बिना सोचे ये क्या किया ?
क्या सोचा और क्या कर डाला
?
जो नहीं सोचना था वह भी
सोचा
लेकिन जो सोचना था वह नहीं
सोचा ।
क्षण-क्षण बदलती सोच ,
लेकिन वही भेद-भाव-पूर्ण सोच
।
वही घिसी-पिटी , दकियानूसी
सोच
विवेकहीन और लूट-मार वाली
सोच
झूठी सोच , स्वार्थ-पूर्ण सोच
लक्ष्य से विमुख करनेवाली , डूबने-डूबाने
वाली सोच ।
चरित्र में ओत-प्रोत सोच
सोच से ओत-प्रोत चरित्र
जैसी सोच वैसा चरित्र ।
असंतुलित सोच से ही अनियंत्रित व्यवहार ।
चरमराती व्यवस्था और बिगड़ता संसार ।
हर वक्त ये सोच फिसलती है !
ये सोच क्यों नहीं सुधरती
है ?
निःस्वार्थ सोच , स्वस्थ
सोच
सबको साथ ले चलने वाली सोच
निर्मल और सार्थक सोच
ईमानदार सोच से करना होगा
ओत-प्रोत ।
मन को व्यवस्थित कर ईश्वर
को समर्पित
वचन और कर्म से भी होना होगा अनुशासित ।
हमारी सोच से हमारा चरित्र
आपकी सोच से आपका चरित्र ।
फिर होनी है राष्ट्र की सोच पवित्र ,
और तब बनेगा राष्ट्र का मन-भावन चित्र ।
अमर नाथ ठाकुर , 09 जनवरी , 2015 , कोलकाता ।
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