कभी कालिमामयी
कभी रक्त-रंजित-सा हुआ पंजा
कीचड़ में लथपथ विद्रूप कमल ।
धुआँ छोड़ता फूटे शीशे वाला
लालटेन
घूमी हैंडिल वाली पंकचर हुई साइकल
।
संगमरमरी पत्थर के बोझ से लदा
हाथी पागल ।
निशाने से बेखबर तीर
जनता का सिर फोड़ता हथौड़ा
जेब काटता फसल लूटता हँसुआ
सूख-सूख कर कृषकाय हुआ- सा तृण
दल ।
अस्थि –पंजर लंगोट धारी के कंधे
पर लटका एक हल ।
कचड़े के अंबार में बेतरतीब फंसा झाड़ू का कौशल ।
हमारी पार्टियाँ अपनी चुनाव चिह्नों के अनुरूप ,
चुनावी दंगल में उड़ा रही पार्टियाँ वोटरों को चूस-चूस ।
कचड़े के अंबार में बेतरतीब फंसा झाड़ू का कौशल ।
हमारी पार्टियाँ अपनी चुनाव चिह्नों के अनुरूप ,
चुनावी दंगल में उड़ा रही पार्टियाँ वोटरों को चूस-चूस ।
अमर नाथ ठाकुर , 10 अप्रैल, 2014 , कोलकाता ।
Bhai kya abhivyakti hai lekhni mein..Shabaash Masal Jalti Rahni Chahiye
ReplyDeleteधन्यवाद , नलिन भाई ! आप हौसला बढ़ाते रहें और हम कुछ - कुछ लिखते रहेंगे ।
Deleteसटीक कटाक्ष ! मगर यही राजीनीति की गुणधर्म बन गयी है!
ReplyDeleteनरेन्द्र जी , धन्यवाद कमेन्ट के लिए !
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