ये दल इकतारा , गिटार , फिर सितार के तार
सब की एक-सी तान सब-के-सब
तार-तार ।
ढोल की ढाल –सी
बांसुरी के बेसुरी राग- सी
इन दलों के वादे हैं
सबके दावे हैं
सब- के- सब खोखले हैं
सब ढकोसले हैं ।
कोई शालीन बगुले –सी पेश करता
है प्रतिमूर्त्तियाँ
कोई बाज़-बहादुर की चालाकियों की
झलकियाँ
शासन-जल-तंत्र के सब शिकारी हैं
सब-के-सब खाते हैं मछलियाँ ।
जो सांप्रदायिकता पर वोट मांगते
जो आरोपियों को टिकट बांटते
जो जुल्मियों से हाथ मिलाते
जो जाति-भाषा-प्रांत का विष फैलाते
जो सिर्फ घाव –पीव करे
उनसे क्या उम्मीद करें ।
नक्सली आक्रमण बढ़ेंगे ,
फसादों की होगी भरमार
कहीं बम फटेंगे
कहीं होगी तकरार ।
तेल बहता ही रहेगा
गैस रिसता ही रहेगा
काले –धन पर नहीं होगा विचार
रेल-फोन-कोयले का जारी रहेगा बंटाधार
।
चलता रहा यूपीए का भ्रष्टाचार
चलता रहेगा एनडीए का भी व्यापार
।
कभी ममता मूल्य मांगेगी , कभी जयललिता
करेगी साभार
मुलायम कठोर ही रहेंगे , माया का हाथी
करेगा चिङ्ग्घाड़ ।
यदि बनेगी मिली-जुली अधमरी सरकार
तो कहाँ रहेगी समरसता , कहाँ होगा प्यार
।
अमरनाथ ठाकुर , 7 अप्रैल , 2014 , कोलकाता ।
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