गणित बदलते ,
भूगोल बदलते देखा है हमने ।
ईमान बदलते देखा है हमने ।
धर्म बदलते ,
कर्म बदलते देखा है हमने ।
मर्म समझते देखा है हमने ।
झूठ-सच करते ,
काले-सफ़ेद करते देखा है हमने
।
अर्थ का अनर्थ लगाते देखा है
हमने ।
दोस्त को दुश्मन बनते ,
देव को दानव बनते देखा है
हमने ।
(साधु को शैतान बनते देखा है हमने।)
(साधु को शैतान बनते देखा है हमने।)
पशु को मानव बनते देखा है
हमने ।
कुत्ते की वफादारी ,
बिल्ली की होशियारी देखी है
हमने ।
शिशु की समझदारी देखी है हमने
।
दिन में चाँद – सितारे ,
रातों को सूरज चमकते देखा है किसी
ने ?
प्रकृति को अप्राकृतिक होते सुना
है किसी ने ?
लेकिन झेलम-तवी को तो उफनते देखा
है सबने ।
फिर वहाँ प्रकृति को लूट मचाते देखा है सबने ।
वो भारत का मुकुट है ,
जहाँ कराहती मानवता को देखा है सबने ।
अबकी जहाँ आत्मा को भी विलखते
देखा है सबने ।
हृदय विदीर्ण हुआ जाता ,
क्या-क्या वहाँ नहीं देखा हमने ।
अमर नाथ ठाकुर , 9 सितंबर , 2014 , कोलकाता ।
Nice
ReplyDeleteधन्यवाद , नलिन भाई !
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