Tuesday, 8 April 2014

निराशा के चुनाव




ये दल इकतारा , गिटार , फिर सितार के तार
सब की एक-सी तान सब-के-सब तार-तार ।

ढोल की ढाल –सी
बांसुरी के बेसुरी राग- सी
इन दलों के वादे हैं
सबके दावे हैं
सब- के- सब खोखले हैं
सब ढकोसले हैं ।

कोई शालीन बगुले –सी पेश करता है प्रतिमूर्त्तियाँ
कोई बाज़-बहादुर की चालाकियों की झलकियाँ
शासन-जल-तंत्र के सब शिकारी हैं
सब-के-सब खाते हैं मछलियाँ ।

जो सांप्रदायिकता पर वोट मांगते
जो आरोपियों को टिकट बांटते
जो जुल्मियों से हाथ मिलाते
जो जाति-भाषा-प्रांत का विष फैलाते
जो सिर्फ घाव –पीव करे
उनसे क्या उम्मीद करें ।

नक्सली आक्रमण बढ़ेंगे ,
फसादों की होगी भरमार
कहीं बम फटेंगे
कहीं होगी तकरार ।

तेल बहता ही रहेगा
गैस रिसता ही रहेगा
काले –धन पर नहीं होगा विचार
रेल-फोन-कोयले का जारी रहेगा बंटाधार । 

चलता रहा यूपीए का भ्रष्टाचार
चलता रहेगा एनडीए का भी व्यापार ।

कभी ममता मूल्य मांगेगी , कभी जयललिता करेगी साभार
मुलायम कठोर ही रहेंगे , माया का हाथी करेगा चिङ्ग्घाड़ ।
यदि बनेगी मिली-जुली अधमरी सरकार
तो कहाँ रहेगी समरसता , कहाँ होगा प्यार ।



अमरनाथ ठाकुर , 7 अप्रैल , 2014 , कोलकाता । 

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