Monday, 8 September 2014

माँ तुम्हें प्रणाम



               -1- 
             
अभेद्य सुरक्षा – कवच प्रदान कर   
अपनी रक्त-मज्जा–हवा से पोषित कर  
मुझे पैदा किया माँ तुमने असह्य पीड़ा झेलकर ।
फिर बड़ा किया स्तनों का दूध पिलाकर ।
कभी वक्ष से चिपका कर
कभी पीठ पर लाद कर
कभी बाँहों में झुलाकर
माँ तुमने मुझे दुलराया ।
मेरी  रूलाई में रोकर
मेरी किलकारी में मुस्कुराकर
मेरी उँगलियाँ थामकर
ता ता थैया ता ता थैया गाकर  
मुझे चलना सिखाया ।
मुझे समझा नाक के बाल
अपने दिल का टुकड़ा
और अपनी आँखों का तारा ।
सारे जहां से भी न्यारा ।
सत्य और ईमानदारी का पाठ सिखाया ,
चोरी और ठगी को  कोसों दूर भगाया ।
अपनी त्याग और सहनशीलता से सराबोर हो ,
कर्त्तव्य निष्ठा और ममता में भाव विभोर हो ,    
ऊबड़ – खाबड़ कंकरीले पथ का चलैया
मधुर संगीत का तान छोड़ने वाला गवैया
बना दिया जीवन-जल-तरंग में तैरने वाला खेवैया ।
और बन गया प्रेम-पथ पर रास रचाने वाला तुम्हारा कन्हैया ।



              -2-


माँ कल जब तुम यहाँ नहीं होओगी ,
माँ मेरी यादों में तुम तब भी होओगी ।
मैं याद करूंगा तुम्हारी  आँचल की छाया ,
तुम्हारी पुचकार और तुम्हारी करूणा का साया ।
तुम मेरे दिल में जैसे बसती हो अनवरत बसी रहोगी
तुम्हारी ममता मेरे अश्रु-कण में अजस्र बहती रहेगी ।
मेरा मस्तक तेरी  चरण-धूलि और आशीर्वाद का सदा आकांक्षी रहेगा ,
और तब भी मेरा पथ तुम्हारे चंद्र-सूर्य-सदृश आभा से सदा आलोकित रहेगा ।



अमर नाथ ठाकुर , 7 सितंबर , 2014 , कोलकाता ।     

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