Monday, 20 April 2015

हमारी सोच कैसी सोच




बिना सोचे ये क्या किया ?
क्या सोचा और क्या कर डाला ?
जो नहीं सोचना था वह भी सोचा
लेकिन जो सोचना था वह नहीं सोचा ।

क्षण-क्षण बदलती सोच ,
लेकिन वही भेद-भाव-पूर्ण सोच ।  
वही घिसी-पिटी , दकियानूसी सोच  
विवेकहीन और लूट-मार वाली सोच
झूठी सोच , स्वार्थ-पूर्ण सोच
लक्ष्य से विमुख करनेवाली , डूबने-डूबाने वाली सोच ।
चरित्र में ओत-प्रोत सोच
सोच से ओत-प्रोत चरित्र
जैसी सोच वैसा चरित्र ।
असंतुलित सोच से ही अनियंत्रित व्यवहार ।
चरमराती व्यवस्था और बिगड़ता संसार ।

हर वक्त ये सोच फिसलती है !
ये सोच क्यों नहीं सुधरती है ?
निःस्वार्थ सोच , स्वस्थ सोच 
सबको साथ ले चलने वाली सोच 
निर्मल और  सार्थक सोच 
ईमानदार सोच से करना होगा ओत-प्रोत ।
मन को व्यवस्थित कर ईश्वर को समर्पित
वचन और कर्म से भी होना होगा अनुशासित ।  
हमारी सोच से हमारा चरित्र
आपकी सोच से आपका चरित्र ।  
फिर होनी है राष्ट्र की सोच पवित्र ,
और तब बनेगा राष्ट्र का मन-भावन चित्र ।  


अमर नाथ ठाकुर , 09 जनवरी  , 2015  , कोलकाता । 

No comments:

Post a Comment

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...