-1-
अभेद्य सुरक्षा –
कवच प्रदान कर
अपनी रक्त-मज्जा–हवा से पोषित
कर
मुझे पैदा किया माँ तुमने असह्य
पीड़ा झेलकर ।
फिर बड़ा किया स्तनों का दूध
पिलाकर ।
कभी वक्ष से चिपका कर
कभी पीठ पर लाद कर
कभी बाँहों में झुलाकर
माँ तुमने मुझे दुलराया ।
मेरी रूलाई में रोकर
मेरी किलकारी में मुस्कुराकर
मेरी उँगलियाँ थामकर
ता ता थैया ता ता थैया गाकर
मुझे चलना सिखाया ।
मुझे समझा नाक के बाल
अपने दिल का टुकड़ा
और अपनी आँखों का तारा ।
सारे जहां से भी न्यारा ।
सत्य और ईमानदारी का पाठ
सिखाया ,
चोरी और ठगी को कोसों दूर
भगाया ।
अपनी त्याग और सहनशीलता से
सराबोर हो ,
कर्त्तव्य निष्ठा और ममता में
भाव विभोर हो ,
ऊबड़ – खाबड़ कंकरीले पथ का
चलैया
मधुर संगीत का तान छोड़ने वाला
गवैया
बना दिया जीवन-जल-तरंग में
तैरने वाला खेवैया ।
और बन गया प्रेम-पथ पर रास
रचाने वाला तुम्हारा कन्हैया ।
-2-
माँ कल जब तुम यहाँ नहीं
होओगी ,
माँ मेरी यादों में तुम तब भी
होओगी ।
मैं याद करूंगा तुम्हारी आँचल की छाया ,
तुम्हारी पुचकार और तुम्हारी
करूणा का साया ।
तुम मेरे दिल में जैसे बसती
हो अनवरत बसी रहोगी
तुम्हारी ममता मेरे अश्रु-कण
में अजस्र बहती रहेगी ।
मेरा मस्तक तेरी चरण-धूलि और आशीर्वाद का सदा आकांक्षी रहेगा ,
और तब भी मेरा पथ तुम्हारे
चंद्र-सूर्य-सदृश आभा से सदा आलोकित रहेगा ।
अमर नाथ ठाकुर , 7 सितंबर , 2014 , कोलकाता ।
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