल 

16. चोरबा के अरजल सब किओ खाए , असगर चोरबा फाँसी जाए 

17. चमड़ी जाए , मुदा दमड़ी ने जाए

18. चिल्का लाथे चिलकौर खाए

19. चिलका कानैय त कानैय अपने नहि कानी

20. चोरक लेखे ताला की, बेईमानक लेखे कबाला की

21.चारि सखी चारि रंग , चारू बदरंग, चारू के ब्याह भेल , चारू एक रंग

22. चैं चैं चैं , अपने सिर बिसैंय 





"छ "

1. छलिये हम हिन्नी बिन्नी , आब भेलिये मलकिन्नी

2. छह अन्ना के मुर्गी , नौ अन्ना के मसल्ला 

3. छोट खिखिर के मोंट नांगड़ि

4.  छिक्के पहिरि , छिक्के खाय

     छिक्के पर घर नहि जाय

5. छुछाके के पूछा 

6. छेला कुमर के , छेरनी बौह

7. छिया छिया गबर गबर

8. छलीह बहुरिया झांपलि ,लेलनि बहुरिया खापरि  

9. छलै छौड़ी रिणी बिनि,कूटै छल धान, छौड़ा बुलेल छौड़ी कचरे छै पान

10. छुटल घोड़ा, घोड़साड़े ठाढ़ 




"ज "

1. जखन नंगटे नहायब, ते गारब की

2. जेकरे अरबर , तेकरे खरबर 

3. जे भोज नैय करे , से दालि बड़ सुरकइ

4. जेकर माए मरल , तेकर पात पर भाते नैय 

5. जाइतो गमैलौं , स्वादो नैय पेलहूँ

6. जीर पीस पियब नैय , सैंय बिना जियब नैय 

7. जुरय लाइ नैय , खाय बतासा 

8. जेहने तकलह हौ कुटुम , ओहने भेटलह हौ कुटुम 

9. जाबय छलौं कुमारि , ताबय धम्मर धम्मर मारि , आब भेल बियाह , आब के सहत मारि 

10. जतय सुई नैय समाय , तते फाड़ घुसियाय 

11. जेठ भेल छोट , बैसाख भेल नमहर 

12. जतेक के बौह नैय,  ततेक के लहठी 

13. जेमहर देखी खीर , उमहर बैसी फिर

14. जीयब त की की ने देखब

15. जकरे बनरी , सैह नचाबय

16.  जँ पिया रहता मन नहीं भेता , जँ पिया जेता मन  पछतेता 
 
17.  जिदगर कनियाँ के भैंसुर लोकनियाँ 

18.  जीतिया पाबनि बड़ भारी , धिया पुता के ठोकि सुताबी अपना खाय भरि थारी 

19. जुन्ना जरि गेल  , मुदा ऐंठी नैय गेल 

20. जकरे लेल चोरि केलौं , सएह कहलक चोरा 

21.जखन धोबी पर धोबी बसे , तखन गेन्ह्रा पर साबुन पड़े  

22. जाड़ बड़ राड़ ,गोसाईं बड़ पापी, धिपली खिचड़ी खुआ गे काकी 

23. जाबे कएलहुँ पुता पुता , ताबे कएलहुँ अपन बुता 

24. जे पुत्र प्रदेश गेला , देवता पितर सब से गेला

25. जुरै छै , ते फुरे छै

26. जे लंका गेल से रावण भेल  

27. जुड़ै मियां के  मांड़ नै , मांगय मियां ताड़ी 

28.जेकर बड़की जिहलाही , तकर छोटकी भारे लागल खाय 

29.  जाबे करब पूता पूता , ताबे कयलहूँ अपन बुता

30. जेहने करनी ओहने भरनी

31.  ज नैय देता राम , से के देत आन 

32. जे हेती हित , से खुएती तीत  

33. जेहन गुनी नहि , तेहेन महग बड़

34. जाड़ बड़ जाड़ गोसाईं बड़ भारी 

      बच्चा के लगबे नई करत 

     जवान मोर भाई

     बुढ़ के तऽ छोडब नई

     कतबो ओढ़त तुराई

35. जखने कहलकै कक्का  हो तखने बुझलिये कचिया/बटुआ   हेराएल 

36. जनमल ककरौ , बले ककरौ 

37. जे नहि तेजल एक घड़ी , से तजि गेलाह जनम भरि

38. जेहने मनसा तेहने फल, जेहने अंगना तेहने घर

39. जीबैत में नंगई नंगा,मरला पर पहुंचावे गंगा

40. जुड़े त  , ठाँउ  द क पादी , नैय त पादितो जाय , पड़ाइतो जाय 

41. जे रोगी के भावे , से बैदा फरमाबे

42.  जकरा लेल चोरि केलौं , सएह कहलक चोरा 

43.  जे सहे तकर लहे 

44. जे नैय नहाबए , से भक्त कहाबे

45. जिनका एत्ता बड़ के राज, तिनका तीमन पकैन्हि साग  

46. जाइब नेपाल/ मोरंग कपार जायत  संगे

47. जै एते ऋण , तै घोड़ा कीन 

48. जखन भेल अप्पन बेटी तखन बिसरल बापक बेटी

49. जखने सुनलक छौड़ी सासुरक नाम,बुलि आएल छौड़ी सौंसे गाम

50. जाहि डरे भिन्न भेलहुँ सएह भेल बखरा

51. जे बियेलीह से ललैलीह, बेटा लेल पड़ोसिन अगड़ैलीह

52. जेहने पीसब तेहने उठाएब, जेहने कुटब तेहने खाएब

53.  जेहने बौआ तेहने झुनझुना 

54. जे नय देताह राम , से के देत आन

55. जे भोज में नोत नहि , ओय भोज में कुकुर मरे 

56. जीर सन छली , जमाईन सन भेली, सासुर एली गिरथाइन सन भेली

57. जकर बड़की छुलाहि, तकर छोटकी भारे लागल खाए 

58. जतए बाजे बड़का ढोल तते के पूछे पिपही के

59.   जकर जेहन बाड़ी, तकर तेहन भट्टा।

        जकर जेहन माए बाप , तकर तेहन बेट्टा।

60. जे कहियो नय से लोहिये मे 

61. जे अगुएली सेह पछुएली

62. जत अरजल तत कनिये लेल , भीख मंगैत बर कोबर गेल



"झ "

1. झोरी में किछु नैय , बजार में धक्का 

2. झगड़ा नैय दन , चून-तमाकूल  किये बन्न 

3. झरकल मुँह , झाँपनहि नीक 


"ट"

1. टकर टकर टकर जकर छियै तकर , तू की लेबे शक्कर 

2. टिटही टेकलैन अकाश

3. टेंगरा पोठिया चाल करे, रहुआ सिर बिसाय 


"ठ"

1. ठोंठ पकड़ि के काज करेनाई 


"ड"

1. डूबि के पानि पीबी त एकादशीक  बापो नहि बुझे

2. डोर कहलक पटोर पहिरलहुँ , आँखि कहलक संगहि छी 


"ढ"

1. ढाक के तीन पात 


"त "

1. तीन तिरहुतिया तेरह पाक , ककरो दही चुड़ा ककरो भात 

2. ताली मउगी ताल करे , आंगुर काटि काटि घाव करे

3. तोरो सं बीर गै , कान  लेबौ तीर गै

4. तुं कुलबोरैन तीन तीमन नून तेल मिरचाई , हम कुलवंती छुच्छे खेलहूँ दही दूध मिठाई

5.  तम्मा बिन पाहुन उपास 

6. तीन बेर चोरी भेने धोबिया सेठ 

7. तेल जरे तेली के , छाती फाटे मशालची  के 

8. तोर आगू तोर सन , मोर आगू मोर सन

9. ताड़ बनू कि घास , बकरी खाय य बतास 

10. तीसी छन छन , लाबा भरि भरि

11. तेल घटल जाए, नाच बढ़ल जाए

12. तरेगन तोड़ब

13. तरेगन गिनब

14. तिल क ताड़ बनाएब 

15. तरे तर खो मौगी , हुबगर हो

 


"थ "

1. थुकि के चाटनय

2. थूक संगे सतुआ सानी 

3. थोपल थापल आरि पर बैसल


"द "

1.  देखे में लीख सन , बाजे में बीख सन

2. दाय गे दाय , तोहर खोएछी में लाइ 

3. दिनक छौड़ी कौआ देख डराए  , रातिक छौड़ी सिपाही संग जाए 

4. देह पर नैय लत्ता , आ चले कलकत्ता

5.  दसक लाठी एक के बोझ 

6. दुधगरि गाए के लथारो सही 

7. देखे लेल बिलाय नैय,  मारै लेल बाघ

8.  दीदगैर कनियाँ के भैंसुर लोकनियाँ

9.  देने लेने जस , नुने तेले रस 

10. देसी कुकुर / मुर्गी  विलायती बोल 

11. दस के छुइने, एक के मुइने

12.  दिन केँ हरे हरे , राति केँ घरे घरे 

13. देखू हे आय माय नगरक रीत , एक घर कानन एक घर गीत

14. देह नैय धुए , से भगता होए 

15. देखे मे मनसा धुमा रे चकोठबा , मनसा के जनमल एको टा ने बेटबा

16. दूर के ढोल सुहावन

17. दम ने दुस्सा , पदे मुस्सा 

18. दही काटैत खैंकि गड़ए

19. देखैत सुनैत महकारी , तर में बिया कारी






"ध"

1.  धोबिया के गधा,  नै घर के नै घाट के

2.  धी ,जमैया ,भगिना, ई तीनों नहि अपना 

3. धैन्न छी अहाँ , की धैन्न छी हम,चलैत छी अहाँ , निन्घारैत छी हम

4. धिया पूता ककरो , घिधारी करे  मंगरो 

5. धिया के डाँटलहुँ ते पुतौह लेली त्रास

6. धनक आँगन , पुआरे चिन्हल 

7. धिया पुता  गाम पर , घेघी लताम पर / सब छौड़ी गाम पर, घेघी लताम पर 

8. धान पान नित स्नान  

9. धोबिया के नैय आन बहान , गदहा के नैय आन किसान 

10. धन्य भेल दिदिया सासुर गेल, दिदिया के चूड़ा-पैर हमरा भेल

11. धोबिया स की तेलिया घाटि, एकरा मुंगरा ओकरा जाठि



"न "

1. नैय राधा के नौ मोन घी होएत नै राधा नाचतीह 

2. निर्धन के सब दोखे , निर्बल के सब रोगे 

3. नतिनी सिखाबे बुढ़ दादी के 

4. नढ़ीया देखलक कतराक झाड़, ते कहलक वृन्दावन छियै

5. नाम बड़का बाबू , आ धोती भाड़ा पर 

6. नबकी दुलहिन के ठेहुन धरि घोघ 

7. नौखि नौवाइन के बाँसक नहरनी 

8. नानी के धन, पानी के धन , आ बेईमानी के धन - नैय रहैत छैक 

9. नैहर में भोज भेल , जी में भरोस भेल 

10. नौआ के देखने नह बढ़े

11. नैय रहत बाँस , नैय बाजत बाँसुरी

12. नङ्गटे पहिरि , भुखले खाए 

    जतय मन हुए ततय जाए

13. नब जोगी कें पोंन में जट्टा 

14. नाति के गांती नैय , आ कुकुर के पैजामा

15.  नामी मरे नाम लेल , पेटू मरे पेट लेल 

16. नैय  मारी माछ , नय उपछी खत्ता

17. नर ने झड़ , पेटफुल्ला दीयर 

18.  नया पमरिया के पाछू ढोलकिया 

19. नाम उच्च कान बुच्च

20. नैय मामा सं कनहा मामा 

21. नैहरा पकैया खीरिया पुरिया , ससुरा पकैया झोर

     अपना पिया के किछु नहि अछि त नैना झरैय नोर

22. ने दौड़ चली ने ठेस खसी

23. नौआ के बरियाती ठाकुरे ठाकुर

24. नैय हगब , नैय बाट छोड़ब 

25. नैहरक बोल आ केहुनी क चोट बड्ड लगै छै

26.  नीक काज करी ते खाए बौआ पान , अधलाह काज करी ते कटाबी दुनु कान

27. नय झगड़ा , नय दन ,  पान सुपारी बन्न

28.  नहिरा जाऊ , बेटी ससुरा जाऊ , बहियां डोलाऊ , बेटी कतौ खाऊ 

29. नाम दायवती , पोनाठ उघारे

30. नोनगर ने तेलगर चहटगर बर, मयगर ने बपगर गलगर बर

31. ननईद निन्दाबे सात घर कनाबे

32. नंदोइस के घोड़ा देख के सरहोइज बताहि

33. नैहरके अल्हड़ सासुरक ढीठ , बाट चलैत नहि झंपलैन पीठ
34. निश्चिन्त सुतु हे हेरु, जिनका गाए नय नेरु
35. नकबा से नहरनी , नहरनी से नकबा





"प "

1. पेट बिगाड़य मुड़ही, घर बिगाड़य बुड़ही

2. पाय दुई तरहे बचए - ककरो घेंच काटि कs वा अपन पेट काटि कs

3. पंडित जी पंडौल के , चूड़ा दही कमतौल के 

4. पित्तरि के गहना पर एत्ते गुमान , सोना के रहितै त चलितै उतान

5. पेट में गूँह नैय , आ नौ सुग्गर के नोत  

6. पढ़ै फारसी बेचे तेल 

7. पैसा नैय कौड़ी , उतान हो गे छौड़ी 

8. पहिरने , ओढ़ने कनियाँ बर , निपने पोतने आँगन घर 

9. पंचक बात मानब , मुदा खुट्टा एतहि गाड़ब 

10. पाद बड़ैया पातर चूड़ा 

11. पैरकु पैरकु बिलाड़ि के माय, एक दिन झपटब जानहि जाएब

12. पहिरि धानकाईन जेकाँ , राखी कंगाईन जेकाँ  

13.  पेट नैय चले , आ केराक भार 

14. पहिरने ओढ़ने कनियाँ बर , नीपने पोतने आँगन घर 

15. पैसा नय कौड़ी , आ बीच बजार में दौड़ा - दौड़ी

16.  पेट में खड़ नै , सिंह में तेल 

17. पानि में माछ नौ टुकड़ी के बखड़ा

18. पूजा पाठ जानी ने जानी , शंख खूब बजाबी

19. पाथर परहक दूबि

20. .पड़हल सुग्गा बौक

21.  पूछे कियो नहि कहाबी कानूनगो 

22. पर घर खेने पेटनी नाम, पर घर सुतने मुतनी/छिनरी नाम

23. पान सन रोटी , पहाड़ सन दिन , कोना के बीततै वैशाखक दिन

24. पोन में फुंसी ,आर हजमा स लाज 

25. पूत लावs गेली आ भतार गँवा कs अइली

26. पेट में पड़लनि जुड़ाई, ते करय लगली नहीरा के बड़ाई

27. पूत कपूत ते की धन सँचय, पूत सपूत ते की धन सँचय 



"फ "

1. फाटल नुआ ,चीरब कते 

2. फेर नैय नारि  बेल तर जेतीह , बेलक मारि भटाभट खेतीह


"ब "

1. बियाह सं बिध भारी 

2. बहिरा नाचे अपने तालें

3.  बाप छल पेट में , पूत गेल गया 

4. बाप के नाम लत्ती फत्ती , बेटाक नाम कदीमा / अगरबत्ती 

5. बाप के बापे नैय , ससुर कें कहलहूँ फादर 

6. बासी बचए ने कुत्ता खाए 

7. बिध करे बिधकरी, नाक धरे छुतहरी

8. बैसल सं बेगारी भला 

9. बाप जिनगी नैय खेलौं पान, पान - पान कहैत गेल प्राण/ बाप जनम ने खेल पान, पान पान  कहैत गेल प्राण

10. बाँध स खड्डा ऊँच

11. बाबा कें बखारी , धिया के उपास

12.  बहिरा नाचे अपने तालें

13. बुढ़ भ गेल छी , नाक लगले अछि

14.  बाट चलैत जे गाबए गीत , तकरा सन नहि आन पतीत 

15. बानर बुझलक आदि के स्वाद 

16. ब्रह्म सं बेसी छागर उताहुल 

17. बिन बजौने कोबर अयलौं , कनियाँक  माए कहलक कते अयलौं

18. बेटी के माय रानी , बूढ़ारी भरे पानी

19. बली चोर के कंधा चढ़ा क पार उतारी

20. बुड़बक बाभन रहिका बास, कोठी में धान आ घर में उपास 

21. बाड़ीक पटुआ  तीत  

22. बाप बेटा पंच , बरद के दाम पांच टाका

23. बापक दुलारि बेटी दूरि गेली,

      खसली भटाक सन चोट लगलैन 

      फटाक सन बीचे बाट सँ घुरि गेलीके

24 . बुधियारक मारि चूड़ा दही

25. बात करी जानि क,  पानि पीबि छानि क 

26. बापे पूते मड़बा , माए धीये कोबरा

27. बाजू त बजन्ता , नै बाजू त गोंग 

28. बाप के नाम साग पात , बेटा के नाम पड़ोर

29. बाप मरि गेल अन्हरिया में , बेटा के नाम पावरहाउस  

30.  बाप पाद नैय जाने , बेटा संख बजाबय 

31. बाजिते छलौं त हारलौं केना 

32. बुड़बकहा बेटा टक्के काबिल

33. बेसी योगी मठ उजाड़ 

34. बकरिया करे पाउज , डनियाँ कहे हमरे चर्चा

35. बदरी बिकल भेल, धिया पूता कल भेल

36. बाभन जाति अन्हरिया राति, दही चूड़ा लेल दौड़ल जाथि

37. बाँझवा घर में बिलड़ा दुलार

38. बड़ बड़ जन केँ भेटक लावा , पदनौ के मीठाय 

39.  बिध के बिधान

40.  बुझले बात , कदम पर हाथ

41.  बेटा पर के बेटी ,छोड़ पिया खेती

42. बाबा बले  फौजदारी

43. बाभन , कुत्ता , हाथी , तीनों अपने जाति के घाती

44. बनैल सोनेल कनियाँ बौह सन, नहि त काकी सन

45. बैसल बुढ़वा की करे,अही कोठी के धान ओहि कोठी करे 

46. बापक दुलारि बेटी दुरि गेली , बाटे सँ कोहा लs कs उड़ि गेली 

47. बेटी गेली , पुतौह एली , आश्रम ठामे के ठामे

48. बदरी के कनियाँ कलोवो नहि माँगे

49. बुढ़ में बुढ़घाघस

50. बीच घर में डिबिया जरै य , टुकुर टुकुर ताकै छी

51. बाप बड़ा नैय भैया , सबसे पैघ रुपैया

52. बाप घुमे गली गली , बेटा के नाम बजरंग बली 

53. बौआ सं झुनझुना भारी 

54. बिना नाथ के कूदे गदहा 

55. बहसल बेटा खुद्दी खाय , आ बाप जाड़े डोलडाल जाए 

56.बगुला रे तोहर घेंच किया टेढ़ , हम नय टेढ़ हमर वंशे टेढ़

57. बाँटि कुटि खाय, राजा घर जाय

58. बाँटल भाए , पड़ोसिया दाखिल

59. बेटी आ कोठी सैंतलै नीक




"भ "

1.  भल पिया हेता , त गुदड़ी लोभेता 

2. भुसकौल विद्यार्थी के गत्ता मोंट 

3.  भात सं भतबरी , आ तीमन सं सलाह 

4. भोज नैय भात , हर - हर गीत 

5. भुखले छी,  त सुतले छी 

6. भात सं भातबरी  , आ तीमन सं सलाह 

7. भरल पुरल दाय , तं घुरि घुरि पुछथि भाय

8. भेल बेटी गेल श्रृंगार ,  आएल सौतिन भेल श्रृंगार

9. भोज नै भात , हर हर गीत 

10. भैया सं नहि जीती , ते भौजी के पछाड़ी 

11. भोजक काल में कुम्हड़ रोपनाय

12. भेला सं  भवान दाय , नै त पदान दाय 

13. भुखले मोन पड़े कोबरक खीर

14.  भरि घर दीयर , आर भतार से ठठ्ठा 

15. भोला बाबा यौ , हम नैय बुझलियै अहाँ के  मन के बात 

16. भेल बियाह मोर करबो की , धिया छोड़ि के लेबो की 

17.  भूख ने जानइ बासी भात , प्यास  ने जानें धोबी घाट , 

       नींद ने जानें टूटल खाट , प्रीत ने जानें जात -कुजात 

18. भोरका घाघस बकरी के ढुइस , कनियाँ बर के झगड़ा सभ टा फुइस 


"म "

1. माए  करय कुटन पीसन, बेटा के नाम दुर्गादत्त

2. मौस खेने मौस हुए माछ खेने बल, दालि सने जौं तौं साग सने गल

3. माछ भात पांच हाथ, साग भात माथा हाथ

4.  मंगनी बरद के दांत नैय देखी 

5. माए के जी गाए सन, पूत के जी कसाई सन

6. मुरखाहा के धन , कबिलाहा ठगि ठगि खाय 

7. मुनले मुँह सतुआ फँकनाय 

8. मूस खिसियाइ , त कोड़े माटी 

9. माछक तेल सँ माछ तरनाय

10. मुँह मुसहरनी , आ बनी धनुकानि

11.  मियां जोड़ियह नड़ी नड़ी , खोदा ले जाहियह एक्के बेरी 

12. मार भतीजा , पूत पाँछा

13. मौगी के खाइत आ पुरुख के नहाइत ...  कियो ने देखैत अछि

14. मरय के मोन नैय , त उठि उठि बैसी 

15. माछक सम्बन्धे कान्कौर नाना 

16. माँगि चैंग खाय छि , ककरो दुआरि त नय जाय छि

17. मन के केलक मौजी त बौह कें कहलक भौजी 

18. मोफत के चन्दन , घिस हो रघुनन्दन  

19. मुँह सन मुँह नैय , मुँह तिनकोनमा 

20. माघ मास जौँ माँगुर खाय , ससरि फसरि बैकुंठे जाय 

21. मुर्खक लाठी बिच्चे कपाड़

22. मुँह देख मुंगबा परसब

23. मन चंगा ते कठौती में गंगा 

24.  माए ताके अंतरी , कनियाँ ताके पोटरी

25. माए के गोड़ लगने वंश के गारि , बौह के गोड़ लगने तीन ढकना दालि

26. मूस मोटैंहें , लोढ़हा होइहैं 

27. मेहनत करे मुर्गी , अंडा खाए दरोगा 

28. मुँह नैय कान , दिपुआ नाक 

29. मोटका नाक सुहागक पुड़िया , ठढ़का नाक में लागल छुरिया 

30. मड़ुआ मीन , चीनी संग दही

     कोदीक भात , दूध सँग सही

31. माघक कनियाँ  बाघ 

32. माघ मास पड़े हल हली, नहि नहाबी तs दंतमनिए कs ली 

33. मियाँ के दौड़ मस्जिद तक 

34. मरै छी ने जीबै छी , हुकुर हुकुर करै छी

35. मौगी नैय मनुक्ख बलगोबिना

36. माछ आ पहुना, तीन दिन कहूना 

37. माँगि चाँगि खाय हलुक सन काया, हमरा देखि के ककरा नहि लागे दया

38. माय माय में भेद , किओ माय दाता किओ माय प्रेत

39. माय सन धी , पिता सन पूत, नहि बेसी ते थोड़बो थोड़

40. मोन-अछताइया मोन-पछतइया एहन सुनर कनिया हमर नहियर जैइया

41. माए सँ बेसी जे माने से डाइन कहाबे 

42. मोर मन , मोर मन , नहिं पतियाए 

      सौतनिक टाँग दुनु झूलते जाय

43. मियाँ बुझलैन पियाउज

44. मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना

45. मुखशुद्धि के परकारे नहिं ,अरियातबाक बड्ड चमत्कार 

46. मुइलाक उत्तर डोम राजा

47. माय मुइने बाप पितिया

48. माय कहै मोर पूत सपूता, बहिन कहै मोर भैया

जोरू बुझैय खसम क, सब सँ पैघ रुपैया 

49. माँगि चाँगि खाय , हुलासन काया

50.  माय मरिहैं धिया लेल , धिया मरिहैं ब्याहता सांय लेल 

51. मुँह में राम बगल में छुरी 

52. मोर सैंया बड़ चतुरैया , चुल्हि क आगू मोंछ फहरैया

53. माय गुण धी, पिता गुण घोर । नहिं किछु त थोड़बो थोड़।

54.मन मे मन मे किछु नै खाए, टुके टुके अढ़य टा खाए 



"य "

1. यैह गुड़ खेने कान छेदेने


"र "

1.  राति सुतु , भोर सुतु , बेर पाबि फेर सुतु 

2. राजा राज लय बेहाल , रानी चुम्मा लय बेहाल 

3. राजा बेटी  के पहिरन ओढ़न, धोबी के पैर पोंछना 

4. राजा कें सेबने कान दुनु सोन , बनियाँ के सेबने छटांक भरि नोन

5. राजा दरजे ते नौ मन घी , बनियाँ दरजे ते छटांक भरि नोन

6. राज महाराज के बाँट करे बक्खो 

7. रुसल जमैया मोर करता की ,  धिया छोड़ि मोर लेता की 

8.  राड़ कें कहलहूँ बाबू , ते उछलि के आएल आगू  

9. राड़क भौजी , सबके भौजी 

10. राड़क लगही के काज भेल , ते छह महीना लगहीये नैय केलक

11. रामधनी के कोन कमी,  भगवा फाटे दनादनी

12. राजा दुखी, प्रजा दुखी ,जोगी के दुःख दुन्ना 

13. रातिये आएल पिया रातिये गेल, भरि मोन पिया के देखियो ने भेल

14. रावणक लघी

15. रौह के मुड़ी, भून्ना के पेट

      दही क ऊपर गुड़क हेठ 

16. राजा के हाथीसर , सेहो सवा लाख

17. रातिक चमक आर दिनक  छाया , ढाक कहे जे बरखा गाया

18. रूप ने छत्ता , मसुरी के दाइल बड्ड खट्टा

19. रूप ने रेखा नाम सुरूपनेखा

20. रामचंद्र लकलक , सीता दाय चोकना

21. राँड़ी मौगी ताके बाट ,कोन घर भोजभात

22. राड़ के सुख बलाय

23. राँड़ काने अहिबाती काने तै संग कुमारि सेहो काने



"ल "

1. लबरा आबि गेल , चारि कथा बाजि गेल 

2. लुच्चा मरए माघ मास

3. लादि दे लदा दे , पोखरि श्याम के पहुँचा दे

4. लंका में जे सबसे छोट से उनचास हाथ

5. लहँग लड़ीला सदा सुखी

6. लड्डू लड़य त झिल्ली झड़य 

7. लिख लोढ़ा पत्थर 

8.  लेलही के पितड़ीक कनैली , 

     पिया सँ मंगलौं करिया हारी ,

     नयन दुनु डाहि देलनि ,

     आनि देलनि उजरा हारी 

9. लाल नुआ फाटि जाएत , चमकब छुटि जाएत

10. लाजे भावो बाजथि नहि , ढीठ भैंसुर छोड़थि नहि

11. लाजे ने लजेएली मउगो,खीर में मंगली झोर

12. लाल नुआ फाइट जाएत , चमकब छुटि जाएत

13. लिखे आबे .. त नैय, मेटबे आबे ... दुनु हाथे

14. लत्ती चोर फत्ती चोर , तखन भेल सिंघिया चोर  

15. लम्बी लम्बी केश के बरहा बाँटब , सुन्दर धो धो के चाटब ?

16. लूटि आनी कूटि खाय 


"व"

1. विप्र टहलुआ , चिक धन और बेटी के बाढ़ी ,अहू सं धन नैय घटे त करू बड़ सं रारि


"श "

1. श्रीमन्त नारि कहाबथि छिनारि, श्रीमन्त पुरुख होई छथि भिखारि

2. शुद्धाक मुँह कुत्ता चाटे

3. श्रावण शुक्ला सप्तमी हँसि के उगे भान, मुस कहे मुसनी के कतय के रखबे धान


"ष"



"स "

1. सब धन बाईस पसेरी 

2. सैयां से छुट्टी नहि , दीयर मांगे चुम्मा

3.   सिंघ तोड़ी पड़रु बनब

4. सात बापुत राम के , एक्को नैय काम के 

5. सएं से सम्बन्ध नैय ,आ दीयर संग फदक्का 

6. सउन के जनमल गीदड़ , भादो में कहलक एहेन बाढ़ी नैय देखलौं 

7. सोन त कान नैय , कान त सोन नैय 

8. सय चोट सोनार के एक चोट लोहार के 

9. सुट्टी पिल्ली राम भजुआ माय , डोका तीमन लए  गुड़कल जाय 

10. सांझ पराती भोर बसंत , तखनै बुझलौं गीतनादक अन्त 

11. सब दिन खायहैं , पाबनि ललैयहें

12. सासुर सुर पुर,  दिन दुई चारि , तकर बाद पासनि कोदारि

13. साउस तर बसलहुँ , पुतौह तर बसब तखन ने

14. सुग्गा के बजाबि ते बज्बे नै करे , आ तीसी झन झन बाजे  

15. साउस ने ननदा , अपने अनन्दा 

16. समादे दही नहि जनमै छैक

17. सब काज दाय के,  नाम भौजाय के 

18. सड़लहो  भुन्ना , त रौहक  दुन्ना 

19. सस्ता गहुम, घर घर पूजा  

20. सड़ल गाए बाभन के दान 

21. सब सखी झुमैर खेले , लुल्ही कहे हमहूँ 

22. सोन अछि त कान नहि , कान अछि त सोन नहि 

23.  सीरक ओढ़ी क,  घी पीनय 

24. सीरा खाए हीरा , पुच्छी खाए गुलाम 

25. सुतल छि , आ ब्याहो होइया 

26.  सब मिलि करि काज , हारने जीतने नहि लाज

27. सबके बेर भोला पढ़ि लिख गेल , हमरा बेर में कलम टूटि गेल 

28. सजिते सजिते धिया कनाहि

29. सांझे मुइला , कानब कत्ते

30. सुपक भट्टा

31. सुख सिहली दुःख दिनाय , करम घटे त फाटे बेबाय 

32. सुनि सुनि  लगैय दांती , आब कुकुर बान्हैय गांती 

33. साउस नैय बिएलि , ननदि नहि भेल

     माए नैय बिएलि , बहिन नैय भेल

34. सब देवता के दौड़ , महादेव के घुसकुनियाँ  

35. साएं मान ने मान , बौह टकुए टान 

36. सैंया भेल कोटबलबा हम नंगटे नचबै ना/सैंया भेला कोतबाल हमरा डर कथी के

37.  सनेस ने बाड़ी , खखास बड़ भारी

38. सब हाथ मेहंदी , धान के कूटत ,सब दात रंगबा, चूल्हि के फुकत

39. साल भरी खाये मलपूआ ,आर अगहन में पुछै कतैक हुआ

40. सुगरक गूंह ने नीपे जोगरक , ने पोते जोगरक

41. सेर पसेरी अकड़ा चूड़ा दही छाछ भरि जलखै जकरा,

      की हएत चटने पाव भरि जोड़न , ऊँटक मुँह में जीरक फोड़न

42. सूरदास घी कड़कड़ौने  बुझताह

43. सैंयों ने बेटबो नैय, किरिया ककर खाएब

44. सासू पाबनि तिहार, पुतौह वैह सरबा, वैह ढकना, वैह वेवहार

45. सात नुए सीता नांगटि

46. सड़ी गलि जाए , गोतिया नहि खाए, गोतियाक खाएल अकारथ जाए

47. समाठक चोट उखैरे जाने

48. सूती खरतर पर सपना देखि नौ लाख के

49. सैंय मान  नै मान, कनियाँ खोपा बान्ह

50. सय दवा एक संजम

51. सुखाएल माछ , भुखाएल मुसहर 


"ह "

1. हम सुनरी अहाँ  पिया सुनरा , अई गाम के सभ किओ बनरी बनरा 

2. हेहरी गे हेहरी केना रहै छय , लात मुक्का खाय छी भने रहै छि 

3. हड़बड़ी बियाह , कनपटी सेनुर 

4. हर बहे से खड़ खाय , बैसल बकरी खाय अंचार 

5. हर बहे बरद, हकमे कुकुर 

6. हम पोखरि में नहाय छी, ओ डबरा में ओंघराई छथि , हम छाहरि में सुस्ताए छी , ओ रौद में छिछआई छथि 

7. हे ननदो , तोरो ननदो 

8. हाथ पाएर में दम नैय , आर ककरो सं कम नैय

9. हाथी बिका गेल , आ अंकुश जोगा क रखने छी 

10.  हलुक माटि बिलाय कोड़े 

11. हम चराबी दिल्ली - दिल्ली , हमरा चरबय घरक बिल्ली 

12. हारल मियाँ , सुग्गर खाए 

13. हरिनक गवाही सुग्गर देल ,  दुनु पड़ा के जंगल गेल  

14. हक्कैल कुकुर , कतौ शिकार करय 

15. हारल नटुआ झुटकी बिछय 

16. हरी गुन गाबै से धक्का पाबै , डाँड़ घुमाबे से टक्का पाबै 

17. हथिया पेट सँ निकलल जाड़ , गोनरि लेल खड़ कटै य राड़

18. हेहरी गे हेहरी, सैयां मारलको बाप के देहरी 

19. हसि क बाजि हंसले जाई , खसि क बाजी खसले जाई 

20. हाथी चले बजार , कुत्ता भूके हजार 

21. हँसि हँसि बाजे नारि , से तीन कुल बिगाड़े 

22. हगनी ने लजाय, उपराग देव जाय

23. हेहरा के पोन में जनमल गाछ , ते कहलक छाहरिये में छी

24. हर में जौँ तौं , चौकी में बिहारि

25. हाकिम छोट , लाश भारी 

26. हँसुली चलि गेल आ बुलाकि लs मारि

27. हर ने फार चभाक दs हेंगा

28. हरी रे हरी साग पात चिबेबाक छल ते जनम किए लेल

29. हमरे उलायल कुरथी , बबा जी कहाय बैकुंठी

30. हम तेते रंग , हम तेते रंग , सब छुतहरी एके रंग

30. हाथ सूखा , ब्राह्मण भूखा

31. हमरे पोषल बिलाय हमरे कहे मियोऊँ 






"क्ष "

"त्र"

"ज्ञ"

 

जारी ........................


संकलन : श्री मती विजया ठाकुर एवं अमर नाथ ठाकुर 

कोलकाता , 13 नवम्बर , 2021.




Thursday, 11 November 2021

ठोकर


घर में भी टकराते हैं ....

कभी खुल रही खिड़की से

कभी बन्द हो रहे दरवाजे से

कभी दीवार से , कभी शीशे से  

छत से तेजी से घूम रहे पंखे से 

टूट कर गिरते पंखे से 

कभी ऊँगली कटती 

कभी नाक कटती

कभी खून से लथपथ  होता 

कभी मरहम पट्टी कभी दवा-दारु होती 

टकराने का दर्द से सहोदरी रिश्ता होता है 

टकराकर पछताते हैं  

लेकिन तभी तो अपना मूल्यांकन स्वयं कर पाते हैं

कभी खुले पथ पर भी टकराते हैं ...

जब पथ काँटों से भरा हो

सर्वत्र कंकड़ - पत्थर ही सना पटा हो

तब हर कदम पर टकराना होता है

कभी कांटे चुभते हैं कभी नाख़ून उखड़ते हैं

कभी हड्डी टूटती है कभी चमड़े छीलते हैं

कभी सपाट समतल पथ पर भी कदम लड़खड़ाते हैं

और गिरते हैं  

पीड़ा जब होती है 

फिर टकराने के ‘महत्त्व’ को जानना होता है 

तभी चलते रहने का अहसास होता है

कभी विचारों से टकराते हैं .....

कभी सिद्धान्तों से टकराते हैं .....

जब टकराव होते हैं

तब बहस होती है

एक हलचल मच जाती है 

जब भ्रष्टाचार से टकराते हैं

तब आन्दोलन होता है

दूसरों के सोच से टकराना होता है

स्वयं के सोच से भी टकराना होता है

कभी विरोधी विचारों से

कभी निंदा और गाली की बौछारों से

कभी अंतर्द्वद्व से

कभी छिन्न-भिन्न मनः स्थिति से

कभी तो टकराकर भटकने लगते हैं

और तभी तो सुपथ मिलते हैं 

टकराने के बाद पुनः टकराने का क्रम चल पड़ता है

एक-एक कर अनुभव में कुछ जुटता चलता जाता है

इस तरह टकराना अनवरत चलता ही रहता है

जब टकराते हैं तभी पता चलता है कि चल रहे हैं

यह चलते रहने का द्योतक है

यह हमारी दिशा का उद्घोषक  है

जीवन पथ का मील-स्तम्भ है टकराना                    

टकराते चलते रहना ही सरस जीवन है

निर्बाध चलते रहना तो नीरस जीवन है . 

 अतः चलते रहो 

टकराते रहो 

जीवन रस पान करते रहो .

अमर नाथ ठाकुर , 25 नवम्बर , 2018 , कोलकाता

 

Tuesday, 2 November 2021

बिहार का चुनाव

 बिहार का चुनाव !


वर्षों का कांग्रेसी शासन।कांग्रेसी करते रहे और करते ही रह गये।पूरा न कर पाये।कुछ भी नहीं हुआ और बिहार कराहता रहा ।


कर्पूरी जी भी कुछ करना चाह रहे थे शायद समय ज्यादा न मिला।

एक दशक से ज्यादा उसी समय जातीय संघर्ष का दौर चला - बैकवर्ड-फॉरवर्ड की लड़ाई।जनजागरण जरूर हुआ होगा किन्तु बिहार की शिक्षा व्यवस्था चरमरा गयी। क़ानून-व्यवस्था का गिरता स्तर और बढ़ता भ्रष्टाचार बिहार का पर्याय हो गया।


फिर लालू का युग आया। इन्होंने ने तो जैसे ठान रखा था, कुछ नहीं करना है। और इन्होंने कुछ नहीं किया। बिहार रसातल में चला गया। यही दौर था जब गाली और बिहारी एक दूसरे के समानार्थी होने लग गये। लालू के फूहड़ सस्ते मजाकिये अंदाज ने स्तर और गिरा दिया। अपहरण एक फलता-फूलता व्यवसाय बन गया। 


फिर नीतीश का उदय होता है जब कि जनता ने काफी उम्मीदें पाली हुई थीं। कुछ काम बना। जनता ने साँसें लेनी शुरू कर दी थीं। क़ानून-व्यवस्था की हालत सुधरी ,अपहरण कम होने लगे । भ्रष्टाचार भी कम हुआ । सड़क और बिजली के क्षेत्र में भी काम होने  लगे। आंगनबाड़ी,शिक्षामित्र  आदि अनेक तरह की बहालियाँ हुईं। कुछ लाख शिक्षकों की भी बहाली हुई। गुणवत्ता में ये सब खरे नहीं थे । फिर भी इतने रोज़गार पाकर बिहार की जनता में नयी आशा का संचार हुआ। लोग जाति आधारित झगड़े फसाद को भूलने लग गये। किन्तु इन सबका सारा श्रेय नीतीश को ही नहीं दिया जा सकता है, उनके पीछे भारतीय जनता पार्टी का सशक्त समर्थन और सहयोग भी था ।


 किन्तु शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में तो जो भी हुआ उसे ऊँट के मुँह में जीरा समान कार्य ही कहा जा सकता है। 

जो हो बिहारियों की घर वापसी शुरू नहीं हुई और न ही बिहारियों का पलायन रुका। लगता है अभी प्रवासी बिहारी कुछ और देखकर आश्वस्त हो लेना चाहते थे। लेकिन बिहार के नसीब में अच्छे दिन नहीं लिखे थे। नीतीश और भाजपा  झगड़ पड़े। बिहार की जनता के हित में ये लड़ाई रोक सकते थे। लड़ाई किन्तु रुकी नहीं। बिहार का दुर्भाग्य जो था ।


 किसकी गलती थी गहराई में अभी नहीं जाना, किन्तु नीतीश का अहंकार जरूर परिलक्षित हुआ।


बिहार के विकास की पटरी उखड़ गयी थी । बिहार तेजी से नीचे की तरफ जाने लगा। नीतीश अपने धुर विरोधी कांग्रेसी और लालू के नजदीक आकर अपनी सरकार के स्थायित्व के लिये ज्यादा मेहनत करने लग गये। बिहार के विकास का एजेंडा गौण हो गया। राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गयी।


नीतीश की गिरती लोकप्रियता का परिणाम यह हुआ कि अगले चुनाव में नीतीश पूरी तरह धराशायी हो चुके थे। नरेंद्र मोदी का भगवा झंडा आसमान में लहरा रहा था। नीतीश ने जनता की  नब्ज़ नहीं पहचानी । उसका अहंकारी मन पराजय को नहीं स्वीकार कर सका।


मांझी को मुख्यमंत्रीत्व सौंप कर एक अनूठा एवं आदर्श उदाहरण पेश करना चाहते थे, लेकिन उनके मन का मैल ऊपर आ गया। वह लालू और सोनिया स्टाइल में मांझी को हांकना चाहते थे। मांझी राबड़ी और मनमोहन से आगे निकले।फिर नीतीश ने अपना असली रंग दिखा ही दिया । नीतीश सत्ता पर फिर से कब्ज़ा कर बैठे। सत्ता का अतीव लालच नज़र आया जनता को नीतीश की कारगुज़ारियों में। 


नीतीश के द्वारा लालू का समर्थन लेना सबसे बड़ा पहलू बनता है नीतीश के कमज़ोर राजनीतिक चारित्रिक व्यक्तित्व का। जनता  लालू के जंगल राज को अभी पूरी तरह भूली  भी नहीं थी।जनता के अध पके घाव को नीतीश ने फिर से खरोंच लगा दिया था। स्राव होने लगा।


चुनाव के इस अंतिम चरण में जनता क्या यह समझती है ----


1. कांग्रेसियों के समय में  15 पैसे सरकारी पैसे जनता तक रिस - रिस कर आते थे । 

2. लालू के समय में जनता तक पैसे रिसने बंद हो गए थे।

3. नीतीश के समय में 25-30 पैसे तक जनता तक रिस कर आने लगे थे । 


तो जनता उसको क्यों न मौका दे जो पूरा का पूरा सौ पैसे जनता तक रिस कर आने देने का वादा करे। वैसे भरोसा क्या है ? जो किन्तु फेल हो गये उस पर फिर क्यों का भरोसा।


जनता को यह समझना होगा कि


1. कांग्रेस काम करती रही , करती ही रह गयी और कर ही नहीं सकी।इसलिए कुछ हुआ ही नहीं।

2. लालू ने करना ही नहीं चाहा और इसलिए कुछ नहीं हुआ।

3. नीतीश करना चाह रहे थे लेकिन कर ही नहीं सके।


इसलिए मौका उसे मिले जो अब नया हो , करना चाहता हो। और कोई च्वाइस भी तो नहीं है। बार - बार किसी आज़माए हुए को फिर क्यों आज़माऍं।


जय बिहार !

जय हिन्द !

अमर नाथ ठाकुर, 2 नवम्बर, 2015, कोलकाता ।

Sunday, 10 October 2021

सनातन एवं इस्लाम धर्म की पारस्परिक ग्राह्यता एवं सौहार्द्र

 


15-16 साल पूर्व की एक घटना ने इस्लाम के बारे में कुछ अन्यथा सोचने के लिये मेरे अन्तर्मन को झकझोर दिया। एक दिन मेरे एक  समकक्ष मुस्लिम महिला ऑफिसर मित्र  के ऑफिस में बहुत जोरों का हंगामा चल रहा था। उनका घेराव हो रखा था। घेराव करने वाले ऑफिस के ही सारे स्टाफ और ऑफिसर थे। मुझे जैसे ही पता चला  मैं  उस महिला अधिकारी के बचाव में तुरन्त ही चला गया। चूँकि हम दोनों के ऑफिस एक ही बिल्डिंग में थे और एडमिनिस्ट्रेटिव हेड  और उस ऑफिसर के महिला होने की वजह से मैं वहाँ उनके बचाव में चला गया था। जाने के बाद पता चला कि मामला ऑफिसियल कम धार्मिक ज्यादा था। जब इन महिला अधिकारी ने यहाँ के ऑफिस में ज्वाइन किया था, पहले ही दिन काली और रामकृष्ण वाले कैलेन्डर को उतरवाकर  कमरे से बाहर ले जाने को कह दिया था। बाजार से ऐसा कैलेंडर मंगवाया गया जिस पर किसी देवी- देवता का फोटो न हो, इन्होंने एक चटाई भी खरीदवायी थी जिस पर ऑफिस में ही वो नमाज पढ़ती थी, शुक्रवार यानी जुम्मे के दिन सेकंड हाफ में ही ऑफिस आती थी अथवा ढाई-तीन घंटों के लिए ऑफिस से चली जाती थी पास के किसी नामी मस्जिद में जुम्मे की नमाज़ के लिये। इस तरह स्वयं ये महिला ऑफिसर ऑफिस आने जाने में एवम् अपने धार्मिक कार्यों में भरपूर स्वतंत्रता बरतती थी, लेकिन अपने ऑफिस में लेट आने वाले स्टाफ को ये मेमो थमा देती थी, उनको रजिस्टर में अनुपस्थित भी मार्क कर देती थी। उनका यह आचरण स्टाफ लोगों को बड़ा ही भेद- भाव पूर्ण लगा। अतः स्टाफ लोगों ने इनके धार्मिक रंग पर चोट करने की सोची और उन लोगों ने भी योजना के तहत मंगलवार या सोमवार या शनिवार को पहले हाफ में ऑफिस आना बंद कर दिया। महिला अधिकारी के पूछने पर स्टाफ लोगों ने भी कहना शुरू कर दिया कि वो लोग भी पूजा करने मन्दिर गये हुए थे। इस तरह इस महिला अधिकारी से स्टाफ लोगों का विरोध बढ़ने लगा था और धीरे-धीरे इस तरह झगड़ा इतना उग्र रूप ले चुका था कि आज का दिन उनके प्रतिक्रियात्मक घेराव में परिणत हो चुका था। घेराव मानसिक रूप से ऑफिसर के प्रताड़ना का जबरदस्त जरिया होता है बंगाल में। खैर, किसी  तरह  बात बनी और बड़ी जद्दो-जहद के बाद घेराव छूटा। महिला अधिकारी ने अपने एकतरफा क्रिया-कलाप से पैदा किये असन्तोष को बाद के समय में कम करने की जरूर कोशिश की, लेकिन कुछ ही दिनों में उनका कोलकाता से ट्रान्सफर हो गया था ।


मैं सोचने लगा। सनातनी तो मूल रूप से सहिष्णु होते हैं, प्रतिक्रियावादी नहीं होते, सनातनी तो उदार, सरल, अनुग्राही और समझौतापरक होते हैं। मैं  सनातनी उन मुस्लिम महिला अधिकारी की  कट्टरता की प्रतिक्रया में कट्टर नहीं हो सकता था,  इसलिए सिवाय अफ़सोस और नफरत के मुझे कुछ नहीं हुआ, जो सिर्फ अपने तक में ही सीमित रहा। लेकिन क्या हर हिन्दू सनातनी ऐसा ही रहेगा। मुमकिन नहीं है। कुछ इन सब घटनाओं से प्रतिक्रियावादी हिन्दू तैयार हो जाएंगे। वर्षों बाद आज जब हम उन घटनाओं की विषद विवेचना कर रहे हैं तो कश्मीर से निकाले गये कश्मीरी पंडितों का ख्याल आता है जब कश्मीर हिन्दू शून्य हो जाता है। पता करता हूँ, सुबह में और पाँचों वक्त जोर-जोर से अजान की ध्वनि कानों से टकरा कर क्या संदेश देती है? तमिलनाडु के उस मुस्लिम बहुसंख्यक गाँव की बात याद आ जाती है कि जो सुप्रीम कोर्ट तक चली जाती है कि उस गाँव में हिन्दू मन्दिरों में वार्षिक पूजा न हो और वार्षिक रथ यात्रा भी हिन्दू इसलिए न निकालें कि यह मुस्लिम बहु संख्यक गाँव है और इसलिये भी कि इस्लाम में मूर्ति पूजा की सख्त मनाही है। केरल के एक जिले में जब मुस्लिम आबादी आधी से ज्यादे हो जाती है तो वहाँ मुस्लिमों द्वारा सिर्फ मुस्लिम जिलाधिकारी की माँग होने लगती है। बंगाल, उत्तरप्रदेश और केरल जैसे राज्यों में मुस्लिम बहुसंख्य क्षेत्रों में हिन्दुओं की पूजा अर्चना पर इस सेकुलर देश में भी मनाही हो जाती है। पाकिस्तान में हिन्दूओं की आबादी आजादी के समय के 23 %  के मुकाबले  2-3 % पर आ गयी होती है। बांग्लादेश में भी हिन्दू आबादी 1947 की आजादी के बाद से करीब तिहाई से भी कम पर आ गयी होती है। अफगानिस्तान हिन्दू आबादी शून्य हो गया होता है। अधिकाँश मुस्लिम देश में इस्लामी शरिया कानून लागू है। अधिकाँश मुस्लिम देशों में मन्दिरों में पूजा की मनाही है। अफगानिस्तान में बुद्ध के ऐतिहासिक मूर्ति को तोड़ दिया जाता है। पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे देशों में आये दिन मन्दिरों में तोड़ - फोड़ होते ही रहते हैं, मुसलमान मूर्ति भंजक बन जाते हैं, हिन्दुओं का जबरन धर्म परिवर्त्तन, उनकी बच्चियों से जबरन शादी की बातें वहाँ आम होती हैं, जिस पर वहाँ की सरकार की तरफ से भी कोई ख़ास कार्रवाई नहीं होती है। अफजल गुरु की फाँसी के बाद उसके जनाजे में अपने यहाँ हजारों की भीड़ जमा हो जाती है, ओसामा बिन लादेन के समर्थन में नारे लग जाते हैं, अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार के समर्थन में  आवाजें गूँजने लगती हैं। कहीं गजवा-ए-हिन्द का पाठ, कहीं लव-जेहाद, कहीं जबरन या कहीं लालच देकर धर्म परिवर्त्तन, कहीं मॉब लिंचिंग, तो कहीं घर वापसी आदि की सामाजिक ताने-बाने को बिगाड़ने की बातें आम हो रही होती हैं ।


बहु-संख्य-मुस्लिम समाज अल्प-संख्य इतर धार्मिक समुदाय को कभी नहीं स्वीकारता। इतिहास इसका गवाह है। ईरान, ईराक या अन्य सभी मुस्लिम देश इसके उदाहरण हैं। वर्त्तमान में अफगानिस्तान इसका उदाहरण हैं, पाकिस्तान, बांग्लादेश इसके उदाहरण बनते जा रहे हैं। कश्मीर से हिन्दू पण्डितों का निष्कासन इसका ताजा-ताजा ज्वलंत उदाहरण है। अतः कल्पना कीजिए 1947  में भारत का विभाजन नहीं हुआ होता तो अखंड भारत में 100 करोड़ हिन्दू के मुकाबले में करीब 65-70 करोड़ मुसलमान होते और ऐसी स्थिति में मार-काट, लूट-पाट, बलात्कार, धर्म-परिवर्त्तन, महिलाओं पर अत्याचार, महिलाओं का दिन-दहाड़े अपहरण आदि एक असह्य सीमा को पार कर गया होता (जैसा पाकिस्तान, बांग्लादेश में होता है, अफगानिस्तान में हुआ, कश्मीर में हुआ, उन आधारों पर कहना है), अधिकाँश भारत में शरिया कानून होता, पूरा देश बोको हराम, आइएसआइएस  एवं विभिन्न आतंकवादी मुस्लिम संगठनों की गिरफ्त में होता (आज दुनियाँ में 50 से ज्यादे खूँखार मुस्लिम आतंकवादी संगठन सक्रिय हैं)। आज भारत कई हिस्सों में नहीं बँटा होता तो 165-170 करोड़ आबादी वाला एक इस्लामिक राष्ट्र होता। सनातनी हिन्दू से सम्बन्धित किताबों में लिखी बातें लिखे तक ही सीमित रह गयी होती। धन्यवाद जिन्ना और नेहरु (यदि नेहरु भी 1947 के भारत विभाजन के लिए जिम्मेवार  साबित हो रहे हों) को जिसने भारत को 1947 में बांटा और उस समय सिर्फ 30-40 लाख के नरसंहार पर बात सीमित रह गयी, नहीं तो आज हमलोग (हिन्दू एवम मुस्लिम दोनों, ईसाई को भी जोड़ सकते हैं) कई-कई  करोड़ नरसंहार में कट रहे होते, और आज दुनियाँ अहिंसा, सहिष्णुता, मैत्री, भाईचारा जैसे सुसन्देश देने वाले सनातनियों के संग का सौभाग्य खो गये होते और वेद और उपनिषद, गीता और रामायण अमेरिकन और यूरोपियन विश्वविद्यालयों के  पाठ्यक्रम का सिर्फ हिस्सा होते, अयोध्या, मथुरा, काशी, कन्याकुमारी, पुरी, केदारनाथ, बद्रीनाथ, द्वारिका और दक्षिण के विलक्षण मंदिर सब इतिहास की बात होती, शायद उनके भग्नावशेष भी नहीं होते। इस क्रम में कुछ अच्छे-अच्छे इस्लामिक स्ट्रक्चर भी भग्नावशेष में बदल चुके होते। 


कहते हैं कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता, लेकिन जब करीब-करीब सभी आतंकी एक ही धर्म वाले पाए जाते हैं तो लगता है यह सिद्धान्त गलत है। गलती कहाँ है? दोष कहाँ है? मुसलामानों के धर्म की हम निंदा नहीं करते और करना भी नहीं चाहिए क्योंकि किसी सनातनी के लिए यह सर्वमान्य बात है, लेकिन हम इस्लाम को लेकर सन्दिग्ध क्यों होने लगते हैं ?  हमारे हिन्दू धर्म में ही कालांतर में ढेर सारी बुराइयाँ आ गयी थीं/है, लेकिन  हिन्दू धर्म में लगातार सुधार होते रहे हैं, अभी भी चल रहे हैं। लेकिन हमें लगता है हिन्दू धर्म की तर्ज पर इस्लाम में भी रिफार्म की आवश्यकता है। उनके कुरआन मजीद के ऐसे आयत जो सीधे-सीधे नफरत या हिंसा या किसी भेद-भाव का संदेश देते हैं,  के अर्थ को उदारवादी बनाना होगा। जन्नत, काफिर,मुशरिक आदि शब्दों के गलत सन्देश प्रसारित करने वाले अर्थ को सर्वग्राही बनाना होगा । मदरसे में कुरान मजीद की शिक्षा पद्धति में आमूल परिवर्त्तन करना होगा। क्योंकि वहाँ "अल्लाह भगवान से अलग है , गैर मुस्लिम काफिर है और काफिरों को मारने में कोई बुराई नहीं, मूर्ति पूजा से घृणा, जन्नत में हूर मिलती हैं आदि"  विकृतियों से भरी शिक्षा दी जाती है और मुस्लिम बच्चों में कट्टरता जागती है। अल्लाह हिन्दुओं के भगवान अथवा ईसाईयों के गॉड से अलग अर्थ नहीं  रखता, ऐसा आम मुस्लिमों तक को बताना पड़ेगा। सनातनी किसी की पूजा पद्धति से घृणा नहीं करता फिर मुस्लिम ऐसा क्यों करता। इस्लाम बुत परस्ती से मना करता है लेकिन यदि बुत परस्तों से या हिन्दुओं की इस प्रथा से नफरत करना भी सिखाता है तो ऐसे इस्लाम की समझ को बदलना पड़ेगा, क्योंकि ऐसे में हिन्दू और मुस्लिम कैसे साथ रह सकते  हैं ? इसमें इस्लामिक स्कालर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं । सूफ़ियों के संदेश किस तरह सर्वग्राह्य हैं, क्यों नहीं इन्हें आगे आते रहने चाहिये ?


ईश्वर सबके प्रति दयावान होता है, यह भेद-भाव नहीं कर सकता, ईश्वर सभी धर्मों से ऊपर है, धर्म ईश्वर पाने के रास्ते  हैं, इसलिए ईश्वर या वो सुप्रीम अथॉरिटी के अपने धर्म के अनुसार अलग नाम हो सकते हैं, लेकिन सभी सुप्रीम अथॉरिटी समान हैं, एक हैं । यही सन्देश सभी धर्म क्यों नहीं दे सकते ?  सनातन धर्म के बड़े-बड़े साधु सन्त इस बात को डंके की चोट पर कहते हैं । रामकृष्ण परमहंस क्या कहते थे ..... उन्होंने तो बहुत से धर्मों का अनुशीलन किया था और तब कहा .....कि इस्लाम, ईसाई आदि धर्मों के अनुशीलन के उपरान्त हमें  वही अनुभूति हुई जो सनातन धर्म को पालन करने के उपरान्त हुई ..... क्या ऐसा ही सन्देश दूसरे धर्म के धर्म गुरु देते हैं ? यदि नहीं तो फिर ऐसा करने की आवश्यकता है। ला इलाहा इल्लल्लाह ...... का अर्थ है अल्लाह के सिवा और कोई भगवान नहीं, लेकिन यदि मुसलमान इसका अर्थ यह समझे कि सिर्फ अल्लाह होते हैं और भगवान-वगवान, गॉड कुछ नहीं तो इस धारणा को मिटाना होगा, बदलना होगा। यदि ईसाई जीसस को, मुसलमान मुहम्मद को मानते हैं तो उन्हें राम, कृष्ण के अवतार होने को नकारने की प्रेरणा कहाँ से मिलती है ? यदि ऐसी बात या इस तरह के विभेदकारी चिंतन की धारा उनमें है तो इसे त्यागना ही होगा .....हमारा अल्लाह उनके भगवान् से ऊपर है या बेहतर है..... इस धारणा को बदलना ही होगा । अराबिक में अल्लाह जो है वही संस्कृत में भगवान है, अंग्रेजी में गॉड है । श्री रामकृष्ण कितने साधारण ढंग से इस बात को बता देते थे .... अक्वा  कहो, वाटर कहो, जल या पानी कहो सब एक ही चीज है सबका वही स्वाद है और सबका काम प्यास बुझाना ही है । जब आपका सामना इनसे होता है तभी आप समझते हैं ये सब एक हैं। अलग भाषा से यह सिर्फ सुनने में अलग लगता है, वस्तुतः अलग है नहीं । जिस दिन अल्लाह से, गॉड से, भगवान से सामना हो जाय तो पता चले कि ये सब एक ही है। हर धर्म के विद्वान्, ज्ञाता, ठेकेदार ऐसी ही व्याख्या करते हैं ? यदि नहीं तो उसका तिरस्कार करना चाहिये, बहिष्कार करना चाहिये। यदि कहें कि इस्लाम घृणा नहीं सिखाता तो फिर हिन्दुओं की मूर्ति पूजा से मुसलमान घृणा क्यों करते हैं ? मुस्लिम मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करते इसलिए उन्हें मूर्ति पूजकों से क्या नफरत की आजादी मिल जाती है ? बिलकुल नहीं । सिर्फ धर्म के मानने के आधार पर ईश्वर कभी भेदभाव, घृणा या मारकाट नहीं सिखाते। यदि ऐसा है तो ऐसी परिभाषा को बदलना ही होगा ।


सनातन धर्म का सन्देश  "वसुधैव कुटुम्बकम याने पूरी पृथ्वी ही परिवार है, सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामया, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुखभागभवेत" में क्या कहीं कोई भेद-भाव का लेश मात्र भी कोई अर्थ छिपा हुआ है ? क्या ये उक्तियाँ कहती है कि सिर्फ सनातनी या हिन्दू ही सुखी हों, निरोगी  हों या सिर्फ उन्हीं का कल्याण हो,   बिलकुल नहीं . ... अहिंसा परमो धर्म: .... सत्यमेव जयते .... हर मंत्र के उपरान्त शान्ति, शान्ति, शांति : .... कहने की परम्परा सनातन धर्म को कितना महान बनाता है। दूसरे धर्म द्वारा भी इस तरह के सन्देश देने वाले वचन ग्रंथों से निकाल कर क्यों न प्रचारित किया  जाता ? सनातन धर्म के विभिन्न वेद  या उपनिषद जैसे ग्रंथों में इस तरह के वचन भरे पड़े हैं । जब सनातन धर्म की विशेषताओं को संग्रहीत करते हैं तो लगता है सनातन धर्म में कितना लचीलापन है, कितनी सहिष्णुता है, कितनी उदारता है, सबको अपने में समेट कर आत्मसात करने की कितनी क्षमता है। एक और सनातनी मंत्र को देखें...... ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥ ......उपनिषद के यह मंत्र अद्वितीय हैं। इस तरह के अर्थ और भाव वाले वचन शायद और किसी और धर्म के किसी ग्रन्थ में नहीं ।



सनातन धर्म में ही ईश्वर की अवधारणा के अनेक मत हैं ......  कोई राम को मानता है, कोई कृष्ण को, कोई शैव है, कोई शाक्त। कोई कबीर पंथी हो सकता है या नानक पंथी। कुछ ब्रह्म समाजी हो जाते हैं, कुछ आर्य समाजी। सनातनी एक साथ इनमें कई मतों को मान सकता है। लेकिन इनमें अब तो कम-से-कम लोग इन भिन्नताओं की वजह से नहीं लड़ते। सनातनी  अद्वैतवादी, द्वैतवादी या विशिष्टाद्वैतवादी में से कुछ भी हो सकता है। इसके लिये उनके ऊपर कोई भी बन्दिश नहीं है। सनातनी मूर्त्ति पूजक हो सकता है  या नहीं भी। वह मन्दिर पूजा के लिये जा सकता है या नहीं भी। वह  नाना प्रकार के पेड़ों, पक्षियों, जानवरों, नदियों, पहाड़ों की पूजा कर सकता है  या नहीं भी। वह  व्रत रख सकता है या नहीं भी। वह  मन्त्रों का जाप कर सकता है, नहीं भी। सनातनी  शाकाहारी हो सकता है  या माँसाहारी भी। वह  नाना प्रकार के जानवरों का माँस खा सकता है। वह नाना प्रकार की मछलियाँ भी खा सकता है। इस तरह की सोच वाले सनातनियों को समाज वाले  या सनातनी धर्म के ठेकेदार समाज या धर्म से निष्कासित या बहिष्कृत नहीं करते  या इस वजह से कभी कोई धमकी भी नहीं  देते।



सनातनी अपनी इच्छा से  मन्दिर जा सकता है, मज़ार, मस्ज़िद, गुरुद्वारे में या चर्च में जाकर ईश्वर की वन्दना कर सकता  है। उसे माथे पर रुमाल बाँधने या जाली दार टोपी लगाने में ज़रा भी हिचक नहीं होती। वह  धोती या लूँगी या पतलून बेहिचक धारण कर लेता है। इन धार्मिक स्थलों में, इन अजीबोगरीब पोशाकों में उसे  ईश्वर के प्रति निष्ठा या श्रद्धा दर्शाने में कोई संकोच नहीं होता। उसका सनातन धर्म कभी इसमें बाधक नहीं होता। उसे सिख, जैन, बौद्ध, मुस्लिम, पारसी, यहूदी या ईसाई धर्मावलंबियों से कोई परहेज़ नहीं। इन सबों से सनातनी परम्परा ने कभी घृणा या द्वेष नहीं सिखाया। सनातनी  रामकृष्ण को, साईं बाबा को समान दृष्टि से पूजता है। वह  चर्च में जाकर क्राइस्ट के सामने सर नवा कर आ जाता है, वह  किसी सूफी की मजार पर अपनी  इच्छा पूर्ति के लिये चादर चढ़ा चला जाता है। सनातनी  परम्परा, धर्म, संस्कृति ऐसा करने को प्रेरित करते हैं। सनातनी अपने व्यवहार से दूसरे के धर्म ग्रंथों को न पढ़ते हुए भी एक आदर्श प्रतिस्थापित करता है। इस तरह के  सदआचरण  आम भटके हुए मुस्लिमों या ईसाईयों में देखने को नहीं मिलते। सनातनियों की किसी कड़े धार्मिक क्रिया-कलापों से दूर रहने के स्वभाव को या ऐसी कोई पाबन्दी नहीं होने को ईसाई या इस्लाम मानने वाले अपने धर्म की संकीर्ण व्याख्या या अपने धर्म के उद्धरणों से इस स्थिति को प्रतिकूल दृष्टि से देखते हैं। इस तरह देखा गया है कि अपने धर्म ग्रंथों की व्याख्या का सहारा लेकर नफ़रत या घृणा या दूरत्व का संकेत ईसाईयों या मुस्लिमों से मिलता है  न कि हिन्दुओं सनातनियों से। आम धारणा है कि इस्लाम में लचीलापन का एकदम अभाव है। इस्लाम में प्रवेश का प्रावधान तो है, किन्तु यहाँ से निकलना असम्भव है। इस्लाम में  कट्टरता चरम पर है। इस्लाम से निकलने की इच्छा करने वाले मौत के घाट उतार दिए जाते हैं। यहाँ ईश-निन्दा बहुत बड़ा अपराध है, जबकि सनातनी अपने ईश्वर प्रतीकों पर एक से एक चुटकुले तक बोल लेते हैं।  इस्लामी शरिया कानून चौराहे पर पत्थर से, कोड़े से मारने की सजा देता है, हाथ काटने की सजा का अभी भी प्रावधान है, जो अमानवीयता की पराकाष्ठा है। महिलायें दोयम दर्जे का व्यवहार पाती हैं। देश के संविधान से ऊपर अपने कुरानिक या शरिया कानून को रखने की बात करते हैं। सबसे बड़ी समस्या है कि वहाँ कोई विरोध के स्वर नहीं उठते। इसमें वहाँ के विशिष्ट पढ़े -लिखे और वहाँ के उदारवादी विद्वान् भी कोई विरोधी प्रतिक्रिया नहीं देते या दे सकते। ऐसे लोगों पर तुरन्त ही फतवा जारी कर दिया जाता है। वसीम रिजवी या आरिफ मुहम्मद खान जैसे मुखर व्यक्तित्व वालों का यही हाल है। इस्लाम में आन्तरिक लोकतंत्र नहीं है। कुरआन की आयतें पत्थर की लकीर है। इससे इतर ये नहीं सोचते। तर्क वितर्क के लिए कोई स्थान नहीं यहाँ। अल्लाह के वचन जिब्रील के द्वारा पैगम्बर मुहम्मद साहब को सुनाया गया जिसे किसी और ने लिपि बद्ध किया। यहाँ सवाल उठता है कि इसे लिपि बद्ध किये जाते समय क्या कोई मिलावट नहीं हुई ? कुरआन मजीद में २६ ऐसी आयतें  हैं जिस पर सवाल उठता है कि ये भेदभाव और हिंसा को बढ़ावा देता है, इसलिए ये  आयत कुरआन के नहीं हो सकते क्योंकि ईश्वर या अल्लाह हिंसा या भेद भाव का आदेश  साधारण स्थितियों में क्यों देगा। सर्व साधारण मुसलमान कुरान मजीद की आयतों का सर्व साधारण अर्थ लेते हैं और भेदभाव और हिंसा की बातों को कुरान सम्मत बता देते हैं। अधिकाँश मुस्लिम देशों में हिंसा व्याप्त है और हिंसा करनेवाले ये आतंकवादी इन हिंसा को कुरआन सम्मत बता न्यायोचित ठहराते हैं। हिंसा का महिमा मंडन सिर्फ इस्लाम में ही देखने को मिलता है। मुस्लिम देशों में या अपने देश में मदरसों में शायद यही तथाकथित शिक्षा दी जाती है, जैसा सुनने को मिलता है, जो बच्चों को कट्टर बना देती है।



सनातनी या हिन्दू धर्म घृणा या हिंसा का कभी महिमा-मण्डन नहीं करता। आपने सुना है लोग अपने बच्चे का नाम रावण, कंस या दुर्योधन, सुरसा, शूर्पणखा रखते हैं ? जाति-प्रथा या स्त्रियों के सम्बन्ध में आपत्ति जनक बातों के उल्लेख वाले धार्मिक ग्रंथों के हिस्सों को सनातनी हिन्दूओं ने तहे दिल से नकारा है, तिरस्कृत किया है। ज्यादेतर आपत्ति जनक बातें तो धार्मिक ग्रंथों के गलत अनुवाद अथवा गलत भावार्थ से आयी हैं। कहीं कहीं धर्म ग्रंथों में मिलावट के भी सबूत मिले हैं जो विभेदकारी संदेश देते हैं। यदि यह कहीं पायी भी गयी हैं तो  इन शास्त्रीय खण्डों की खुले आम निन्दा होती है। ऐसी निन्दा या आलोचना पर कभी कोई रोक या धमकी की उद्घोषणा नहीं होती है। हमारी सीमित जानकारी में  सनातन धर्म में जिहाद, फतवा या काफ़िर या तलाक़ जैसे शब्दों का समतुल्य शब्द नहीं। यदि ऐसा हो तो उसे नकारने या त्यागने में भी कोई भी प्रतिरोध नहीं। जो सबका है वह सनातन धर्म है। जो सबको स्वीकारता है वह सनातन धर्म है। जो आज़ादी देता है, जहाँ बंधन नहीं, भेद-भाव नहीं, घृणा या द्वेष नहीं जो सिर्फ प्रेम, विश्वास और जन कल्याण  का पाठ फैलाता है वह सनातन धर्म है। सनातनी यह कहना पसंद करते हैं कि जहाँ प्रेम और करुणा, विश्वास, आज़ादी, श्रद्धा और निष्ठा, सहिष्णुता इत्यादि का वास हो वहीं सनातन धर्म है ।




अतः सिर्फ सनातन हिन्दू धर्म ही सार्वभौमिकता की कसौटी पर खरा उतरता दीखता है। सनातन हिन्दू धर्म में दुनियाँ की अन्य सारी धार्मिक मान्यताओं को आत्मसात करने की क्षमता रखता है । इसका कारण है कि बौद्ध, जैन, ईसाई, इस्लाम आदि सनातन हिन्दू धर्म से ही कालान्तर में निकले हुए हैं। सन्ततियाँ अलग हो सकती हैं किन्तु माँ  - बाप उसे हमेशा स्वीकार लेते हैं। देवी दुर्गा की एक प्रसिद्ध प्रार्थना का एक अंश कि 'कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति'  उल्लेख किये  बिना नहीं रह सकते । 


इसलिए सिर्फ पूजा पद्धति बदलने से क्या हमें बदल जाने चाहिये  या हमारे मानव-मूल्य बदल जाने चाहिये ? नहीं, बिलकुल नहीं। इसलिए किसी सनातनी के घर में किसी मजार के या मक्का मदीना या यरूशलेम के फोटो वाले कैलेन्डर लगा दें उनको कोई दिक्कत नहीं होती। लेकिन इस्लाम या ईसाई धर्म को मानने वाले को दिक्कत हो जाती है। सनातनी के एक ही घर में कोई मूर्ति पूजक होता है कोई आर्य समाजी होता है कोई फर्क नहीं पड़ता। आप मूर्ति पूजक नहीं हो सकते लेकिन मूर्ति से नफरत वाले क्यों हो सकते हैं ? आप अजान सुन सकते हैं तो आरती, भजन या रामायण की पंक्तियाँ क्यों नहीं सुन सकते। यदि कोई हिन्दू ईद मिलन समारोह मना सकता है, इफ्तार की पार्टी रख सकता है, ताजिये के जुलुस में शामिल हो सकता है तो कोई मुस्लिम दीवाली के पटाखे क्यों नहीं उड़ा सकता, होली का रंग या गुलाल अपने ऊपर क्यों न पड़ने दे सकता ? यदि कोई मुस्लिम मूर्ति पूजक नहीं तो भंजक क्यों हो ? धार्मिक रीति रिवाजों के लिए किसी को कोई घृणा या गुस्सा क्यों हो ? किसी का भगवान यदि इस प्रकार के घृणा या क्रोध सिखाता है तो क्या वो भगवान् हो सकता है ? बिलकुल नहीं ।


सनातनी यदि गाय को पूजते हैं तो मुस्लिम या ईसाई उसे सम्मान करे । हिन्दुओं को भी सूअरों को मुसलामानों के धार्मिक भावना के हिसाब से उनके इलाके से दूर रखना चाहिये। निरामिष खाने के मामले में हमलोग भी एक दूसरे की  धार्मिक भावना का  आदर करें। एक दूसरे के धार्मिक ग्रंथों को पढ़ें, एक दूसरे के संतों को सुनें। संतों को भी चाहिये कि जो  सन्देश  हम अपने समुदाय में बाँट रहे हैं कहीं वो दूसरे समुदाय के लिए घृणा या हिंसा का वाहक तो नहीं। यही सबसे बड़ा तरीका होगा जिससे कि हमारे धार्मिक ग्रन्थ संदेह के घेरे में नहीं आएँगे और हमारे सभी पक्षों के सन्त भी श्रद्धा से सुने जाएँगे । यहाँ एक बात उल्लेख किये बिना चर्चा अधूरी रह जाएगी। सनातन धर्म के जैसा लचीलापन और सर्व ग्राह्यता क्या इस्लाम में है ? यदि हमारे जैसे गैर मुस्लिमों के मन में ऐसी शंका है तो मुस्लिम ऐसे लचीले और सर्व ग्राह्य उदाहरण क्यों नहीं प्रस्तुत करते ? उल्टे हलाल खाने के मामले में गैर सनातनियों के ऊपर इस्लामी हलाल खाना होटलों में, हवाई जहाज़ों आदि जगहों पर परोसने को विवश किया जाता है । आजकल तो थूके हुए खाने  मुस्लिम होटलों में या मुस्लिम रसोइयों के द्वारा परोसे जाने का मामला खूब प्रचारित हो रहा है। एक तरफ तो यह हदीथ द्वारा मुस्लिमों का पवित्र हलाल भोजन इस प्रक्रिया को करके पूरा होता है, दूसरी तरफ हिन्दू इसे सख्ती से अस्वीकारते हैं। यदि इन सब मामलों में कोई सामंजस्य नहीं बनता तो क्या हिन्दुओं के और मुस्लिमों के होटल और फलों- सब्जियों के दुकान एकदम अलग हो जाएँगे। ये हमारी अर्थ व्यवस्था को ही नहीं हानि पहुँचाएगा बल्कि धार्मिक समभाव और समरसता के ऊपर भी बहुत बड़ा धक्का होगा। इन सब वजहों से समाज बंटता जा रहा है, जो दुःखद है।


मेरे कहने का यह अभिप्राय न लिया जाय कि सारे मुसलमान या ईसाई भेद-भाव पैदा करने वाले होते हैं । मुझे याद है मेरे एक मुस्लिम दोस्त ने मुझे उस समय कुरआन मजीद दी थी जब गैर मुस्लिमों के लिए कुछ दशक पहले कुरआन किसी दुकान में खरीदना एक असम्भव-सा काम होता था। उस दोस्त ने मुझे एक विशेष दुकान का कबाब  खाने  से रोक दिया था यह कहकर कि वो दुकान भरोसे का नहीं था और मैं बीफ नहीं खाने वाला सनातनी जो ठहरा । आज भी इस्लाम या हिन्दू धर्म पर हम दोनों खुलकर बात करते हैं और सन्देशों का खुलकर आदान-प्रदान करते हैं। कुछ मुस्लिम मित्र तो मुझे अक्सर दुर्गा, सरस्वती, शिव या गणेश आदि  देवी- देवताओं वाले फोटो के साथ सुप्रभात नमस्कार भेजते हैं ।


सनातनियों में अधिकाँश सहिष्णु हैं, गलत के विरुद्ध आवाज उठाते हैं, लिखते हैं, लेकिन क्या इस्लाम मानने वालों में ऐसा है ? नहीं। वहाँ उल्टी बातें हैं । इस्लाम में गलत के विरुद्ध आवाज नहीं निकलती, वो लिख नहीं सकते। डरते हैं सर कलम कर दिए जाने से, फतवे से। अधिकाँश सनातनी सर्व समावेशी हैं, सहिष्णु हैं, दूसरे के धर्म को सम्मान देते हैं, उनकी पूजा पद्धति का सम्मान करते हैं, अल्लाह, ईश्वर, गॉड को एक मानते हैं, महिलाओं को सम्मान देते हैं, समान अधिकार देते हैं । लेकिन  इसके ठीक उलट इस्लाम में ऐसा  नहीं, अधिकाँश उलट अवधारणाओं वाले हैं। सनातनी देश हित के मामले में संविधान को उच्चता देते हैं, लेकिन इस्लाम मानने वाले शरिया को उच्चता प्रदान करते हैं, अरब देशों की परम्पराओं को अपना आदर्श मानने लगते हैं, भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति को निकृष्ट दृष्टि से देखते हैं। 100 करोड़ से ज्यादे सनातनी अपनी हजारों लाखों वर्षों की सभ्यता और संस्कृति  का अपमान कैसे स्वीकार कर सकते हैं। इस्लाम में अधिसंख्य आबादी कठ मुल्लाओं की गिरफ्त में है, जो कुरान-शरीफ की व्याख्या में दूसरे धर्म के लोगों का ख्याल ही नहीं करते, मदरसों के द्वारा कुरआन की असंतुलित शिक्षा देते हैं, जबकि सनातनियों की धार्मिक किताबों में दूसरे धर्म के सिद्धान्तों के इतर कोई विद्वेष पूर्ण बात ही नहीं लिखी हुई है तथा यहाँ पंडित, संत या विद्वान् इस तरह का कोई अर्थ या भाव भी प्रचारित नहीं करते । 


सुकर्णो विदाई के समय नेहरु से पवित्र गंगा जल की मांग करते हैं और कहते हैं उन्होंने अपनी पूजा पद्धति बदली है अपने पूर्वजों को नहीं छोड़ा है। वाजपेयी जी भी इण्डोनेशियाई लोगों की इसी भावना का अपने भाषण में उल्लेख करते हैं जब उनके इण्डोनेशियाई समकक्ष वाजपेयी जी को इंडोनेशिया की रामलीला के मंचन के समय यही बात दुहराते हैं। इण्डोनेशियाई मुस्लिमों के अपने हिन्दू पूर्वजों के प्रति श्रद्धा हमें भारतीय सनातनियों को ओत-प्रोत कर देते हैं। इण्डोनेशियाई एयरलाइंस का नाम गरुड़ होना, वहाँ के रुपये पर गणेश की छवि होना इस्लामी  इंडोनेशिया हमें बहुत कुछ सिखाता है।  क्या हमारे यहाँ के मुस्लिम के लिए ये आचरण आदर्श बन सकते हैं ? 


हमारा मानना है कि सनातनी या हिन्दू धर्म के मानने वाले जहाँ भी दूसरे धर्म वालों पर हिंसा या अत्याचार में पाए गये हैं वह उनकी प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई होती है जो गन्दी राजनीति से प्रेरित और विद्वेषपूर्ण और असामाजिक तत्वों के द्वारा की गयी होती  है, यह इस्लामी कट्टरवाद की प्रतिक्रया में एक नयी अवधारणा की तरह पैदा हो रही है, और परिणाम स्वरूप कहीं-कहीं लिंचिंग की घटनाएँ भी प्रकाश में आयी हैं, जिसकी हिन्दुओं के द्वारा घोर निन्दा की जानी चाहिये और की भी जाती है। सनातनी धर्म ग्रंथों या संतों का इसमें हाथ नहीं होता है । हाँ, कुछ फर्जी भगवा धारी इसके अपवाद हो सकते हैं, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या बहुत-बहुत ही कम है। यहाँ अपने मित्र के साथ मेरठ में घटी सच्ची घटना का जिक्र किये बिना नहीं रह सकता । मेरा एक मुस्लिम सहयोगी किन्तु मित्र कई सप्ताह तक हिन्दू बाहुल्य इलाके में भाड़े का घर नहीं ढूंढ़ पाया क्योंकि इसके मुस्लिम होने से इन्हें कोई अपना भाड़ेदार बनाना ही नहीं चाहता था। अपने बच्चे की अच्छे स्कूल में पढ़ाई के लिए इसे पास के आवासीय इलाके में घर तो चाहिये ही था और ये पास का इलाका हिन्दू इलाका था, जहाँ लोग मुस्लिमों को घर नहीं देते थे। कमोवेश पूरे भारत वर्ष में ऐसी ही स्थिति है। हिन्दू मुस्लिम इलाके में नहीं रहेंगे और मुस्लिम हिन्दू इलाके में नहीं रहेंगे और यदि ये दूसरे के इलाके में रहना भी चाहेंगे तो लोग उन्हें घर देंगे नहीं।

 हिन्दुओं के प्रतिक्रियावाद मुस्लिमों के कट्टरवाद के विरोध में तेज़ी से पनप रहे हैं। कारण कुछ उदाहरण से समझना होगा। मुस्लिम लड़के हिन्दू लड़की से शादी करें तो हिन्दू लड़की अधिकांश मामले में मुस्लिम बनने के लिए विवश कर दी जाती है। कई-कई बार तो मुस्लिम लड़की हिन्दू लड़के को भी मुस्लिम बना देती है शादी के लिए। बहुत सारे मामले आ रहे हैं जबकि मुस्लिम लड़की हिन्दू लड़के से शादी के लिए उनके परिवार वालों के विरोध में रुक जाती है या हिन्दू लड़के हिंसा का शिकार होते हैं। हिन्दू लड़कियों के परिवार वाले अपनी बेटियों का मुस्लिम धर्म स्वीकारने की बात को भी ज्यादे आसानी से स्वीकार कर लेते हैं। हिन्दू ज्यादे हिंसा पर उतारू नहीं होते। लेकिन समय बीतने पर मुस्लिमों के हिंसा की प्रतिक्रिया में हिन्दू भी प्रतिक्रियावादी होते जा रहे हैं। मुस्लिम हिन्दू मन्दिर या सिखों के गुरुद्वारे में नमाज पढ़ते पाए गए हैं, हिंदुओं तथा सिखों से उनमें उन्हें सद्भावपूर्ण सहायता भी मिलती रही है। इसके विपरीत मुस्लिम मस्जिद में  हिन्दू भजन कीर्तन के लिए कभी भी तैयार नहीं होते । ईद, बकरीद में हिन्दू मुस्लिमों के सेवइयां, कुर्बानी के बकरे के मांस को स्वीकार लेते हैं, लेकिन इसके विपरीत हिंदुओं के भगवान के पूजा प्रसाद मुस्लिमों को स्वीकार्य नहीं होते, गुरुद्वारे में मुस्लिम लंगर में नहीं खाते। हिन्दू हलाल मांस खाते पाए गए हैं जबकि हिंदुओं के घर मुस्लिम झटका माँस नहीं स्वीकारते। मुस्लिमों का दीन उन्हें ऐसा करने से रोकता है, यह उनका तर्क होता है। मुस्लिमों की कट्टरता से हिंदुओं की सहिष्णु, समझौतापरक, अनुग्राही, सरल और उदारवादी सोच धक्का खाती है और विरोध का स्वतः स्फूर्त स्वर फूट पड़ता है। मुस्लिमों के द्वारा सड़कों पर, स्टेशन, प्लेटफार्म, पार्कों पर नमाज पढ़ना सर्व साधारण हिन्दू को परेशान करता है, हिन्दू भी प्रतिक्रिया में सड़कों और पार्कों पर भजन कीर्त्तन करने लगे हैं, जो पहले ये कभी भी करते नहीं देखे गये। सबेरे-सबेरे अजान की ध्वनि जो कर्ण प्रिय लगती थी अब कटु लगने लगी है और हिन्दुओं का विरोध स्वर कई शहरों में उठने लगा है।


 तुष्टीकरण की राजनीति ने वोट पॉलिटिक्स को बढ़ावा देकर भारतीय समाज को बहुत ही घायल किया है। सेकुलरिज्म की विकृत परिभाषा से भी समाज को काफी हानि पहुँचती है। हम सब भारतीयों का एक ही डीएनए है याने हमारे पूर्वज एक ही थे, इस बात में बहुत ही दम  मालूम पड़ता है। यह  सभी  समुदायों में एकता के लिए बहुत ही अकाट्य  तर्क है। इसको यदि सभी समझने लग जाएँ तो फिर झगड़ा बहुत ही कम हो जाय क्योंकि कोई फिर क्यों अपने पूर्वजों को गाली दे। कुछ मुस्लिम तो सिर्फ तीन चार पाँच पीढ़ी पहले ही मुस्लिम में कन्वर्ट हुए हैं, क्या वो अपने दादा- परदादा या नाना-परनाना या दादी-परदादी या नानी- परनानी को गाली देंगे ?  बिलकुल नहीं। इस तर्क से फिर वो आततायी औरंगजेब या बाबर या खिलजी या लूटेरे तैमुर इत्यादि का कभी भी महिमा-मंडन नहीं करेंगे जिन्होंने भारतीय सनातन समाज को बेहद प्रताड़ित किया। यह नफरत की दीवार को कम करेगी। इतिहास लिखने वालों ने भी बहुत बड़ा नट  खेल किया है, विकृत इतिहास को परोसकर भारतीय समाज का बहुत बड़ा अपकार किया है। ये वामपंथियों की या अंग्रेजी मानसिकता वालों की कारगुजारी हो सकती है। इतिहास को ठीक करने का काम इसलिए सावधानी से करना होगा क्योंकि आज तक जो इस्लामिक इतिहास पढ़ते आ रहे थे उसे बदलना, लोगों की स्मृति से हँटाकर कुछ दूसरा परोसना लोगों की स्वीकृति की सीमा की परीक्षा होगी, जो एक महती दुष्कर काम होगा और भारतीयों की सोच को बदलने में कई दशक लग जाएँगे ।

 हमें ऐसे परिवर्त्तन का इन्तजार रहेगा ।


अमर नाथ ठाकुर ,१० अक्तूबर ,२०२१, कोलकाता ।

Thursday, 30 September 2021

बहिरागत

 साल्ट लेक के महिष बथान में तो दो साल पहले ही आ गया था रहने के लिए , लेकिन मतदाता पहचान पत्र अभी भी अलीपुर के पते का ही है. बड़े झमेले हैं नया बनवाने में , बहुत दौड़ाते हैं . आज तो  भवानीपुर उपचुनाव के लिये वोट डाल आता हूँ . आराम से फिर नया कार्ड बनवाएँगे . 

दस  बजे न्यू रोड ,अलीपुर पहुँच गये . मतदाताओं की सहायता के लिये मतदान केन्द्र के आस-पास भी छोटे-छोटे बूथ बने होते हैं , जो वास्तव में हेल्प डेस्क होते हैं , जहाँ विभिन्न पार्टी वाले अपने समर्थक मतदाताओं को वोटर लिस्ट में नाम की क्रम संख्या बूथ संख्या के साथ बता देते हैं , इससे पोलिंग बूथ पर वोटर लिस्ट में नाम  ढूंढ़ने में कोई दिक्कत नहीं होती है . पिछले पन्द्रह सालों से हमारा बूथ अलीपुर के  इलाहाबाद बैंक ट्रेनिंग  स्कूल प्रांगण में ही होता आया है . इस प्रांगण में चार बूथ होते हैं अतः अपना बूथ नम्बर पता करके जाना ही होता है , नहीं तो पुलिस  के जवान अन्दर नहीं जाने देते हैं . हमलोग वर्धमान रोड में इस एकमात्र पार्टी बूथ पर पहले गये . वहाँ कुछ वोटर मतदाता सूची में  अपना नाम फोटो देखकर दूंढ़ रहे थे और पार्टी के लोग उन्हें उनका नाम , बूथ नंबर और मतदाता क्रम संख्या लिख कर एक प्रिंटेड पुर्जे पर दे रहे थे . इस पुर्जे पर दीदी ममता बनर्जी का फोटो छपा हुआ था . धूप छाते के बगल में एक बड़ा-सा कट आउट दीदी का लगा हुआ था , इसलिये कहने की जरा भी आवश्यकता नहीं कि ये टीएमसी का बूथ था . जैसे ही एक दो लोगों की भीड़ छंटी, हमलोग भी उनके टेबुल के एकदम नजदीक पहुँच गये , अपना -अपना नाम और पता बताया और रिक्वेस्ट किया कि हमलोगों का बूथ नम्बर और मतदाता क्रमांक बता दें . हमारे नाम के सरनेम , बँगला बोलने के लहजे से उन्होंने जरुर कुछ अनुमान लगा लिया और तुरन्त ही बता दिया कि इलाहाबाद बैंक  वाले बूथ पर इस बार न्यू रोड वाले का पोलिंग बूथ नहीं है , यह इस बार यहाँ से दूर वाले जज कोर्ट से  थोड़ी दूरी पर अवस्थित बूथ पर होगा , इसलिए उनके पास उपलब्ध लिस्ट में हमलोगों का नाम नहीं है . उन लोगों ने कहा इस बार मतदाता सूची में खूब काट-छाँट और फेर- बदल हुआ है और बूथ नम्बर में भी खूब बदलाव हुआ है , इधर से उधर खूब किया गया है . 

हमलोगों को भरोसा करना था क्योंकि हमलोग अपना पहचान पत्र लेकर चल पड़े थे वोट गिराने इन्हीं लोगों के भरोसे कि ये लोग हमें सारी जानकारी दे देंगे . अपने मतदाताओं की सहायता के लिये और उससे अपनी पार्टी के पक्ष में वोट की आशा में विभिन्न पार्टी वाले पोलिंग बूथ के आस-पास इस तरह का हेल्प डेस्क जरुर लगाते हैं . वारिश के बाद वाली धूप बड़ी तेज मालूम पड़ रही थी और पसीने की बूँदें ललाट पर छलकने लग पड़ी थी . मेरे लड़के ने कहा छोड़ो , अब इतनी दूर पैदल कौन जाय , लौट चलें वोट बिना गिराये हुये. मेरा मन नहीं मान रहा था . हम २०-२१ किलोमीटर दूर से गये थे , अतः ये श्रम हम जाया नहीं जाने देना चाह रहे थे . हम ने कहा मुश्किल से एक किलोमीटर दूर भी नहीं होगा हमलोग पैदल चलेंगे और रवाना हो गये  अगले बूथ की खोज में . कुछ ही कदम चलने के बाद हमलोगों ने सोचा कि बूथ की जानकारी तो आजकल ऑनलाइन भी उपलब्ध होती है इसलिये इलेक्शन कमीशन के वेबसाइट पर क्यों न चेक कर लें. स्मार्ट मोबाइल साथ में था . हम दोनों ने गूगल पर सर्च शुरू किया . गूगल से इलेक्शन कमीशन के साईट पर पहुँच मेरे लड़के ने अपना नाम , बूथ नम्बर और मतदाता क्रमांक पता सहित ढूँढ लिया , फिर मेरा भी ढूँढ़ लिया . बूथ नम्बर में इस बार भी कोई परिवर्त्तन नहीं हुआ था . यह बिलकुल वही था जो अप्रैल महीने के चुनाव के वक्त था . हमलोग गये इलाहाबाद बैंक ट्रेनिंग स्कूल के प्रांगण से , जहाँ कोई भी भीड़ नहीं थी , कोई भी क्यू नहीं, कुछ ही मिनटों में अपना मतदान करके आ गये . 

न्यू रोड जाने के रास्ते में वर्धमान रोड से उसी पार्टी के बूथ के पास से पुनः गुजर रहे थे . वहाँ पार्टी के वही दो भद्र जन बैठे थे . उन्होंने हम दोनों को देख कर भी नहीं देखने का बहाना किया , लेकिन हम लगातार उनकी आँखों में देखते रहे , और अन्ततः हमने उनसे अपनी नजर मिला ही ली . हमने बायें हाथ की तर्जनी उनकी तरफ बढ़ा दी . नाखून पर  काली इंक देखकर उन्होंने कहा, " भोट गेरा दिया ." 

हमने कहा , "दादा , हम दोनों ने भोट गेरा दिया ."  कुछ रूककर हमने कहा , "बूथ तो वही है , कोई चेंज नहीं हुआ है . आप लोगों ने हमें गलत क्यों बताया ?" 

पार्टी के बूथ पर कुर्सी की दोनों बाजुओं के बीच  रंग बिरंगे धूप छाते के नीचे ममता दीदी के बड़े कट आउट  की साया में बैठे निर्लज्ज दोनों भद्र लोक सर हिलाते हुए बिना किसी अचरज के अपनी पैनी नजर से हमें देखते रहे . वो कुछ नहीं बोले . हमने कहा , "दादा भाई आम्रा बुझे ग्याछि , आपनारा ठीक ही बुझे छेन, आम्रा बहिरागत ." (दादा भाई , हमलोग आपको समझ गये , आप दोनों ने हमदोनों के लिए ठीक ही अनुमान किया था, हमलोग सही में बहिरागत हैं .)

भवानीपुर विधान सभा उपचुनाव के लिये टीएमसी की मुख्य प्रतिद्वंद्वी बीजेपी की प्रियंका टिबरेवाल है, जो गैर बंगाली महिला है , और इस चुनाव क्षेत्र में बहुत बड़ी संख्या गैर बंगाली मतदाताओं की भी है. दशकों से बंगाल में रह रहे ये सब एक झटके में बहिरागत की श्रेणी में चुनाव के समय में आ जाते हैं.


अमर नाथ ठाकुर , ३० सितम्बर , २०२१ , कोलकाता .

Wednesday, 22 September 2021

आप लोग हिन्दू हैं , सो सैड

 लखनऊ से स्थानान्तरण उपरान्त कोलकाता ज्वाइन किया था और कोलकाता के सबसे सम्भ्रान्त इलाके में एक बहुमंजिली इमारत में सरकारी आवास मिला था . सारे सामान के साथ हमलोग आ गये थे . उस बहुमंजिली इमारत में निवास करने वाली फैमिली घर आ - आकर हर  तरह के सहयोग का आश्वासन देकर आने - जाने लगी थी , कोई चाय बिस्कुट कोई पानी भी लेकर आती थी . हमारे घर में  सामानों के पैकेट्स खोले जा रहे थे और सजाये जा रहे थे . ड्राइंग रूम में लखनऊ से उपहार में मिले धातु के गणेश की चपटी प्रतिमा को सबसे पहले मेरी पत्नी ने दीवाल में लटका दिया था . अभी दो - तीन दिन ही हुए थे कि एक दिन की बात है घर का मुख्य दरवाजा खुला था . हमारे ही फ्लोर पर सामने रहने वाली फैमिली की एक 5-6 वर्ष की चुलबुली- सी गुड़िया-सी बच्ची हमारे घर में उछल - कूद करते हुए आ जाती है और ड्राइंग रूम में लटकाए गये गणेश जी की मूर्ति के सामने खड़ी हो जाती है . गौर से देखने के बाद  पूछती है , "आंटी , आपलोग हिन्दू हैं ? " . मेरी पत्नी ने कहा , "हाँ , बेटे ". और यकायक उस बच्ची के मुख से निकला , "सो सैड !" ( so sad ) और  फिर कुछ ही देर के बाद उछलती - कूदती हुई अपने घर में वापस चली गयी . हमारे घर में सब के सब दंग रह गये . इतनी छोटी बच्ची भी हिन्दू - मुस्लिम समझती है , जबकि यह अंग्रेजी स्कूल में पढ़ती थी . अनायास मेरे मुख से निकल आया "प्रथमे ग्रासे मक्षिका पातः" , कैसे बनेगी अली साहेब की फैमिली से , क्योंकि उसी इमारत के एक ही फ्लोर पर बिलकुल आमने - सामने हमलोग थे . शंका ने जड़ जमा ली . 

 हमारी शंका निर्मूल निकली . अली साहब की फैमिली और हमारी फैमिली वर्षों तक उसी इमारत में एक ही फ्लोर पर आमने - सामने साथ - साथ जो रही . बहुत ही मेल - जोल से हमलोग रहे . कुछ ही सप्ताहों में हमलोगों की फैमिली आपस में बहुत ही घुल - मिल गयी थी . हमलोग कुरआन मजीद के बारे में , मुसलमानी परम्परा के बारे में  , उनके पर्व त्योहारों के बारे में थोड़ा-थोड़ा जानने लग गये थे . उनकी रमजान  में कॉलोनी की बहुत सी हिन्दू फैमिली उनके लिये इफ्तार रखती थी , हमारी फैमिली भी रखती थी . उनकी ईद बकरीद में हमलोग भी निमन्त्रित होते थे . दीवाली और होली साथ मनाते थे. उनकी बच्चियाँ भी दीवाली में पटाखे उड़ाती थीं  , होली में रंग और गुलाल से खेलती थी . हमारी कॉलोनी में सरस्वती पूजा भी मनायी जाती थी , प्रसाद रूप में बंगाली खिचड़ी साथ मिलकर खाते थे . रक्षा बंधन में अली साहब की बच्चियाँ हमारे बेटों को राखी बाँधती थी और टीके लगाती थी . परिवार के बीच  अक्सर सब्जियों का और विशेष भोजन का आदान - प्रदान होता ही रहता था . मिठाइयों - पकवानों के उपहार जब बाहर से मिलते थे , आपस में बाँटे जाते थे . चाय साथ - साथ पीने की कोई गिनती नहीं . दोनों फैमिली साथ - साथ एक ही गाड़ी  में बाजार भी खरीद-बिक्री करने जाती थी . कभी भी फिर किसी हिन्दू - मुस्लिम की भेद वाली बात बीच में नहीं आयी . निःसंदेह बड़े ही खुले विचारों वाली यह मुस्लिम फैमिली थी . "क्या आप लोग हिन्दू हैं" , "सो सैड " की गाँठ कब की खुल कर सीधी हो गयी थी पता ही नहीं चली  . 

बाद में एक दुर्घटना घटी . उस मुस्लिम ऑफिसर अली ने आत्म ह्त्या कर ली और इस परिवार पर संकट के बादल आ गये . तब अली भाभी जी के माता- पिता अपना बसा - बसाया बिजनेस छोड़-छाड़ कर अपनी बेटी को सपोर्ट करने बिहार से कोलकाता आ गये . फिर, कुछ वर्षों बाद यह मुस्लिम फैमिली एक मुस्लिम इलाके में घर खरीद कर शिफ्ट हो गयी थी , लेकिन हमलोगों के फैमिली के बीच आना - जाना लगा रहा . हमलोग ईद बकरीद में उनके यहाँ जाते रहे , वो लोग भी हमलोगों के यहाँ कभी - कभार  आते रहे . लेकिन वो हमारे यहाँ होली - दीवाली में अब नहीं आते थे , लेकिन यह बात हमलोगों ने इतनी सीरियसली नहीं ली . शायद सरस्वती पूजा और रक्षा बन्धन भी उनकी फैमिली और उनके बच्चे अब न मनाते हों . हाँ , इन पर्वों के बाद कभी - कभार लेट लतीफी शुभकामना सन्देश उनकी फैमिली की तरफ से आ जाया करता था .

आगे कुछ वर्षों के बाद की बात है, मेरे बेटे की शादी थी . अली परिवार को भी निमन्त्रण का कार्ड सपत्नीक देकर आया था . बेटे की शादी में अली परिवार  का भी पधारना हुआ . हमलोग बड़े खुश हुए . हमलोग घूम - घूम कर अतिथियों का स्वागत कर रहे थे . हमलोगों ने खाने -पीने के आइटमों के बीच मटन का भी इन्तजाम किया हुआ था . सारे अतिथि गण खा रहे थे . हमने देखा अली भाभी की अम्मी और  पिताजी  मेरे बिलकुल पास आ गये हैं , उन्होंने  दर्जनों मेहमानों के बीच में एक प्रश्न पूछ लिया , "क्या ये मटन हलाल है ?"  पास खड़े और खा रहे अतिथि गण अवाक् हो गये .  भरी पार्टी में मैं क्या अनाप - शनाप बोलता . हमने कहा, "आंटी अंकल , मालूम नहीं , किन्तु यहाँ तो अधिकाँश कसाई मुस्लिम ही होते हैं उन्होंने शायद इस बात का ख्याल रखा हो ."  लेकिन  हमें बहुत अफ़सोस हुआ कि अंकल की फैमिली ने हलाल की चर्चा करने के बाद मटन के बिना ही भोजन किया . सामग्रियाँ बहुत थीं अतः हमें सन्तोष था कि उन्होंने सपरिवार पर्याप्त भोजन किया होगा . मुझे आज इस घटना पर हार्दिक दुःख हो रहा था क्योंकि पिछले कई सालों  से ईद और बकरीद में हमने सपरिवार उनके घर में बिना हलाल और झटका के बारे में जिज्ञाषा किये मटन और कबाब का आस्वादन किया हुआ था . खैर , यह अत्यंत ही निजी धार्मिक मामला बनता था , अतः हमने इस बात पर फिर से ज्यादे चिंतन - मनन नहीं किया . लेकिन मेरा धर्म मेरे से विमुख होता दीख पड़ा . इस वाकये से मेरे सनातनी होने का आधार ही हिल गया . हम सोचने लग गये ..... क्या जब हम एक ही कॉलोनी में साथ रह रहे थे उस समय की उनकी उदारता क्या ढकोसला थी ?..... अथवा मुस्लिम मोहल्ले में फिर रहने की वजह से वो बदल गये थे ......

 "क्या आप लोग हिन्दू हैं" , "सो सैड " वाली गाँठ जो कब कि सीधी हो गयी खुल गयी-सी थी , एक बार फिर से बन्ध-सी गयी थी .


अमर नाथ ठाकुर , 22 सितंबर , 2021, कोलकाता .

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...