Sunday, 25 December 2016

मज़ा आएगा नये साल में



देश में सर्दी है , शीत लहरी है ।
सब काँपते हैं ,  थरथराते हैं ।
चलो मौसम की इस मार से टकराते हैं ।
मज़ा आएगा नये साल में ।

 सर्वत्र अव्यवस्था है, भ्रष्टाचार है
सब भोगते हैं , कराहते हैं ।
चलो इस कदाचार से लड़ते हैं , इसे मिटाते हैं ।
मज़ा आएगा नये साल में ।

शहर - शहर में कचड़ों का अम्बार है
सब देखते हैं और नाक-भौं सिकुड़ते हैं ।
चलो झाड़ू चलाते हैं , फावड़े से इसे खोद फेंकते हैं ।
मज़ा आएगा नये साल में ।

वातावरण में धूआँ है, बदबू है ।
लोग रोज सूँघते हैं , बीमार पड़ते हैं ।
चलो  परिष्कार करते हैं, इसका उद्धार करते हैं ।
मज़ा आएगा नये साल में ।

कौन हैं जो काले को सफ़ेद करते हैं ?
लोग क्यों ऐसे  लूटे जाते हैं ?
चलो पर्दाफ़ाश करते हैं , इनका बहिष्कार करते हैं ।
मज़ा आएगा नये साल में ।

हिन्दू लड़ते हैं , मुस्लिम झगड़ते हैं , कहीं ईसाई आग लगाते हैं ।
रक्त बह रहा है , हिन्दुस्तान कराह रहा है ।
चलो सद्भावना का सन्देश फैलाते हैं , भाई-भाई का द्वेष मिटाते हैं ।
मज़ा आएगा नये साल में ।

नेताओं के  मन में नफ़रत के बीज हैं
सबको  मालूम है , वो ही  इसे अँकुराते हैं ।
चलो इनके अरमानों को ध्वस्त करते हैं ।
मज़ा आएगा नये साल में ।

कहीं चोरी है , कहीं रिश्वतखोरी है
कहीं आतंक है , कहीं सीनाजोरी है
कहीं अपहरण है , कहीं नशाखोरी है ।
हर जगह जनता की बेवशी है ,जनता की लाचारी है ।
चलो इसे उखाड़ फेंकते हैं , अव्यवस्था का तार-तार करते हैं ।
मज़ा आएगा नये साल में ।

नये साल का यही सब  संकल्प हो
और हमें न कोई विकल्प हो ।
चलो सपने अब सजाते हैं
राग वीर रस का गाते हैं ।
भ्रष्ट काल से दो-दो हाथ करते हैं
इस धर्म-युद्ध में अब ताल ठोंकते है ।
जो अब टकराएगा
गर्दिश में मिल जाएगा ।

बहुत मज़ा आएगा नये साल में  ।


अमर नाथ ठाकुर , 25 दिसम्बर , 2016 , मेरठ ।








Sunday, 11 December 2016

हम कितने भ्रष्ट हैं या हम कितने ईमानदार हैं

भ्रष्टाचार समाज और देश का सबसे बड़ा दुश्मन और अन्य अधिकांश बुराइयों की जड़ है। यह किसी देश की समृद्धि में सबसे बड़ा रोड़ा है। जिस समाज या देश में भ्रष्टाचार का बीज आ जाय तो फिर यह उस समाज या देश को अपनी गिरफ़्त में ले लेता है और फिर नाना प्रकार के फसाद शुरू हो जाते हैं।  घूसखोरी या रिश्वतखोरी सबसे निकृष्ट दर्जे का भ्रष्टाचार है । यदि कोई यह कहे कि अमुक बड़ा भ्रष्ट है तो लोग यही समझते हैं कि वह बहुत बड़ा घूसखोर है रिश्वतखोर है। घूसखोरी कमजोर चरित्र वालों के लिए बड़ा आकर्षक होता है। 

भ्रष्टाचार पानी के जैसे गुण वाला होता है। पानी की तरह फैलता है अपने तल पर । फिर यह पानी की तरह रिसता है और फिर उसके  नीचे के तल पर भी फैल जाता है, और फिर पूरे सिस्टम को भींगो देता है । मतलब, एक अधिकारी यदि भ्रष्ट है तो उसके सारे समकक्ष उसके संपर्क में आकर भ्रष्ट बन जाते हैं। फिर उसके अधीनस्थ कर्मचारी भ्रष्ट बन जाते हैं और फिर यह बीमारी नीचे के स्तर तक सभी कर्मचारियों में जड़ जमा जाता है। पुनः इस प्रजातंत्र में भ्रष्टों का नेता भ्रष्ट चुनकर आता है और इस तरह भ्रष्टाचार इस तरह ऑफिस, गाँव, समाज और फिर पूरे देश को अपनी गिरफ्त में ले लेता है।  

इस संदर्भ में गजब की बात है कि हम सब कोई रिश्वतखोरी, काला धन जमाखोरी जैसे कदाचार की निंदा करते तो हैं, लेकिन जब भी मौका  मिलता है, इन सब कदाचारों में लिप्त होने से जरा भी नहीं कतराते। हम रिश्वतखोरी जैसे कदाचारों में लिप्त होने के बाद भी इन विषयों पर खुल कर चर्चा ऐसे करते रहते हैं जैसे कि हम कितने ईमानदार हों ! क्या हमारी अन्तरात्मा अब तक में उतनी कलुषित हो गयी है कि हम  अच्छे- बुरे में फर्क  करना भूल गये हों ?  जरूर ऐसी कोई बात है कि हम अपनी इस लिप्तता की प्रवृत्ति पर  लगाम लगाने में समर्थ नहीं हो पा रहे हैं ! वह हमारी लालच है, हमारी रातों-रात धनाढ्य बनने की अटूट लालसा है, जिसकी वजह से  हम या आप भ्रष्ट तरीके या कदाचार की तरफ आसानी से प्रवृत्त हो जाते हैं । लेकिन एक बात तो हम भरोसे से कह  सकते हैं कि चाहे हम सब लाख भ्रष्ट भी क्यों न हो गये  हों, सदवृत्ति या नैतिकता का थोड़ा-सा अंश भी हम-आप में शेष जरूर है जिसकी बदौलत  भ्रष्टाचार या कदाचार जैसे विषयों पर हम -आप बेबाक टिप्पणी या बहस तो कर लेते हैं ।

 हम करीब 15 से भी ज्यादे  व्हाट्सएप्प ग्रुप के सदस्य हैं, फेसबुक तथा ट्वीटर (अब  X) पर भी सक्रिय हैं और इसलिये करीब 7 - 8 सौ दोस्तों के सम्पर्क में हैं । हमें इन सब दोस्तों के विचारों से वाकिफ होने का मौका उनके पोस्ट किये गये आर्टिकल के प्रकार और स्तर से मिलता है । यदि उनकी वार्षिक आय  और प्रबुद्धता को देखा जाय, तो  ये सभी मध्यम और उच्च मध्यम श्रेणी के लोगों में आते हैं। इनमें बहुत कम ही निम्न आय या गरीबों वाली श्रेणी में आते हैं । इसलिये हम यदि यहाँ उनके सम्मिलित विचारधारा की उपज के आधार पर कोई ओपिनियन बना रहे हैं तो यह निश्चित रूप से इन्हीं वर्गों पर लागू होता है । और यह भी सच है कि कोई भी ओपिनियन शत -प्रतिशत सत्य नहीं हो सकता, लेकिन शत- प्रतिशत गलत भी तो नहीं हो सकता । एक और बात, आय और सामाजिक रूप से अत्यंत निम्न वर्ग में भ्रष्टाचार की व्याप्तता अथवा उसका परिमाण कम होता है ।इस तरह के लोग भ्रष्टाचार के शिकार ज्यादे होते हैं । वैसे यह बात शोध की हो सकती है । अतः इस कथोपकथन को ध्यान में रखकर आगे बढ़ते हैं कि आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक रूप से मध्यम और उच्च वर्ग के लोगों में भ्रष्टाचार की व्यापकता अधिक होती है । परिमाणात्मक रूप से अधिकांश भ्रष्टाचार के लिए यही वर्ग उत्तरदायी होता है । 

हाँ तो, हम बात कर रहे थे भ्रष्टाचार या कदाचार की और खास  कर इस बात की  कि इस कदाचार या भ्रष्टाचार में  हम किस स्तर तक गिर गये हैं । आइये, इसलिये ऐसा करते हैं कि  'हम कितने  भ्रष्ट हैं ' यह खुद अपने बारे में जानने की यहाँ  कोशिश करते हैं,  और इस बात पर आत्म-मंथन भी करने की कोशिश करते हैं । हमारा मानना है, इससे हम स्वयं में सुधार ला पाएँगे और परिणामस्वरूप समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार  को  दूर करने में  संभवतः सहायता मिलेगी ।

हमने एक स्केल बनाया है ऊपर वर्णित तथ्य या सार तत्त्व  को ध्यान में रखकर । यह स्केल या पैमाना हमने विभिन्न मित्रों से बातचीत करके, रोजमर्रा की जिन्दगी से सीख लेकर, विभिन्न लेखों को पढ़कर और अपने अनुभवों का उपयोग कर  तैयार किया  है । आइये, इस स्केल को गौर से समझने की कोशिश करें और अपनी भ्रष्टता के स्तर को भ्रष्टता सूचकांक से इस '0' से '100' तक के  पैमाने या स्केल पर मापें और देखें कि आप या हम रास्ते से कितना भटक गये हैं ? इस पैमाने से दूसरे की भ्रष्टता का सूचकांक, यदि हम उनके सम्पर्क में रहे हैं  और / या हमें उनके बारे में तथ्य-परक जानकारी है, भी निकाला जा सकता है, लेकिन हम ऐसा न  करें । इस पैमाने से  स्वयं का स्वयं ही भ्रष्टता सूचकांक निकालें और अपने ढोंग को स्वयं ही जानें और आत्म-निरीक्षण करें ।

हाँ, इस बात से आप सहमत होंगे  कि भ्रष्ट होना या रिश्वत खोर होना ईमानदार या सदाचारी होने का उल्टा है । यदि आप या हम ईमानदार हैं तो इसका अर्थ है भ्रष्ट नहीं हैं, या यों कहें कि यदि भ्रष्ट हैं तो ईमानदार नहीं । यदि थोड़े ईमानदार हैं तो थोड़े नहीं बहुत भ्रष्ट भी हैं । यह ठीक वैसे ही है जैसे किसी की आँख की ज्योति यदि 30 प्रतिशत चली गयी है तो भी उसकी आँख 70 प्रतिशत देख सकती है, यदि ज्योति 100 प्रतिशत चली गयी है तो वह पूर्ण अंधा है याने वह कुछ भी नहीं देख सकता । इसलिये इस पैमाने पर, उदाहरण के तौर पर, यदि आप या हम भ्रष्टता के 20 सूचकांक पाते हैं  तो यह ईमानदारी का  सूचकांक 100 - 20 = 80 बताएगा । है न खुश होने वाली बात ? लेकिन साथ ही एक बात हम पक्के  भरोसे से कह सकते हैं कि शत- प्रतिशत ईमानदार होना अत्यंत कठिन है जबकि शत - प्रतिशत भ्रष्ट बहुत लोग होंगे ।

ऊपर वर्णित स्केल बनाने के लिये हमने मध्यम और उच्च वर्ग समुदाय को विभिन्न वर्गों  मे  विभाजित किया है और फिर उनके विभिन्न प्रकार के कदाचारों  के आधार पर कुछ  प्रश्नों का निर्माण किया है जिसके  उत्तर के आधार पर अंक का निर्धारण हमें या आपको स्वयं करना  होगा । तो आइये अपनी भ्रष्टता या अपनी  ईमानदारी निम्न वर्णित पैमाने पर  निम्नलिखित प्रक्रिया के अनुसार मापें , जो तीन भागों (क) , (ख ) और (ग) में उपविभाजित है जिनका क्रमशः 70 %, 20 % और 10 % अंश लेने के उपरांत भ्रष्टाचारी सूचकांक प्राप्त कर सकते हैं।

(क) इंजीनियरिंग/हेल्थ  डिपार्टमेंट जैसे स्टेट पी डब्ल्यू डी, सी पी डब्ल्यू डी, बी एस एन एल, सिंचाई, पी एच इ डी, एन एच ए आई, इन्डियन ऑडिनेन्स, ऑल इंडिया रेडियो, रेलवे, स्वास्थ्य विभाग  आदि जैसे विभागों में,  जहां ठेकों का निपटान किया जाता हो, मानव संसाधन  या प्रशासनिक कार्य भी होते हों और जहां इंजीनियर, डॉक्टर, फाइनेंस, मैनेजमेंट और/अथवा जनरल एडमिनिस्ट्रेशन वाले अधिकारी या कर्मचारी गण  काम करते हों, ऐसी श्रेणी के लोगों के लिये भ्रष्टाचारी प्राप्तांक  की गणना :

1. क्या आपने टेंडर पूल करने में ठेकेदार को सहायता पहुँचायी या पहुँचाते रहे हैं या किसी न किसी रूप में आप इस कदाचार में शामिल रहे हैं ? यदि हाँ तो इसके लिए 10 अंक मिलेगा , यदि नहीं तो 0 अंक पाएँगे ।

2 . क्या टेंडर स्वीकार करने में या टेंडर की किसी भी प्रक्रिया में ठेकेदार से आपने  रिश्वत  लिया या लेते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

3. क्या ठेकेदार के बिल पास करने के लिये उसे सन्देश पहुँचाकर उसके आने तक रोके रखा  या उसे पास करने के लिए मांग कर या बिना मांगे  उससे आपने रिश्वत ली या लेते रहे हैं  या बिल पास करने की प्रक्रिया में किसी भी प्रकार से आपके आचरण से कदाचार /रिश्वत लेन -देन को  यदि बढ़ावा मिलता रहा है  ?  यदि हाँ,  तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

4.क्या आपने अपने अधीनस्थों या सहयोगियों की पदोन्नति के लिये रिश्वत ली या लेते रहे हैं या ऐसा काम धर्म, जाति या क्षेत्र के आधार पर करते रहे हैं या आपके किसी आचरण से रिश्वत के लेन-देन को बढ़ावा मिलता रहा है  ? यदि हाँ तो 10 अंक , यदि नहीं तो 0 अंक ।

5. क्या आपने अपने सहकर्मियों अथवा अधीनस्थों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिये रिश्वत ली या लेते रहे हैं या ऐसा काम धर्म, जाति या क्षेत्र के आधार पर करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

6. क्या आपने भ्रष्टाचार के आरोपों को निरस्त करने के लिये अपने सहकर्मियों, अधीनस्थों अथवा अपने वरिष्ठों से रिश्वत ली या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

7. क्या अधीनस्थों के जीपीएफ, मेडिकल बिल, यात्रा भत्ता बिल इत्यादि पास करने के लिये और / अथवा  अच्छा वार्षिक परफॉर्मेंस प्रतिवेदन लिखने के लिये रिश्वत ली या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

8. यदि कभी फर्जी टेम्परेरी एडवांस, फर्जी डीजल बिल, सरकारी गाड़ी का दुरूपयोग (अपने परिवार के सदस्यों को अपनी गाड़ी इस्तेमाल के लिये दे देना या स्वयं द्वारा गैर सरकारी कार्यों के लिये इस्तेमाल करना), फर्जी ओवरटाइम बिल बनाते रहे हैं या इसमें संलिप्त रहे  हैं या ऑफिस फोन, ऑफिस के कागज़ या और कोई उपादान का अपने अकार्यालयीय इस्तेमाल में लाने के काम में, फर्जी मेडिकल बिल इत्यादि जैसे कारनामों में लिप्त रहे हैं  ? यदि हाँ तो 10 अंक , यदि  नहीं तो 0 अंक ।

9. क्या आपने इस्टीमेट की स्वीकृति के लिये रिश्वत ली  या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

10. क्या सरकारी मद में से अपने घर  या अपनी गाड़ी या अपने एसी की रिपेयरिंग या घर के कम्यूटर की रिपेयरिंग  फर्जी तरीके से करवायी या करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

11. आर्बिट्रेशन अवार्ड बढ़ा-चढ़ा कर लिखने तथा पेमेन्ट करने के लिये क्लेमेंट कांट्रेक्टर से रिश्वत ली या लेते रहे हैं ? यदि हाँ  तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

12. यदि सरकारी टूर पर अपनी पत्नी/परिवार के साथ या अकेले ही अपने अधीनस्थों अथवा ठेकेदारों के खर्चे से मार्केटिंग की या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक,  यदि नहीं तो 0 अंक ।

13. यदि अपने अधीनस्थों की भ्रष्टाचार की कमाई में भी हिस्सेदारी ली या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक , यदि नहीं तो 0 अंक ।

14. यदि ठेकेदारों को उसके निम्न गुणवत्तापूर्ण कार्य को स्वीकार कर या ऐसा करने के लिये उकसाकर या ऐसा करने वाले ठेकेदारों को काम करने देने में सहायता पहुंचा अतिरिक्त फायदा पहुँचाकर  उससे अतिरिक्त रिश्वत ली या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक,  यदि नहीं तो 0 अंक ।

15. यदि ठेकेदार से मिलकर विभाग के काम अपनी पूँजी भी लगाकर ठेकेदार के साथ 50-50% लाभ कमाने के लिये आपने  काम किया या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

16. यदि किसी ठेकेदार विशेष को ठेका अवार्ड करने के लिये आपने टेंडर  कंडीशन में  हेर-फेर किया या ऐसा करते रहे हैं ?  यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

17. किसी कार्य में ठेकेदार पर दबाव बनाकर किसी कम्पनी विशेष के प्रोडक्ट लगवाया तथा उस कम्पनी  वाले से अतिरिक्त कमीशन लिया या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

18. क्या आपने अतिरिक्त कमाई के ख्याल से इस्टीमेट बढ़ा-चढ़ा कर बनाया फर्जी आइटम शामिल किया  या ऐसा करते रहे हैं या करवाते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

19. यदि उपर्युक्त 1 से  18 तक के  कोई भी  कदाचार  आप आदतन / लत  की तरह बार-बार किये हों और आपको रिश्वत नहीं मिलने पर उनके काम में बार-बार आदतन अड़ंगा लगाया हो  तो उन  सभी मद के  अंकों को दुगुना कर दें ।

20.  यदि आप रिटायर हो चुके हैं और पश्चात्ताप के ध्येय से भ्रष्टाचार से कमायी गयी सम्पत्ति सरकारी खजाने में या ईमानदारी पूर्वक जन हित के लिये काम कर रही किसी संस्था में दान देने के लिये सोच रहे है तो ऊपर के प्राप्तांक को 10% कम कर दें, यदि दान करने के लिये प्रण भी कर लिया हो और दान न भी किया हो तो भी प्राप्तांक को 10% कम कर दें, यदि आपने पूरी सम्पत्ति दान कर दी है तो ऊपर के सारे प्राप्तांक को शत प्रतिशत कम कर दें । यदि अर्जित की गयी सम्पत्ति का कुछ ही हिस्सा/प्रतिशत दान किया हो तो इसे 10 % और बढ़ाकर प्राप्तांक को उतने प्रतिशत से  कम कर दें  ।

यदि आप अभी तक सेवा  रत हैं और ऊपर जैसा  कहा गया है  पश्चात्ताप स्वरूप वैसा ही आचरण करना  चाहते हैं या कर रहे हैं तो भी अंकों की गणना उसी प्रकार करें ।

भ्रष्टाचार के पैमाने पर इस वर्ग या श्रेणी के लोगों के लिए  आप अपने इस  प्राप्तांक को लिख लें ।

21.  यदि आपने जीवन में ऊपर बतायी विधि या किसी और विधि से अपने विभाग में रहते हुए कभी रिश्वत कमाई ही नहीं तो फिर ऊपर की गणना आप को करनी ही नहीं है । आपका प्राप्तांक भ्रष्टाचार के पैमाने पर इस भाग में शून्य होगा ।

22.  ऊपर क्रमांक 20 के प्राप्तांक को 3.8 से विभाजित करें, यह भागफल (क) के मद में आपका भ्रष्टाचार के  प्राप्तांक सिर्फ एक भाग होगा ।
                              या

(क ) यदि आप  डॉक्टर हैं प्राइवेट  प्रैक्टिस करते हैं या सरकारी विभाग में डॉक्टरी की नौकरी करते हैं तो भ्रष्टाचारी अंक की गणना निम्नलिखित  प्रकार से कर सकते हैं :

1.  मरीज़ को देखकर उनको परामर्शी शुल्क की पक्की रसीद नहीं देते हैं या नहीं देते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

2. क्या आप मरीज़ के लिये जेनेरिक मेडिसिन नहीं लिखते हैं या नहीं लिखते रहे हैं तथा महँगी दवाइयाँ  प्रेस्क्राइब करते है या करते रहे हैं कम्पनी विशेष को फ़ायदा पहुँचाने के लिये ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

3. दवा दुकान वालों से कमीशन लेते हैं या लेते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

4. मरीज़ के रक्त, पैखाना, पेशाब आदि टेस्ट के लिये, एक्स रे आदि अन्य टेस्टों के लिये विभिन्न पैथोलोजिकल लैब वालों से कमीशन लेते हैं या लेते रहे है या सरकारी लैब में टेस्ट करने के लिये हतोत्साहित करते  हैं या करते रहे रहे हैं ?  यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

5. ज्यादा कमीशन के लिये ज्यादा टेस्ट करवाते हैं या करवाते रहे हैं जिसकी आवश्यकता नहीं भी होती है  या थी ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

6. दूसरे डॉक्टरों को मरीज़ रेफर करने के लिये उनसे कमीशन लेते हैं या लेते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

7. मरीज़ के लिये किसी विशेष दवा को प्रेस्क्राइब कर उस दवा की उत्पादक कम्पनी से  विशेष अतिरिक्त कमीशन लेते हैं या लेते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक , यदि नहीं तो 0 अंक ।

8. रिक्शा वाले, ऑटो वाले  आदि आपके लिये मरीजों को लाते हैं और आप उसे कमीशन लेते हैं या लेते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

9. सरकारी अस्पतालों से मरीजों को बरगलाकर अपने या अन्य अपने पहचान के प्राइवेट अस्पतालों में लाकर ज्यादे फी या कमीशन वसूल करते हैं या करते रहे हैं ? यदि हाँ  तो 10 अंक , यदि नहीं तो 0 अंक ।

10 . मरीजों को डराकर अपने हॉस्पीटल में भर्ती कर जरूरत से ज्यादे दिनों तक रखकर कमाई करते हैं या करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

11. किडनी जैसे अंगों के अवैध प्रत्यारोपण कर धन अर्जित करते हैं या करते रहे हैं ? यदि हाँ  तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

12. आप सरकारी दवाइयों को चुपके-चुपके बेच देते हैं या बेचते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

13. क्या आप सरकारी ड्यूटी में कोताही कर ज्यादे कमाई के लिये अपने प्राइवेट क्लीनिक में ज्यादे समय बिताते हैं या बिताते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

14. क्या आप राजनीतिक, प्रशासनिक या किसी माफिया या क्रिमिनल के दबाव में या रिश्वत की लालच में पोस्ट-मार्टम रिपोर्ट बदलते हैं या लिखते हैं या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

15.  यदि उपर्युक्त कोई भी  कदाचार  आप ने एक से अधिक बार किये हों या करते रहे हों या  आदतन बार -बार करते हों या करते रहे हों या लोगों या एजेन्सियों को डरा-धमका कर एक से अधिक बार किये हों या करते रहे हों या मीठी-मीठी बातें बोलकर अधीनस्थों या ठेकेदारों को अधिक लाभ का लालच देकर एक से अधिक बार किये हों या करते रहे हों तो उन  सभी मद के  अंकों को दुगुना कर दें ।

16.  यदि ऊपर के कारनामों में आप कभी भी नहीं लिप्त रहे हैं  तो आपका भष्टाचारी प्राप्तांक  शून्य होगा ।

17.  यदि आपने ऊपर के कारनामे करने बन्द कर दिये हैं और अर्जित धन  पश्चात्ताप के ख्याल से सरकारी खजाने में या ईमानदार जन हित कारी संस्था में दान करने की सोच रहे हैं तो प्राप्तांक को 10% कम कर दें ।  यदि आपने दान करने का प्रण कर लिये हैं और दान न भी किये हों  तो  भर ऊपर के प्राप्तांक को 10%  और  भी कम कर दें । यदि आपने ऊपर के कारनामों से अर्जित सारे  धन  सरकारी खजाने में या किसी ईमानदार जन हितकारी संस्था को पश्चात्ताप के ख्याल से दान कर दिया है तो उपर के प्राप्तांक को शत प्रतिशत कम कर दें । यदि अर्जित धन का कुछ ही प्रतिशत दान किये हों  पश्चात्ताप के ख्याल से तो इसे 10 % और बढ़ाकर प्राप्तांक को उतने प्रतिशत से कम  कर दें ।  इस प्रकार भ्रष्टाचार के इस प्राप्तांक लिख लें ।

18.  ऊपर के अंकों के योग को  2.4 से विभाजित करें यदि आप प्राइवेट डॉक्टर हैं, 2.2 से विभाजित करें यदि आप सरकारी डॉक्टर हैं, भागफल (क) के मद में आपके भ्रष्टाचार के  प्राप्तांक का एक भाग होगा ।

                       या

(क) यदि आप वकील हैं प्राइवेट या सरकारी या किसी कोर्ट में जज हैं तो अपने  भष्टाचारी प्राप्तांक की  इस प्रकार  गणना कर सकते हैं :

1. क्या आप क्लाइंट को बहकाकर या गलत परामर्श देकर या केस जीतने का सपना दिखा कर  केस लेते हैं या लेते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

2. क्या आप अपनी कमाई बढ़ाने के लिये  केस का कोर्ट में बार-बार तारीख लगवाते हैं और अपने क्लाइंट को चूना लगाते हैं या ऐसा करते रहे हैं ? और जज के रूप में आप इसमें संलिप्त हो इसे बढ़ावा देते हैं या देते रहे हैं ? यदि हाँ  तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

3. क्या आप अपने क्लाइंट से फीस बिना पक्की रसीद के लेते हैं या लेते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

4. क्या आप विरोधी पार्टी के वकील से केस  की चर्चा करके केस को लम्बा खींचते हैं और अपने क्लाएंट  से ज्यादा पैसा ऐंठते हैं या ऐसा करते रहे हैं ? और जज के रूप में आप इन कदाचारों को बढ़ावा देते हैं या देते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक।

5. क्या आप न्यायाधीश को रिश्वत देकर जजमेंट लिखवाते हैं या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

6.क्या आप क्रिमिनल, रेपिस्ट, फाइनेंसियल डिफॉल्टर आदि के पकड़ाने पर सबूतों  इत्यादि के साथ छेड़-छाड़ कर, अर्थ का अनर्थ कर  न्यायाधीश को रिश्वत देकर उसे जमानत दिलवाते हैं या ऐसा करते रहे हैं ? और न्यायाधीश होकर आप भी इन कदाचारों में संलिप्त होते हैं या होते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

7. क्या न्यायाधीश के रूप में आप रिश्वत लेकर जजमेन्ट लिखते  हैं या लिखते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

8. क्या न्यायाधीश के रूप में आप अपना झुकाव किसी ख़ास पोलिटिकल पार्टी के प्रति रखकर भेद-भाव पूर्ण निर्णय लिखते हैं या लिखते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

9. क्या किसी पोलिटिकल पार्टी से नजदीकी अथवा किसी जज से नजदीकी अथवा सम्बन्ध का ख्याल रखकर किसी जज की नियुक्ति में कोलेजियम मेम्बर के रूप में आप भेद-भाव करते हैं या करते रहे हैं ?  यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

10. क्या जजों के ट्रान्सफर-पोस्टिंग या पदोन्नति में आप रिश्वत लेकर निर्णय लेते हैं या लेते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

11.क्या आप सरकारी वकील के रूप में केस की संख्या बढ़ाने के लिए या केस को लम्बा भी खींचने के लिए और इससे अपनी कमाई बढ़ाने के लिये गलत और लुभावन परामर्श देते हैं या देते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

12. क्या आप  सीबीआई, पुलिस, इनकम टैक्स, कस्टम, सेल्स टैक्स इत्यादि कई विभागों में से किसी भी विभाग तथा पब्लिक के बीच में माध्यम या दलाल के रूप में काम करके गैर कानूनी कमाई करते हैं  या करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

13.  क्या जज के रूप में कार्य करते हुए आप नामी- गिरामी  वकीलों के बहस से ज्यादा प्रभावित होते  हैं और फिर जजमेन्ट देते रहे हैं या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

14.  क्या आप पब्लिक इंटेरेस्ट लिटिगेशन के नाम पर केस करके विभिन्न पार्टियों, ग्रुपों, व्यावसायियों आदि से धन वसूलने का काम करते हैं या करते रहे हैं ? क्या न्यायाधीश के रूप में आप भी इसमें सहभागी होते हैं या होते रहे हैं । यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

15. ऊपर लिखित कदाचार आप ने  एक से अधिक बार किये हों या  आदतन बार-बार करते रहते हैं या डरा-धमका कर करते ही रहते हैं या करते रहे हैं  या लालच के वशीभूत होकर करते ही रहते हैं या करते ही रहे हैं तो ऊपर के उस मद के  प्राप्तांक को दुगुना कर दें ।

16. यदि ऊपर के कारनामों में आप लिप्त नहीं रहे हैं तो आपका भ्रष्टाचारी प्राप्तांक शून्य होगा ।

17.  यदि आपने ऊपर के कारनामे करने बन्द कर दिये हैं और अर्जित धन  पश्चात्ताप के ख्याल से सरकारी खजाने में या ईमानदार जन हित कारी संस्था में दान करने की सोच रहे हैं तो प्राप्तांक को 10% कम कर दें ।  यदि ऊपर वर्णित भ्रष्ट तरीकों से अर्जित धन आपने दान करने का प्रण कर लिये हैं और दान न भी किये हों  तो भी ऊपर के प्राप्तांक को 10%  और  भी कम कर दें । यदि आपने ऊपर के कारनामों से अर्जित सारे  धन  सरकारी खजाने में या किसी ईमानदार जनहितकारी संस्था को पश्चात्ताप के ख्याल से दान कर दिया है तो उपर के प्राप्तांक को शत प्रतिशत कम कर दें । यदि अर्जित धन का कुछ ही प्रतिशत दान किये हों पश्चात्ताप के ख्याल से तो इसे 10 % और बढ़ाकर प्राप्तांक को उतने प्रतिशत से कम  कर दें ।  इस प्रकार भ्रष्टाचार के इस प्राप्तांक को लिख लें ।

18. यदि आप वकील हैं तो ऊपर के प्राप्तांक को 1.8 से विभाजित करें, भागफल आपके भ्रष्टाचार के  प्राप्तांक का एक भाग होगा ।  यदि आप न्यायाधीश हैं तो ऊपर के प्राप्तांक को 2.0 से विभाजित करें, भागफल आपके  भ्रष्टाचारी प्राप्तांक का एक भाग होगा ।यदि न्यायाधीश होकर कॉलेज़ियम के सदस्य न हों तो प्राप्तांक को 1.8 से विभाजित करें । यह आपके भ्रष्टाचारी प्राप्तांक का एक हिस्सा होगा ।

                            या

(क)  यदि आप बैंक अधिकारी हैं या बैंक के कर्मचारी हैं तो आपने  भ्रष्टाचारी प्राप्तांक की इस प्रकार  गणना कर सकते हैं :

1. क्या आप अपने ग्राहकों को लोन देने के लिये रिश्वत लेते हैं  या लेते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

2. क्या आप रिश्वत लेकर अपने ग्राहकों के लिए फर्जी एकाउन्ट खोलते हैं या खोलते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

3.  क्या आप  बिना पर्याप्त कागजात के या बिना पर्याप्त वेरिफिकेशन के एकाउन्ट खोलते रहे हैं या एकाउन्ट से रुपये निकासी होने देते है जो काले धन को छिपाने या डायवर्ट करने या देश या समाज के विरुद्ध इस्तेमाम के उद्देश्य से हो रहे हों, जिसमें आपकी भी संलिप्तता रहती है या रहती रही है ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

4. क्या आप नकली नोटों को जानबूझकर अपनी संलिप्तता से बैंकों के खजाने में मिल जाने देते हैं  या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

5.  क्या आप काला धन को सफ़ेद करने में अपनी संलिप्तता से भ्रष्ट और काला धन वालों की सहायता करते हैं या करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

6. आप व्यावसायियों, भ्रष्ट अधिकारियों अथवा काला धन वालों से मिलकर उनके धन को विदेश भेजने में संलिप्त रहते हैं या रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

7. आप  छोटी-छोटी रकमों वाले बिना एकाउन्ट वालों के ड्राफ्ट या चालान आदि न बनाकर ग्राहकों को परेशान करते हैं ?  यदि हाँ तो 10 अंक, यदि  नहीं तो 0 अंक ।

8. क्या पर्याप्त डॉक्यूमेंट के होते हुए भी आप छोटे अनपढ़  ग्राहकों के एकाउन्ट नहीं खोलते हैं या ऐसा करते रहे हैं ?  यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

9.  क्या आजकल चले नोट बदली में भ्रष्ट अधिकारियों, व्यावसायियों, काले धन वालों से मिलकर रिश्वत लेकर उसे नये नोट दे रहे हैं अथवा किसी भी प्रकार से काले धन को सफ़ेद करने में संलिप्त रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

10. ऊपर लिखित कारनामे आप ने  एक से अधिक बार किये हों या आदतन बार - बार करते रहते हैं या डरा-धमका कर करते ही रहते हैं  या लालच के वशीभूत होकर करते ही रहते हैं तो ऊपर के उस मद के प्राप्तांक को दुगुना कर दें ।

11.  यदि ऊपर के कारनामों में आप लिप्त नहीं रहे हैं तो आपका भ्रष्टाचारी प्राप्तांक शून्य होगा ।

12.  यदि आपने ऊपर के कारनामे करने बन्द कर दिये हैं और अर्जित धन पश्चात्ताप के ख्याल से सरकारी खजाने में या ईमानदार जनहितकारी संस्था में दान करने की सोच रहे हैं तो प्राप्तांक को 10% कम कर दें ।  यदि आपने दान करने का प्रण कर लिये हैं और दान न भी किये हों  तो भी ऊपर के प्राप्तांक को 10%  और  भी कम कर दें । यदि आपने ऊपर के कारनामों से अर्जित सारे  धन  सरकारी खजाने में या किसी ईमानदार जनहितकारी संस्था को पश्चात्ताप के ख्याल से दान कर दिया है तो उपर के प्राप्तांक को शत प्रतिशत कम कर दें । यदि अर्जित धन का कुछ ही प्रतिशत दान किये हों  पश्चात्ताप के ख्याल से तो इसे 10 % और बढ़ाकर प्राप्तांक को उतने प्रतिशत से कम  कर दें ।  इस प्रकार ये आपका भ्रष्टाचार का प्राप्तांक होगा ।

13. ऊपर के प्राप्तांक को आप 1.8 से विभाजित करें । भागफल इस मद में आपके  भ्रष्टाचार के प्राप्तांक का एक हिस्सा  होगा ।

                                          या 

(क) यदि आप पुलिस अधिकारी हैं या पुलिस विभाग में कार्य करते हैं तो अपने भ्रष्टाचारी प्राप्तांक की गणना निम्नलिखित प्रकार से कर सकते हैं : 

1. क्या आप चोरों, पॉकेटमारों, डाकुओं, क्रिमिनलों, अपहरणकर्ताओं, छेड़खानी करने वालों, काला बाजारी करने वालों, तस्करों आदि से मिले रहते हैं उनसे रिश्वत लेते हैं, उनसे माहवारी  वसूलते हैं और उनको गैरकानूनी कारनामों में आजादी देते हैं जिससे आपकी इस प्रकार की इनकम बनी रहती है या ऐसा करते रहे हैं ?  यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

2. क्या आप कनिष्ठ अधिकारियों या पुलिसों, इंस्पेक्टरों आदि की जगह विशेष की पोस्टिंग बोली लगाकर या ज्यादे से ज्यादे रिश्वत की मात्रा के आधार पर करते हैं या करते रहे हैं  या आप स्वयं भ्रष्ट कमाई के उद्देश्य से इस तरह रिश्वत देकर पोस्टिंग लेते हैं या लेते रहे रहे हैं ?  यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

 3. क्या आप अपने कनिष्ठों से रिश्वत के रूप में माहवारी भी वसूलते हैं या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

 4. क्या किसी क्रिमिनल घटना की ज्यादेतर समय आपको पूर्व जानकारी होती है और आप जान बूझकर घटना घट जाने के बाद आप घटना स्थल पर पहुंचते हैं जिससे नये मामले बनें और कमाई का नया रास्ता खुले या ऐसा करते रहे हैं ?  यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

5.  क्या बिना रिश्वत के, या स्थानीय लीडरों या गुंडों या सरकार में स्थापित दल के स्थानीय नेताओं से पूछे बिना एफ आई आर आप  दर्ज नहीं करते या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं 0 अंक ।

6. क्या आप कम-से-कम एफ आई आर दर्ज कर अपने क्षेत्र में अच्छी विधि-व्यवस्था का गलत आंकड़ा ऊपर भेजते हैं या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

7. क्या आप फर्जी एनकाउंटर करते हैं और अच्छी पोस्टिंग या प्रमोशन के लिये अच्छी संस्तुति की कोशिश करते हैं या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

8. फर्जी मुकद्दमें में लोगों को फँसा कर एक या दोनों पक्षों से रिश्वत और रंगदारी वसूलते हैं या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

9. राजनेताओं या रसूखदारों के प्रभाव में गरीबों, दलितों, पिछड़ों को पुलिसिया ख़ौफ़ दिखाकर उन्हें बेदखल करते हैं  या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

10. पुलिसिया ख़ौफ़ दिखाकर लोगों को डराते हैं या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक , यदि नहीं तो 0 अंक ।

11. क्या रिश्वत लेकर किसी झगड़े या खून-खराबे में किसी पक्ष के लिए भेद भाव पूर्ण चार्जशीट तैयार करते हैं  या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक , यदि नहीं तो 0 अंक ।

12. ड्रग ट्रैफिकिंग, हथियारों की तस्करी में क्या आपकी संलिप्तता रहती है या रहती रही है ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

13. यदि ऊपर के कारनामों में आप लिप्त नहीं रहे हैं तो आपका भ्रष्टाचारी प्राप्तांक शून्य होगा ।

14. यदि उपर्युक्त कोई भी  कदाचार  आप ने एक से अधिक बार किये हों या  आदतन बार - बार करते रहे हों या  पब्लिक या क्रिमिनल  अथवा अधीनस्थों को डरा-धमका कर एक से अधिक बार किये हों या करते रहे हों या मीठी-मीठी बातें बोलकर बचाने का आश्वासन देकर एक से अधिक बार किये हों या करते रहे हों तो उन  सभी मद के  अंकों को दुगुना कर दें ।

15.  यदि आपने ऊपर के कारनामे करने बन्द कर दिये हैं और अर्जित धन  पश्चात्ताप के ख्याल से सरकारी खजाने में या ईमानदार जनहितकारी संस्था में दान करने की सोच रहे हैं तो प्राप्तांक को 10% कम कर दें ।  यदि आपने दान करने का प्रण कर लिये हैं और दान न भी किये हों  तो भी ऊपर के प्राप्तांक को 10%  और  भी कम कर दें । यदि आपने ऊपर के कारनामों से अर्जित सारे  धन  सरकारी खजाने में या किसी ईमानदार जनहितकारी संस्था को पश्चात्ताप के ख्याल से दान कर दिया है तो उपर के प्राप्तांक को शत प्रतिशत कम कर दें । यदि अर्जित धन का कुछ ही प्रतिशत दान किये हों  पश्चात्ताप के ख्याल से तो इसे 10 % और बढ़ाकर प्राप्तांक को उतने प्रतिशत से  कम  कर दें ।  इस प्रकार ये आप भ्रष्टाचारी प्राप्तांक लिख लें ।

16. ऊपर के प्राप्तांक को आप 2.4 से विभाजित कर दें, भागफल इस मद में आपके  भ्रष्टाचारी प्राप्तांक का एक हिस्सा होगा ।

                              या

(क) आइ ए एस  या अन्य प्रशासनिक अधिकारी गण अपना भ्रष्टाचारी प्राप्तांक इस प्रकार कर सकते हैं :

1. क्या  विभिन्न योजनाओं की संस्तुति के लिये आप रिश्वत लेते हैं या लेते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

2 . क्या टेंडर स्वीकार करने में ठेकेदार से आपने सुविधा शुल्क ( रिश्वत ) लिया या लेते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

3. क्या ठेकेदार के बिल पास करने के लिये उसे सन्देश पहुँचाने तक रोके रखा, उससे आपने रिश्वत ली या ऐसा करते रहे हैं ?  यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

4.क्या आपने अपने अधीनस्थों की पदोन्नति के लिये रिश्वत ली या लेते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

5. क्या आपने अपने सहकर्मियों अथवा अधीनस्थों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिये रिश्वत ली या लेते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

6. क्या आपने भ्रष्टाचार के आरोपों को निरस्त करने के लिये अपने सहकर्मियों, अधीनस्थों अथवा अपने वरिष्ठों से रिश्वत ली या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

7. क्या अधीनस्थों के जीपीएफ, मेडिकल बिल, यात्रा भत्ता बिल इत्यादि पास करने के लिये और / अथवा  अच्छा वार्षिक परफॉर्मेंस प्रतिवेदन लिखने के लिये रिश्वत ली या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक , यदि नहीं तो 0 अंक ।

8. यदि कभी फर्जी टेम्परेरी एडवांस, फर्जी डीजल बिल, सरकारी गाड़ी का दुरूपयोग ( अपने परिवार के सदस्यों को अपनी गाड़ी इस्तेमाल के लिये दे देना ), फर्जी ओवरटाइम बिल, ऑफिस फोन, ऑफिस के कागज़ या और कोई उपादान का अपने अकार्यालयीय इस्तेमाल में लाने के काम में , फर्जी मेडिकल बिल इत्यादि जैसे कारनामों में लिप्त रहे हैं या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि  नहीं तो 0 अंक ।

9. क्या आपने इस्टीमेट की स्वीकृति के लिये रिश्वत ली  या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

10. क्या सरकारी मद में से अपने घर  या अपनी गाड़ी या अपने एसी की रिपेयरिंग या घर के कम्यूटर की रिपेयरिंग या  घर के  राशन की खरीद फर्जी तरीके से करवायी या करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

11. यदि सरकारी टूर पर अपनी पत्नी को ले जाकर पत्नी संग या अकेले भी अपने अधीनस्थों अथवा ठेकेदारों के खर्चे से मार्केटिंग की या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक,  यदि नहीं तो 0 अंक ।

12. यदि अपने अधीनस्थों की भ्रष्टाचार की कमाई में भी हिस्सेदारी ली या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक

13. यदि किसी ठेकेदार विशेष को ठेका अवार्ड करने के लिये आपने टेंडर  कंडीशन में  हेर-फेर किया या ऐसा करते रहे हैं ?  यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

14.  क्या आपने अतिरिक्त कमाई के ख्याल से इस्टीमेट बढ़ा-चढ़ा कर बनाया या ऐसा करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

15. क्या राजनीतिक दल विशेष  जिसकी  सरकार होती है, के प्रभाव में, या लोकल गुंडे या व्यवसायी के प्रभाव में, आप प्रशासन या विधि-व्यवस्था  चलाते हैं  या चलाते रहे हैं कोई कार्य करके स्वयं को या उन तत्त्वों को फ़ायदा दिलाते हैं या दिलाते रहे हैं ?  यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

16. यदि विभिन्न  सप्लाय, लाइसेंस, सर्टिफिकेट आदि जारी करने के लिये रिश्वत लेते हैं या लेते रहे हैं ? यदि  हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

16. यदि ऊपर के कदाचार आप ने एक से अधिक बार किये हों या आदतन बार-बार  ठेकेदारों अथवा अधीनस्थों को डरा-धमका कर  या पॉलिटिशियन या गुंडों या व्यावसायियों से मिलकर एक से अधिक बार किये हों या करते रहे हों या मीठी-मीठी बातें बोलकर ठेकेदार को अधिक लाभ का लालच देकर एक से अधिक बार किये हों या करते रहे हों तो उन  सभी मद के  अंकों को दुगुना कर दें ।

17.   यदि आप रिटायर हो चुके हैं, और पश्चात्ताप के ध्येय से भ्रष्टाचार से कमायी गयी सम्पत्ति को सरकारी खजाने में या ईमानदारी पूर्वक जन हित के लिये काम कर रही किसी संस्था में दान देने के लिये सोच रहे है तो ऊपर के प्राप्तांक को 10% कम कर दें, यदि दान करने के लिये प्रण भी कर लिया हो और दान न भी किया हो तो भी प्राप्तांक को 10% कम कर दें, यदि आपने भ्रष्टाचार से अर्जित पूरी सम्पत्ति दान कर दी है तो ऊपर के सारे प्राप्तांक को शत प्रतिशत कम कर दें । यदि अर्जित की गयी सम्पत्ति का कुछ ही प्रतिशत दान किया हो तो इसे 10 % और बढ़ाकर प्राप्तांक को उतने प्रतिशत से कम कर दें  ।

यदि आप अभी तक नौकरी रत हैं और ऊपर जैसा  कहा गया है  वैसा ही आचरण करना  चाहते हैं तो भी अंकों की गणना उसी प्रकार करें ।

भ्रष्टाचार के पैमाने पर आप यह प्राप्तांक लिख लें ।

18.  यदि आपने जीवन में कभी रिश्वत कमाई ही नहीं तो फिर ऊपर की गणना आप को करनी ही नहीं है । आपका प्राप्तांक भ्रष्टाचार के पैमाने पर शून्य होगा ।

19. ऊपर के प्राप्तांक को 3.0 से विभाजित करें , भागफल इस मद में आपके   भ्रष्टाचारी प्राप्तांक का एक हिस्सा होगा ।


(ख) किसी भी विभाग में कार्य करने वाले के लिये अतिरिक्त भ्रष्टाचारी प्राप्तांक   की गणना :

1.  आप नियत समय पर ऑफिस नहीं आते हैं /थे और नियत समय तक  रहते  भी नहीं हैं/थे या ऐसा अभी भी करते रहे  हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि  नहीं तो 0 अंक ।

2. आप ऑफिस आकर निगेटिव  सोच के साथ या अड़ंगा लगाने के ख्याल से फाइलों का निबटारा करते थे , फाइलों को टरकाते थे या ऐसा अभी भी कर रहे हैं  ?  यदि हाँ तो 10 अंक, यदि  नहीं तो 0 अंक ।

3. ऑफिस नहीं आकर भी छुट्टी नहीं लेते थे/ हैं या फर्जी सर्टिफिकेट पर छुट्टी लेते थे/ हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

5. ऑफिस की नौकरी के साथ-साथ कोई और व्यवसाय करते थे/ हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

6. सरकारी मीटिंग नहीं होने पर  भी सरकारी खर्चे से चाय , नास्ता , खाना आदि करते थे/हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक , यदि नहीं तो 0 अंक ।

7. ऑफिस के  समय में ऑफिस का काम छोड़कर अपने काम के लिये बाजार की तरफ जाते थे/ हैं, ताश खेलते थे/ हैं, कम्प्यूटर गेम खेलते रहते थे/ हैं,  दूसरे के साथ बातचीत में समय खपाते थे/हैं , मोबाइल पर मेसेज इधर-उधर करते हैं /थे ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

8 . ऑफिस का लैप टॉप, डेस्क टॉप, तौलिया, गिलास, कप-प्याला, डस्टर, पेन, पेन्सिल, कागज़, कार्ट्रिज, पिन, स्टेपलर, साबुन, फिनायल इत्यादि अपने घर ले आते थे/हैं ?  यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

9.  ट्रान्सफर  में नये स्टेशन पर अपने अधीनस्थों अथवा ठेकेदार से या ऑफिस के पैसे से अपने घर को सजाने जे लिये पलंग, फ्रीज़, सोफे, एसी, परदे, किचेन यूटेन्सिल आदि आप लेते रहे थे/ हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो  0  अंक ।

10. फर्जी  टिकट से एलटीसी बिल, फर्जी  यात्रा भत्ता आदि लेते रहे थे/ हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

11. अपने  विभाग में अपनी गाड़ी भाड़े पर लगाते थे/ हैं अथवा अपने विभाग में ऑफिस के जरूरी सामान अपनी या जान-पहचान वाले की दुकान से  लाभ के लिये या कमीशन के लिये सप्लाई करते  थे/हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

12. यदि आदतन उपर्युक्त कदाचार एक से  अधिक बार या  बार-बार/ कई बार करते रहे थे/ हैं  तो ऊपर उस मद के प्राप्तांक को दुगुना कर दें ।

13.  यदि रिटायर हो चुके  हैं और उपर्युक्त  कदाचार से अर्जित सम्पत्ति के लिये पश्चात्ताप हो रहा है तो ऊपर के  प्राप्तांक को 10% घटा दें । यदि उपर्युक्त अर्जित सम्पत्ति सरकारी खजाने में या जन कल्याणकारी  संस्था में पश्चात्ताप स्वरूप जमा करने की इच्छा रखते हैं तो उपर्युक्त प्राप्तांक 10% और  कम कर दें ।

यदि उपर्युक्त अर्जित संपत्ति सरकारी खजाने में या ईमानदारी पूर्वक समाज कल्याण करने वाली संस्था को दान कर चुके हैं तो उपर्युक्त प्राप्तांक को शून्य कर दें ।

यदि अर्जित सम्पत्ति का कुछ ही प्रतिशत पश्चाताप पूर्वक उपर्युक्त तरीके से दान कर चुके हैं तो प्राप्तांक उतना ही प्रतिशत कम कर दें ।

यदि अभी भी नौकरी रत हैं और ऊपर जैसा लिखित व्यवहार करना  चाहते हैं तो ऊपर जैसी ही गणना करें ।

14. ऊपर प्राप्तांक को आप 2.2 से विभाजित करें, भागफल (ख) के मद में आपके भ्रष्टाचार के इस अतिरिक्त  प्राप्तांक का दूसरा हिस्सा होगा ।

(ग)  क्या आप निम्नलिखित तरीके से भी भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते  हैं  या इनमें भाग लेते हैं तो और अतिरिक्त भ्रष्टाचारी अंक की गणना इस प्रकार कर सकते हैं :

1 . रेलवे रिजर्वेशन के  लिये आपने टीटी को रुपये देकर सीट या बर्थ लिया  या लेते रहे हैं ?  यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

2. बिना टिकट यात्रा ट्रेन या सरकारी बस में आपने की या करते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक , यदि नहीं तो 0 अंक ।

3. ड्राइविंग लाइसेंस, बर्थ सर्टिफिकेट, जाती सर्टिफिकेट  या किसी अन्य प्रकार के सरकारी कागजात बनवाने के लिये आपने ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट या और किसी डिपार्टमेंट को दलाल के मार्फ़त या स्वयं ही  रिश्वत दी है या देते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

4. ट्राफिक रूल तोड़ने पर पुलिस के द्वारा पकड़े जाने पर पुलिस को रिश्वत दी है या देते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

5 . बिना पक्की रसीद के किराने के सामान, कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक सामान, दवाइयां, फर्नीचर, डॉक्टरी परामर्श आपने ली है या लेते रहे हैं ? यदि हाँ तो 10 अंक, यदि नहीं तो 0 अंक ।

6 . यदि आदतन आप ऊपर लिखित कार्य - कलाप करते आ रहे है  कई  अवसरों पर और इसके लिये आपको कोई पश्चात्ताप भी नहीं  है तो ऊपर उक्त मद में  प्राप्त अंकों को दुगुना कर दें । 

7. यदि ऊपर लिखित कदाचार में लिप्त होने का आपको अफ़सोस है तो उपर्युक्त कुल प्राप्तांक को आप 10 % घटा  दें । यदि एंटी करप्शन फ़ाऊण्डेशन जैसी संस्था जॉइन करके भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए कुछ करने की सोच रहे हों तो कुल प्राप्तांक को 20 % और घटा दें ।

8. यदि ऊपर लिखित कदाचार के लिये पश्चात्ताप है और भविष्य में ऐसा फिर नहीं करने का आपने प्रण भी  कर लिया है तो उपर्युक्त प्राप्तांक को 50 % और कम कर दें ।

9.  यदि आपने ऊपर लिखे कोई भी कदाचार नहीं किये हैं तो फिर आपका भ्रष्टाचारी प्राप्तांक शून्य होगा ।

10.  ऊपर प्राप्तांक को आप 1.2 से विभाजित करें, भागफल मद (ग) में आपके भ्रष्टाचार का और तीसरा और अन्तिम हिस्सा होगा ।

यह गणना इस परिकल्पना पर आधारित है कि मद (क) में उल्लिखित सभी कार्य आप ने किये हैं । यदि इस मद में बहुत सारे कार्य आप को विभाग ने करने के लिये दिये ही नहीं तो इस स्थिति में सही आकलन के लिये मान लें कि मद  (क) में सिर्फ x प्रकार  के कार्य  करने पड़े तो मद (क) का संशोधित भ्रष्टाचार प्राप्तांक होगा कुल अंक ÷ 2x÷10 ।

उपर्युक्त गणना के बाद  मद (क) का 70%, मद (ख) का 20% एवं मद (ग) का 10% लेकर योग करें । योगफल  भष्टाचार के 0 से 100  तक  के पैमाने पर  आपका भष्टाचार सूचकांक  होगा । यदि इसे पुनः 100 में से घटा दें तो वह आपका ईमानदारी सूचकांक होगा । 

किसी भ्रष्टाचारी से उम्मीद नहीं कर सकते कि वह ईमानदारी पूर्वक गणना करके अपने भ्रष्टाचारी स्कोर को किसी को बताएगा, फिर भी आप गणना करके अपने मन ही मन में तो समझ ही सकते हैं कि आप कितने भ्रष्ट हैं ।

हम भ्रष्टाचारी सूचकांक की गणना के बाद समझ सकते हैं कि हम अधिकांश मित्रगण ढोंगी हैं । भ्रष्ट तरीकों में लिप्त होने के बावजूद भ्रष्ट तरीकों की निन्दा करते हैं लेकिन ऐसा कोई अच्छा काम करके नहीं दिखाते जिसमें वो  दूसरों के लिये उदाहरण के रूप में पेश किये जायँ । पूरी सर्विस लाइफ भ्रष्टता  में लिप्त होने के बाद रिटायरमेंट की जिन्दगी में दूसरों को उपदेश देते हैं । यही नौकरी रत भ्रष्ट आचरण में लिप्त हम लोगों पर भी लागू होती है ।

 उपदेश ढोंग के अलावा और कुछ नहीं होता । हम मोदी की बातों का समर्थन तो कर  देते हैं लेकिन ऐसा हमारा भूत  या वर्त्तमान नहीं  कि हमारा यह समर्थन कोई प्रभाव छोड़ता हो । हमें हँसी आती है हमलोगों के इन ढोंग भरे व्यक्तित्व या आचरण पर । "सौ चूहे खाकर बिल्ली चली हज को" वाली कहावत पूरी तरह चरितार्थ हो जाती है । हम इस तरह के चरित्र परिवर्त्तन हुए बिल्लियों पर भी भरोसा कर लें इस आशा में कि जो बातें पुराने जमाने में सही न होती हो वह अब हो जाती हो ।  हमने बहुत कम को आत्म - चिन्तन या आत्म - मंथन करके पूर्व कृत्यों पर पश्चाताप करते देखा है । पश्चाताप कैसे कर सकते हैं ? भ्रष्ट तरीकों से जमा की गयी सम्पत्ति का राज खोलें, इसे पूरी तरह सरकारी खजाने में जमा कर दें अथवा समाज सेवा में कार्यरत किसी इमानदार संस्था को दान कर दें एवं शेष जिन्दगी समाज के उत्थान एवं कल्याण के लिये पूर्ण रूप से ईमानदारी एवं निष्ठा पूर्वक समर्पित  कर दें । बेहतर विकल्प है एंटी करप्शन फाउंडेशन जॉइन कर देश और समाज के हित और उत्थान में अपने को अर्पित कर दें।

हम उनको भी देखते हैं जो अभी सर्विस में है भ्रष्ट कारनामों में लिप्त हैं और सदाचार की बातों का समर्थन करते है या सदाचार का उपदेश देते हैं । क्या ये हास्यास्पद बात नहीं है ? जो लेश मात्र भी सदाचार से दूर हैं वैसे लोग किसी भी सूरत में इस तरह की बात न करें तो अच्छा होगा । आइये प्रण करें कि हम भ्रष्टाचारी कृत्यों से अपने को दूर रखेंगे । यदि हमने ऐसा प्रयास  शुरू कर दिया तो फिर इन मुद्दों पर खुल कर बात कर सकते हैं । क्यों हम अपने को ठगें ? क्यों आने वाली पीढ़ी को राह से भटकावें ? यदि देश या समाज का कल्याण हम चाहते हैं तो आज से ही हमें सदाचार की तरफ उन्मुख होना पड़ेगा । हमें ठोस प्रण करना होगा ।

अमर नाथ ठाकुर , 11 दिसम्बर , 2016 , मेरठ , संशोधित 11 दिसंबर, 2024, कोलकाता ।

Sunday, 4 December 2016

सरकारी नौकरी का सच



 सरकारी नौकरी में प्रवेश
 झील में डूबने - उपलाने - तैरने- सी इस जिंदगी की शुरुआत ।
झील का मीठा  पानी
आनन्द का अथाह स्रोत ।
डूबने में आनन्द
उपलाने में आनन्द
पीने में आनन्द
कुल्ला करने में भी आनन्द ।
ओर- छोर से रहित इस झील में
नौका में बैठकर विहार का भी आनन्द ।

 एक रेखा उसी समय खींची हुई थी
इस आनन्द के सीमा की रेखा ।
यह रेखा क्या थी झील के पानी की ऊपरी सतह थी
यही विभाजक रेखा या विभाजक सतह थी ।
 नीचे भ्रष्टाचार , और ऊपर सदाचार ?

 सदाचार के क्षेत्र में
अथवा झील में झील के ऊपर रहकर जीना
है एक मुश्किल काम ।
 सदाचारी की ऐसी जिंदगी कि
 हमेशा पानी में रहना है
तो हमेशा तैरते ही रहना है ।
दृढ इच्छा शक्ति से तय करना है
कि सिर ऊपर रखना है ।

यदि हमेशा भ्रष्टाचार में डूबे रहना है --
तो जिन खोजा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ
और मोतियाँ बटोरते रहिये
आनन्द मनाते रहिये ।

कुछ तो डूबते - उपलाते  हैं इस आनन्द झील में ।
कुछ भ्रष्टाचार और सदाचार के बीच के क्षेत्र में ,
और कुछ सदाचार की शुद्ध प्राण वायु का साँस भी लेते हुए
भ्रष्टाचार के पानी में आकण्ठ आजीवन होते हुए
सदाचार के जामे में हैं ।
और वे लोग कर भी क्या सकते हैं  !

कुछ को फिर एक नौका मिल जाती है
नौका विहार के लिये नहीं
यह होती है दृढ़ निश्चय की एक नौका
जिसमें चढ़ कर वे झील का किनारा खोज लेते हैं
और फिर वे जमीन पर होते हैं ,
जहाँ सिर्फ प्राण वायु की साँस उपलब्ध होती है
सिर्फ सदाचार की गरिमा होती है
पैरों में भ्रष्टाचार के पानी या कीचड़ तक से कोई सरोकार नहीं ,
और वे विशाल भूखण्ड पर पैदल विचरण का बेख़ौफ़ मौका पाते हैं ।
ये लीक से हट कर पक्का सदाचारी होते हैं
इन्हें साँस लेने के लिये सारा जहाँ  मिला होता है ।

वे भी जी लेते हैं सदाचारी की तरह ,
वे जो न तैरना जानते हैं या
जो न तैरना चाहते हैं ,
और जिसे न नौका मिलती है  ।
घुट-घुट कर ये भी नौकरी कर लेते हैं  ।
खामख्वाह उनके ऊपर सन्देह नहीं कर सकते ।

झील का पानी
झील का आनन्द
और सरकारी नौकरी का सच ।



अमर नाथ ठाकुर ,मेरठ , 1 दिसंबर , 2016 ।



Wednesday, 30 November 2016

काला धन और भ्रष्टाचार

दूध वाला सिर पर हाथ रख पेड़ पर बैठे बन्दर के नीचे गुहार लगा रहा था । बन्दर के कब्जे में दूध वाले की कमाई की पूरी पोटली थी । बन्दर ने पोटली खोल ली थी और एक - एक कर के सिक्के गिराना शुरू कर दिया था --- एक सिक्का कुएँ में और एक सिक्का दूध वाले के सिर पर । आधा पैसा दूध वाले को मिला आधा पैसा कुएँ के पानी में गया । दूध वाले को दूध का पैसा मिला और पानी का पैसा पानी में चला गया । दूध वाले को सबक मिल गया था ।

इस कथा से हम सब भारतीय वाकिफ हैं । हम सब यह भी जानते हैं कि फिर दूध वाले ने कसम भी खाई थी इस घटना के बाद कि वह अब दूध में पानी कभी नहीं मिलाएगा । और बचपन में पढ़ी इस कहानी के बाद हम सब ने विश्वास कर लिया था कि उस दूध वाले ने अपने दूध में फिर कभी पानी नहीं मिलाया ।

हाँ , बिलकुल हम बात विमुद्रीकरण ,भ्रष्टाचार और काले धन की ही कर रहे हैं तथा उसके बाद लोकसभा में पेश किये गये वित्त विधेयक की जिसमें कहा गया कि बिना हिसाब के धन की घोषणा पर आधे से ज्यादा सरकार के खजाने में चली जाएगी ।
लेकिन हम बहुत दिनों से सोच यह रहे हैं कि क्या अब अपने यहाँ उस दूध वाले जैसे लोग हैं जिसने बन्दर वाली घटना के बाद फिर से दूध में पानी न मिलाने का प्रण लिया और ऐसा कर दिखाया  ?

यदि आप में किसी के पास इस बात का उत्तर हो तो कृपया जरूर बताइये !

अमर नाथ ठाकुर , मेरठ  28 -11-2016.

Sunday, 6 November 2016

भगवान श्री रामकृष्णदेव ने यह निम्नलिखित रहस्य इतने स्पष्ट ढंग से सबका अनुशीलन करने के बाद बताया । आप दंग रह जाएंगे किन साधारण उदाहरणों से उन्होंने यह बात बतायी .................

"एक व्यक्ति जंगल से बाह्य से आकर बोला , वृक्ष के नीचे एक सुन्दर लाल जानवर देखकर आया हूँ । और एक बोला , मैं तुम्हारे से पहले उसी पेड़ के नीचे गया था – वह तो हरा है , मैं ने अपनी आँखों से देखा है । और एक व्यक्ति बोला , उसे मैं  खूब जानता हूँ  , तुम लोगों  से  पहले मैं गया था – वह नीला है । और दो जन थे । वे   बोले ,  पीला  और  खाकी – नाना रंग का । अन्त में खूब झगड़ा लग गया । सभी समझते हैं , मैं ने जो देखा है , वही ठीक है । उनका  झगड़ा  देखकर  एक व्यक्ति ने पूछा , बात क्या है भाई ? जब समस्त विवरण सुन लिया , तब बोला , मैं उसी वृक्ष के नीचे रहता हूँ ; और वह जानवर क्या है , मैं पहचानता हूँ । तुम प्रत्येक जन जो-जो कह रहे हो , वह समस्त सत्य है ; वह गिरगिट है – कभी हरा , कभी नीला इसी प्रकार नाना रंगों का होता है ! और कभी देखता हूँ , बिल्कुल भी कोई रंग नहीं होता । निर्गुण । ईश्वर साकार भी है निराकार भी । ”

“ तो फिर ईश्वर को केवल साकार कहने से क्या होगा ? वे श्रीकृष्ण की न्यायीं मनुष्य-देह धारण करके आते हैं , यह भी सत्य है ; नाना रूप लेकर भक्त को दर्शन देते हैं , यह भी सत्य है । और फिर वे निराकार , अखण्ड सच्चिदानन्द हैं , यह भी सत्य है । वेद  में उनको साकार , निराकार दोनों ही कहा है ; सगुण कहा है , निर्गुण भी कहा है । ”

अपने शिष्यों से ठाकुर श्री रामकृष्ण कहते थे :

“ मैं ने हिन्दू , मुसलमान , ईसाई सभी धर्मों का अनुशीलन किया है ,  हिन्दू धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों के भिन्न – भिन्न पथों का भी अनुसरण किया है ... मैं ने देखा है कि उसी एक भगवान की तरफ ही सबके कदम बढ़ रहे हैं , यद्यपि उनके पथ भिन्न – भिन्न हैं । तुम्हें भी एक बार प्रत्येक विश्वास की परीक्षा तथा भिन्न – भिन्न पथों पर पर्यटन करना चाहिये । मैं जिधर भी दृष्टि डालता हूँ  उधर ही हिन्दू , मुसलमान , ब्राह्म , वैष्णव व अन्य सभी संप्रदायवादियों को धर्म के नाम पर परस्पर लड़ते हुए देखता हूँ । परन्तु वे कभी इस बात पर विचार नहीं  करते कि जिसे हम कृष्ण के नाम से पुकारते हैं , वही शिव है , वही आद्याशक्ति है , वही ईसा है , वही अल्लाह है , सब उसी के नाम हैं –एक ही राम के सहस्रों नाम हैं । ”

Saturday, 5 November 2016

भ्रष्टाचार का रावण

-1-

भ्रष्टाचार का रावण बहुत गरजता है
यह फौलादी शरीर वाला है
लाल - लाल हैं इसकी आँखें
काली - काली और कड़ी- कड़ी मूंछें
अस्त्र - शस्त्र से  है सुसज्जित
इसके संहारक हथियारों की टंकार से
दिशाएँ थर्रा उठती हैं
जल थल और आकाश दलमलित हो उठते हैं
रुग्ण शरीर वाले विरोध का राम
पसीने से लथपथ भय से काँपता
भागते हुए छुप जाता है पहाड़ी की ओट में
कहता है वो आराम कर रहे हैं
या शक्ति संचय की तपस्या चल रही है
आश्वस्त हैं कि रावण रूपी भ्रष्टाचार का वध होगा , किन्तु समय आने पर ।
अभी तो भ्रष्टाचार सीमा के भीतर ही है
अभी क्या परवाह है !


-2-

भ्रष्टाचारी रावण के प्राण को कोई खतरा नहीं
नाना प्रकार के सुरक्षा कवच प्राप्त यह महादानव
अमृत कलश में सुरक्षित रख अपने प्राण
राज नेताओं तथा न्यायालयों की छाया में
जेड सुरक्षा प्रणाली की लक्ष्मण रेखा की परिधि में
निवास करता है
फलता - फूलता इस भ्रष्टाचारी रावण का साम्राज्य
हम सब को आकर्षित कर लेता है
अब हम लोग इसकी ही पूजा करते हैं

हम सब आकंठ भ्रष्टाचार में ही डूबे हुए उपला रहे हैं
हम लोग आनंद में हैं

तपस्या में लीन राम अभी तक ओझल हैं
वैसे भी भगवान को पाना कितना कठिन है
अब राम की क्या जरूरत है
और अभी क्या परवाह है !

अमर नाथ ठाकुर
मेरठ , 5 नवम्बर , 2016 ।









Wednesday, 2 November 2016

बिहार का चुनाव

बिहार का चुनाव !

वर्षों का कांग्रेसी शासन।कांग्रेसी करते रहे और करते ही रह गये।पूरा न कर पाये।कुछ भी नहीं हुआ और बिहार कराहता रहा ।

कर्पूरी जी भी कुछ करना चाह रहे थे शायद समय ज्यादा न मिला।
एक दशक से ज्यादा उसी समय जातीय संघर्ष का दौर चला - बैकवर्ड-फॉरवर्ड की लड़ाई।जनजागरण जरूर हुआ होगा किन्तु बिहार की शिक्षा व्यवस्था चरमरा गयी। क़ानून-व्यवस्था का गिरता स्तर और बढ़ता भ्रष्टाचार बिहार का पर्याय हो गया।

फिर लालू का युग आया। इन्होंने ने तो जैसे ठान रखा था, कुछ नहीं करना है। और इन्होंने कुछ नहीं किया। बिहार रसातल में चला गया। यही दौर था जब गाली और बिहारी एक दूसरे के समानार्थी होने लग गये। लालू के फूहड़ सस्ते मजाकिये अंदाज ने स्तर और गिरा दिया। अपहरण एक फलता-फूलता व्यवसाय बन गया।

फिर नीतीश का उदय होता है जब कि जनता ने काफी उम्मीदें पाली हुई थीं। कुछ काम बना। जनता ने साँसें लेनी शुरू कर दी थीं। क़ानून-व्यवस्था की हालत सुधरी ,अपहरण कम होने लगे । भ्रष्टाचार भी कम हुआ । सड़क और बिजली के क्षेत्र में भी काम होने  लगे। आंगनबाड़ी,शिक्षामित्र  आदि अनेक तरह की बहालियाँ हुईं। कुछ लाख शिक्षकों की भी बहाली हुई। गुणवत्ता में ये सब खरे नहीं थे । फिर भी इतने रोज़गार पाकर बिहार की जनता में नयी आशा का संचार हुआ। लोग जाति आधारित झगड़े फसाद को भूलने लग गये। किन्तु इन सबका सारा श्रेय नीतीश को ही नहीं दिया जा सकता है, उनके पीछे भारतीय जनता पार्टी का सशक्त समर्थन और सहयोग भी था ।

 किन्तु शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में तो जो भी हुआ उसे ऊँट के मुँह में जीरा समान कार्य ही कहा जा सकता है।
जो हो बिहारियों की घर वापसी शुरू नहीं हुई और न ही बिहारियों का पलायन रुका। लगता है अभी प्रवासी बिहारी कुछ और देखकर आश्वस्त हो लेना चाहते थे। लेकिन बिहार के नसीब में अच्छे दिन नहीं लिखे थे। नीतीश और भाजपा  झगड़ पड़े। बिहार की जनता के हित में ये लड़ाई रोक सकते थे। लड़ाई किन्तु रुकी नहीं। बिहार का दुर्भाग्य जो था ।

 किसकी गलती थी गहराई में अभी नहीं जाना, किन्तु नीतीश का अहंकार जरूर परिलक्षित हुआ।

बिहार के विकास की पटरी उखड़ गयी थी । बिहार तेजी से नीचे की तरफ जाने लगा। नीतीश अपने धुर विरोधी कांग्रेसी और लालू के नजदीक आकर अपनी सरकार के स्थायित्व के लिये ज्यादा मेहनत करने लग गये। बिहार के विकास का एजेंडा गौण हो गया। राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गयी।

नीतीश की गिरती लोकप्रियता का परिणाम यह हुआ कि अगले चुनाव में नीतीश पूरी तरह धराशायी हो चुके थे। नरेंद्र मोदी का भगवा झंडा आसमान में लहरा रहा था। नीतीश ने जनता की  नब्ज़ नहीं पहचानी । उसका अहंकारी मन पराजय को नहीं स्वीकार कर सका।

मांझी को मुख्यमंत्रीत्व सौंप कर एक अनूठा एवं आदर्श उदाहरण पेश करना चाहते थे, लेकिन उनके मन का मैल ऊपर आ गया। वह लालू और सोनिया स्टाइल में मांझी को हांकना चाहते थे। मांझी राबड़ी और मनमोहन से आगे निकले।फिर नीतीश ने अपना असली रंग दिखा ही दिया । नीतीश सत्ता पर फिर से कब्ज़ा कर बैठे। सत्ता का अतीव लालच नज़र आया जनता को नीतीश की कारगुज़ारियों में।

नीतीश के द्वारा लालू का समर्थन लेना सबसे बड़ा पहलू बनता है नीतीश के कमज़ोर राजनीतिक चारित्रिक व्यक्तित्व का। जनता  लालू के जंगल राज को अभी पूरी तरह भूली  भी नहीं थी।जनता के अध पके घाव को नीतीश ने फिर से खरोंच लगा दिया था। स्राव होने लगा।

चुनाव के इस अंतिम चरण में जनता क्या यह समझती है ----

1. कांग्रेसियों के समय में  15 पैसे सरकारी पैसे जनता तक रिस - रिस कर आते थे ।
2. लालू के समय में जनता तक पैसे रिसने बंद हो गए थे।
3. नीतीश के समय में 25-30 पैसे तक जनता तक रिस कर आने लगे थे ।

तो जनता उसको क्यों न मौका दे जो पूरा का पूरा सौ पैसे जनता तक रिस कर आने देने का वादा करे। वैसे भरोसा क्या है ? जो किन्तु फेल हो गये उस पर फिर क्यों का भरोसा।

जनता को यह समझना होगा कि

1. कांग्रेस काम करती रही , करती ही रह गयी और कर ही नहीं सकी।इसलिए कुछ हुआ ही नहीं।
2. लालू ने करना ही नहीं चाहा और इसलिए कुछ नहीं हुआ।
3. नीतीश करना चाह रहे थे लेकिन कर ही नहीं सके।

इसलिए मौका उसे मिले जो अब नया हो , करना चाहता हो। और कोई च्वाइस भी तो नहीं है। बार - बार किसी आज़माए हुए को फिर क्यों आज़माऍं।

जय बिहार !
जय हिन्द !

अमर नाथ ठाकुर
2 नवम्बर ,2015, कोलकाता ।

Tuesday, 1 November 2016

मैं कुत्ता बनना चाहता हूँ


मैं ने देखा एक हकलाता कुत्ता
मालिक के साथ वाक करते हुए
मालिक के साथ समानान्तर चलते हुए
मालिक खड़ा होता है
वह भी खड़ा हो जाता है
मालिक किसी से बात करता है
वह सुनता रहता है
मालिक दौड़ता है
वह भी दौड़ता है
चहलकदमी करते मालिक के साथ
वह कुत्ता भी जमीन सूँघते चलता रहता है
मैं रोज़ देखता हूँ एक हकलाता कुत्ता ....

मालिक के साथ
मालिक की छाया की तरह
मालिक की रक्षा में
मालिक की ढाल बनकर
हर संदिग्ध पर भौंकता है
वह वफादार कुत्ता ...
पूँछ हिलाता जमीन नोंचता
वह नुकीले दाँतों वाला नंगा कुत्ता ....
मैं रोज़ देखता हूँ एक हकलाता कुत्ता .....
मैं रोज देखता हूँ एक वफादार कुत्ता ......

मालिक जब पुकारता है
मालिक जब सहलाता है
कूद पड़ता है पूँछ हिलाते हुए
मालिक के कन्धे पर दोनों पैरों को डालकर
मालिक के होंठों को चूमते हुए
हकलाता हुआ वह समझदार कुत्ता ....


वह मालिक के बच्चे को पहचानता है
वह मालकिन को पहचानता है
और हर अनजाने पर भौंकता है वह सावधान कुत्ता
खुद जागकर मालिक को चैन की नीन्द सुलाता है
वह दमदार पहरेदार कुत्ता ....

क्या पाता है बदले में वह कुत्ता
थाली का जूठन और हाड़-माँस का अवशेष
न कोई सैलरी न कोई बोनस
और न रहता कभी कोई प्रोमोसन का भूखा
फिर भी होता है वह कर्मठ और ईमानदार कुत्ता
वह तंदुरुस्त हँसता मुस्कराता कुत्ता ...
मैं रोज़ देखता  हूँ एक वफादार कुत्ता .....



मैं कुत्ते की कर्त्तव्य निष्ठा , ईमानदारी , वफादारी का कायल हूँ
क्योंकि चोर , उचक्के और डाकू डरते हैं कुत्ते से
आज तक कोई कुत्ता नमक हराम  नहीं हुआ
आज तक किसी कुत्ते पर भ्रष्टाचार
 या विश्वासघात का कोई आरोप नहीं लगा
इसलिये कोई कुत्ता कभी बर्खास्त नहीं हुआ
इतिहास में नहीं कोई ऐसा दस्तावेज़
कि किसी कुत्ते पर कोई चार्जशीट हुआ

आज तक नहीं बनाया किसी कुत्ते ने कोई यूनियन !
अकेला कुत्ता अपना कर्त्तव्य करता रहा
मालिक का खाया नमक चुकाता रहा ।
आज तक नहीं मिला किसी कुत्ते को कोई पद्म पुरस्कार
न कोई सर्टिफिकेट अथवा वीरता का कोई चक्र
जब भी मालिक पर कोई आक्रमण हुआ
पहली गोली कुत्ते ने खायी

इसलिये कुत्ते की मौत पर हर मालिक रोया है ।



आप में से कितने कुत्ता बनना चाहते हैं
छिः मैं यह क्या बोल गया !
यह तो परले दरजे की गाली है
लेकिन इस तिरस्कारी विचार से
कुत्ते को कितना दुःख होता होगा
क्या आपने सोचा है ?
लेकिन मैं ने सोच लिया है
अपनी बात बताना चाहता हूँ
मैं तो कुत्ता बनना चाहता हूँ
अपनी कम्पनी का कुत्ता
क्योंकि मैं कम्पनी के टुकड़ों पर ही तो पल रहा हूँ
फिर क्यों न बनूँ अपनी कम्पनी का कुत्ता
वफादार , कर्त्तव्यनिष्ठ एवं ईमानदार कुत्ता !
फिर मैं भ्रष्टाचारियों पर भौंक पाऊँगा
इसे लूटने वालों को काट खा पाउँगा
जिस दिन हम सब कुत्ते बन जाएँगे
कंपनी रफ़्तार में चलने लगेगा और
तभी हमें हाड़- माँस का लाभांस मिलता रहेगा !!!


अमर नाथ ठाकुर
30 अक्टूबर , 2016 , मेरठ ।






Wednesday, 12 October 2016

अभी क्या परवाह है



-1-

माँ ने अपना कटार नहीं चलाया
माँ आयी और चली गयी
चण्ड-मुण्ड और शुम्भ-निशुम्भ को पुचकार कर
महिषासुर और रक्त-बीज को आशीर्वाद देकर ।
माँ आखिर माँ होती है
दया और करूणा की मूर्त्ति ।
माँ से उम्मीद नहीँ कि अपने कुपुत्रों का तिरस्कार करे
माता कुमाता नहीं हो सकती ।
माँ को आशा है कि उनका पुत्र सुधरेगा ।
और हर बार की तरह इस बार भी विजया दशमी के बाद चांस देकर चली गयी है माँ दुर्गा....

-2-

राम के अग्नि वाण से रावण का पुतला इस बार भी धू-धू कर जला
किन्तु रावण अट्टहास करता फिर बाहर आ गया
शूर्पणखा , कुम्भ - कर्ण और मेघनाद सब धूम-चौकड़ी करते ही रहे
मर्यादा पुरुषोत्तम राम से आशा नहीं कि मर्यादा का उल्लंघन करें
और बात-बात पर तरकश से संहारक वाण निकालें
वह इन्हें  सुधरने का भरपूर मौका दे रहे हैं हर बार की तरह इस बार भी  ।
दशहरे के बाद मर्यादा में रहकर भरपूर चांस देकर विदा लेकर चले गये हैं मर्यादा पुरुषोत्तम राम .....

माँ चण्डी की दया और करुणा और
पुरुषोत्तम राम की मर्यादा
के अधीन ही सब आतंक और लूट-मार है ,
अभी क्या परवाह है ।

अमर नाथ ठाकुर
12 अक्टूबर 2016
कोलकाता / मेरठ ।


Wednesday, 5 October 2016

मैं खुद बॉस बन जाता हूँ



मेरा सीधापन और मेरी दो टूक बातें 
मेरा देहातीपन और मेरा सादा वस्त्र 
तिस पर मेरा साधारण केश विन्यास 
बिना विशेष प्रतिरोध मेरा हाँ में हाँ मिलाना 
मेरा बॉस प्रथम मिलन में ही प्रभावित हो जाता है
मेरी समझ - बूझ या किसी नियोजित ढंग से ऐसा नहीं होता 
मैं तो ऐसा ही हूँ 
मेरा बॉस इसे मेरी कमजोरी समझ 
मुझे गलत आकलित कर लेता है 
और मुझे अपने वाग्जाल में फंसाने की कोशिश करता है 
मैं बॉस के जाल में फँस नहीं पाता हूँ
बॉस मुझे लगाम नहीं पहना पाता है 
क्योंकि मेरा सीधा रास्ता बिना गड्ढे वाला होता है 
मेरा रास्ता शुरू से अन्त तक ले जाने वाला होता है 
 नियमों और ईमानदारी के सपाट मुक्त बंधनों वाला
फिर मेरा बॉस मुझसे नफ़रत करने लगता है 
और शीघ्र अन्तिम मिलन होता है 
 बॉस शुभकामनाओं सहित मुझे गुड बाय बोल देता है 
खबर दूर तक फैल जाती है 
मेरे भावी बॉस से भी मिलन का सारा प्रोग्राम रद्द हो जाता है 
मिलने के पहले ही गुड बाय हो जाता है 
फिर मुझे अरसे तक कोई बॉस ही नहीं मिलता है 
मैं शत-प्रतिशत जन सेवा में नहीं दे पाता हूँ 
क्योंकि मैं इम्प्रैक्टिकल जो हूँ ,
और मेरी कोशिश होती है फिर अकेले चलने की ।
मैं गुनगुनाने लगता हूँ ...
एकला चलो रे 
डाक दिये जदि ना कियो आसे
एकला चलो रे 
और एक दिन मैं खुद बॉस बन जाता हूँ 
मेरा किन्तु फिर कोई सबऑर्डिनेट नहीं होता ।।

अमर नाथ ठाकुर
मेरठ , 2 अक्टूबर , 2016 ।

Tuesday, 20 September 2016

मैं सनातनी हिन्दू हूँ

मैं सनातनी हिन्दू हूँ ।

मैं अद्वैतवादी , द्वैतवादी या विशिष्टाद्वैतवादी में से कुछ भी हो सकता हूँ । इसके लिये मेरे ऊपर कोई भी बन्दिश नहीं है ।

मैं शैव हो सकता हूँ , शाक्त या वैष्णव । मैं कबीर पंथी , नानक पंथी इत्यादि में से कुछ भी हो सकता हूँ । मैं मूर्त्ति पूजक हो सकता हूँ या नहीं भी । मैं मन्दिर पूजा के लिये जा सकता हूँ  या नहीं भी ।  मैं नाना प्रकार के पेड़ों , पक्षियों , जानवरों , नदियों , पहाड़ों की पूजा कर सकता हूँ  या नहीं भी । मैं  व्रत रख सकता हूँ या नहीं भी । मैं मन्त्रों का जाप कर सकता हूँ , नहीं भी ।

मैं शाकाहारी हो सकता हूँ या माँसाहारी भी । मैं नाना प्रकार के जानवरों का माँस खा सकता हूँ  ।  मैं नाना प्रकार की मछलियाँ भी खा सकता हूँ । मुझे समाज वालों ने या धर्म के ठेकेदारों ने समाज या धर्म से निष्कासित या बहिष्कृत नहीं किया या इसकी कोई धमकी भी नहीं  दी ।

मैं मन्दिर जा सकता हूँ , मज़ार , मस्ज़िद , गुरुद्वारे में या चर्च में जाकर ईश्वर की वन्दना कर सकता हूँ । मुझे माथे पर रुमाल या जाली दार टोपी लगाने में ज़रा भी हिचक नहीं होती । मैं धोती या लूँगी या पतलून बेहिचक धारण कर लेता हूँ । इन धार्मिक स्थलों में , इन अजीबोगरीब पोशाकों में मुझे ईश्वर के प्रति निष्ठा या श्रद्धा दर्शाने में कोई संकोच नहीं हुआ । मेरा धर्म कभी इसमें बाधक नहीं हुआ । मुझे सिख , जैन , बौद्ध , मुस्लिम , पारसी , यहूदी या ईसाई धर्मावलंबियों से कोई परहेज़ नहीं । इन सबों से हमारी सनातनी परम्परा ने कभी घृणा या द्वेष नहीं सिखाया । मैं रामकृष्ण , साईं बाबा को सामान दृष्टि से पूजता हूँ  । मैं कई चर्च में जाकर क्राइस्ट के सामने सर नवा कर आया हूँ । मैं अपनी अनेक दिनों की इच्छा पूर्ति के लिये अजमेर शरीफ भी शीघ्र जाना चाहता हूँ । हमारी परम्परा , हमारा धर्म , हमारी संस्कृति हमें ऐसा करने को हमें प्रेरित करते हैं ।

हमारा धर्म घृणा या हिंसा का कभी महिमा - मण्डन नहीं करता । जाति - प्रथा या स्त्रियों के सम्बन्ध में आपत्ति जनक बातों के उल्लेख वाले धार्मिक ग्रंथों के हिस्सों को सनातनी हिन्दूओं ने तहे दिल से नकारा है , तिरस्कृत किया है । इन भागों की खुले आम निन्दा होती है । ऐसी निन्दा या आलोचना पर कभी कोई रोक या धमकी का अहसास नहीं हुआ ।

हमारी सीमित जानकारी में हमारे सनातन धर्म में जिहाद , फतवा या काफ़िर जैसे शब्दों का समतुल्य शब्द नहीं । यदि ऐसा हो तो उसे नकारने या त्यागने में कोई भी प्रतिरोध नहीं । जो सबका है वह सनातन धर्म है । जो सबको स्वीकारता है वह सनातन धर्म है । जो आज़ादी देता है , जहाँ बंधन नहीं , भेद-भाव नहीं ,घृणा या द्वेष नहीं जो सिर्फ प्रेम और विश्वास का पाठ फैलाता है वह सनातन धर्म है । हम यह कहना पसंद करते हैं कि जहाँ प्रेम और करुणा , विश्वास , आज़ादी , श्रद्धा और निष्ठा इत्यादि का वास हो वहीं सनातन धर्म है ।


सिर्फ सनातन हिन्दू धर्म ही सार्वभौमिकता की कसौटी पर खरा उतरता दीखता है । सनातन हिन्दू धर्म में दुनियाँ की अन्य सारी धार्मिक मान्यताओं को आत्मसात करने की क्षमता है ।

अमर नाथ ठाकुर , 23 जुलाई , 2016 , कोलकाता ।

Sunday, 24 July 2016

दोस्ती की बुनियाद

मुझे शंका है
मैं आश्वस्त नहीं हूँ
आखिर हमारी दोस्ती की बुनियाद क्या होगी ?
अभी तक आपने अपनी जाति नहीं बतायी -
अगड़ी , पिछड़ी या दलित ?
किस राज्य के हैं  आप -
उत्तर के , दक्षिण के  या हैं  फिर पूर्वोत्तर के ?
किस धर्म के मानने वाले हैं आप ?
मुस्लिम हैं या सिख , जैन या ईसाई
बौद्ध या फिर हैं हिन्दू सनातनी ?
कौन सी भाषा में हम बतियायेंगे-
अंग्रेज़ी , हिंदी ,गुजराती , पंजाबी , मणिपुरी में
या बंगला , तमिल तेलगू अथवा मलयालम में ?
आप शाकाहारी हैं या माँसाहारी ?
आप गो- मांस का भक्षण करते हैं
बकरे का या सूअर के मांस का ?
आप धोती , लूँगी या पतलून पहनते हैं
जालीदार टोपी , पगड़ी , पाग या पटका बाँधते हैं ?
आप आर एस एस की विचार धारा से प्रभावित हैं
या आई एस आई एस की निन्दा से घबराते हैं ?
आप मोदी भक्त हैं या केज़रीवाल के अनुचर
या हैं कट्टर काँग्रेसी या और कोई दल - बदलू सच्चर ?
क्या ये ही होंगी हमारी दोस्ती की बुनियाद ?

क्या होगी हमारी दोस्ती की बुनियाद !

 भाई एक हमारा देश है और एक हमारी राष्ट्रीयता ,
क्यों न एक हमारी सोच हो क्योंकि एक जैसी हमारी विवशता ।
जब हम सब पीड़ित हैं आतंकवाद से
भ्रष्टाचार  और भाई - भतीजावाद से
गरीबी , बीमारी और अशिक्षा के अवसाद से ;
शंका मिटा दें समान दुश्मनी की बुनियाद पर
 और दोस्त बन जायें इस इक फ़रियाद पर ।


अमर नाथ ठाकुर , 21 जुलाई , 2016 , कोलकाता ।

Tuesday, 31 May 2016

खड़-खड़ ट्राम चले

खड़-खड़ खड़-खड़ ट्राम चले ।

नहीं कोई धुआँ नहीं कोई कूड़ा छोड़ती
ठन-ठन ठन-ठन की घंटी से रास्ता बनाती
यातायात के नियमों का भी पालन करती
मोड़-मोड़ पर , बत्ती-बत्ती पर जब यह रुकती
लोग उतरे और लोग चढ़े ।

खिदिरपुर से जब खुलती
मोमिनपुर को जोड़ती
अलीपुर से भी गुजरती
कालीघाट दिखाती बढ़ती
पर ममता के घर को छोड़ चले ।

बेहाला अब नहीं जाती
हावड़ा भी अब नहीं दिखाती
बड़ा बाजार से अब दूर ही रहती
एस्प्लेनेड का किन्तु चक्कर अब भी मारती
कहीं भी जाओ पांच-छह-सात के बदले ।

बाजार में भी जब बंदी होती
दुकानें भी जब नहीं खुलती
सडकों पर बसें भी नहीं चलती
कलकत्ते की शान ट्राम तब भी चले ।

खड़-खड़ खड़-खड़ ट्राम चले ।

अमर नाथ ठाकुर , 31 मई , 2016 , कोलकाता ।

Sunday, 29 May 2016

भीड़ में सब तत्क्षण है



ये भीड़ थमती नहीं
क्योंकि ये भीड़ थकती नहीं ।

ये भीड़ कमती भी नहीं
इसमें किसी की चलती नहीं ।

 यहाँ न कोई भ्रम है
चाहे न कोई क्रम है ।

जहाँ हर कोई बोलेगा
जहाँ न कोई सुनेगा ।

लोग नहीं यहाँ बिछुड़ते हैं
क्योंकि यहाँ तो लोग जुड़ते हैं ।

यहाँ लोग अनजान मिलेंगे
लोग पहचान के भी मिलेंगे ।

 यहाँ नहीं कोई खून-खराबा होता
तो भी यहाँ शोर-शराबा होता ।
यहाँ होता है कुतूहल पूर्ण कोलाहल
और उत्तेजना पूर्ण बरबस हलचल ।

यहाँ भीड़ में जेब कतरे होते हैं
इसमें लोग साफ़ सुथरे भी होते हैं ।

भीड़ में कौन किसकी सुनता है
जब कोई खुद की नहीं गुनता है ।

यहाँ लोग बहकते हैं
किन्तु लोग नहीं दहकते हैं ।

यहाँ भीड़ भी सहमती है
क्योंकि भीड़ में सहमति है ।

लोग जब साथ में होते हैं
लोग तब ठाट में रहते हैं ।

यहाँ की भीड़ मुझे हमेशा  भाती है
नहीं यहाँ कोई भेद-भाव सताती है ।

यहाँ न जान का खतरा होता है
क्योंकि यहाँ न मान का बखरा होता है ।

लोग यहाँ भीड़ में नहीं झगड़ते
क्योंकि यहाँ बातों पर नहीं भड़कते ।

भीड़ की  नहीं कोई जाति है
भीड़ का नहीं कोई धर्म ।
क्षण कुछ भीड़ में बिताओ
जान लोगे  भीड़ का मर्म ।

भीड़ में सब तत्क्षण है
इसलिये नहीं कोई आरक्षण है ।

क्या गाऊं यहाँ के भीड़ की महिमा
क्या दूँ यहाँ की भीड़ को उपमा ।

(हावड़ा और सियालदह स्टेशन की भीड़ से प्रेरणा पाकर)

अमर नाथ ठाकुर , 7 नवम्बर  , 2015 , कोलकाता ।





Friday, 27 May 2016

दो खूँटियाँ


             --1--

मेरे कमरे की दीवार पर गड़ी है दो खूँटियाँ
बरबस ध्यान जाता है इन पर
उखाड़ फेंकने के ख्याल से इन पर पत्थर चलाया
फिर हथौड़ा चलाया
कुछ हिला पर उखड़ा नहीं
उखाड़ सकता हूँ पर प्लास्टर का एक हिस्सा निकल आएगा
और दीवार बदरंग दीखने लगेगा ।
चाहे कुर्सी पर बैठे हुए में
या बेड पर सोते समय हर-हमेशा यह ध्यान खींचता है
मेरे दिमाग की किरकिरी बन गयी ये दो खूँटियाँ ।
एक ख्याल आया --
एक में मैंने गणेश जी की प्रतिमा
और एक में घड़ी लटका दिया ।
एक के सामने सिर झुका कर खड़ा होता हूँ ,
और दूसरे के सामने सिर उठा कर देखता हूँ ।
इन दो खूँटियों ने मुझे बताया
सिर झुकाने से सिर उठाने के बीच का दर्शन ।

                          --2--

ऑफिस में भी समय की दो खूँटियाँ हैं
दश बजे पहुँचने के लिये और साढ़े पाँच तक रुकने के लिये ।
सभी कर्मचारी और अधिकारी गण इन दो खूँटियों से परेशान रहते हैं ।
अक्सर दश बजे के पास ऑफिस पहुँच जाता हूँ
उस समय करीब- करीब अकेला ही होता हूँ
कमरा खोलता हूँ , रोशनी के लिए बल्ब जलाता हूँ
ए सी ऑन करता हूँ
टेबुल पर से फाइलों को सरकाकर
लैप टॉप रखने का जगह बनाता हूँ ।
सफाई वाले का इंतज़ार किये बिना फाइलों में डूब जाता हूँ ।
घंटे भर बाद गहमा- गहमी शुरू हो जाती है
ऑफिस लोगों से भर जाता है
गप्पों और फोन कॉल की आवाज से एक खुशनुमा माहौल बनता है ।
ऑफिस टाइम खत्म होने के घंटा भर  पहले
 यह गहमा- गहमी खत्म - सी हो जाती है ।
साढ़े पाँच की खूंटी के पहले मैं अटका रहता हूँ
साढ़े पाँच बजे जब निकलता हूँ हॉल लगभग सुनसान - सा हो जाता है
इक्का-दुक्का कर्मचारी कोई अपना बैग बाँध रहा होता है
कोई अपने फाइल समेट रहा होता है ।
मैं ऑफिस की एक -सी स्थिति देखता हूँ
जैसा आते समय वैसा ही जाते समय ।
कर्मचारी गण इन खूँटियों के बीच ही रहते हैं--
पहली खूँटी के बाद आना और दूसरी खूँटी के पहले चला जाना ।
मैं भी इन खूँटियों को मानता हूँ --
पहली खूँटी पर आना और दूसरी पर जाना ।
ऑफिस का जीवन
इन दो खूँटियों के बीच का दर्शन ।


                      --3--

हर किसी के जीवन में दो खूँटियाँ होती हैं
हर किसी का जीवन इन्हीं दो खूँटियों के बीच उपलाता रहता है
एक खूँटी से दूसरी खूँटी तक ।
किसी को ये खूँटियाँ चुभती हैं
किसी को नहीं चुभती है ।
इन खूँटियों के पहले या
 इन खूँटियों के बाद का कोई मतलब नहीं होता ।
जन्म - मरण रूपी दो खूँटियाँ ।
जन्म के बाद से मरण के पहले तक ।
सुख और दुःख की दो खूँटियाँ
दिन और रात की दो खूँटियाँ
सूर्योदय और  सूर्यास्त की दो खूँटियाँ
धरती और आकाश की दो खूँटियाँ
होने और नहीं होने की खूँटियाँ ।
शुरू और अन्त की खूँटियाँ ।
सब कुछ इन्हीं दो खूँटियों के बीच समायी होती है ।
यही है इन दो खूँटियों का दर्शन ।


अमर नाथ ठाकुर , 26 मई , 2016 , कोलकाता ।








Monday, 23 May 2016

रोज होली है



कभी रोकर , कभी रुलाकर
कभी हँस कर , कभी हँसा कर
कभी तोड़ कर कभी जोड़ कर
रंग-बिरंगी बोल कर टरकाना


कभी रंग-बिरंगी बातें
कभी रंग - बिरंगी करामातें
फिर कभी रंग-बिरंगी कातिलाना फँसाना

कभी सच बोलकर
कभी झूठ बोलकर
कभी निभाना फिर कभी बरगलाना

कभी रंग-बिरंगी पोशाक में
कभी रंग-बिरंगी मुखाकृति में
कभी रंग-बिरंगी चाल चलना
फिर कभी दौड़ना फिर कभी रुक जाना

कभी साथ चलकर
कभी दूर-दूर हंट कर
कभी पुचकारना कभी दुत्कारना
कभी अपनाना फिर कभी छोड़ जाना

कभी रोग देना कभी दवा देना
कभी सजा देना कभी बिखरा देना
दिन होना फिर कभी रंग-बिरंगी रात हो जाना

कभी क्रमबद्ध कभी असम्बद्ध होना
कभी प्रतिबद्ध कभी पथ भ्रष्ट होना
कभी रंग का बदरंग होना
कभी बिना रंग का सब रंग होना

इस रंग-बिरंगी दुनियाँ में
लोगों की रंग-बिरंगी जिन्दगी
यहाँ तो रोज होली है
रंगों में सराबोर लोगों की बानगी ।


अमर नाथ ठाकुर , 14 मई , 2016 , कोलकाता ।

Friday, 25 March 2016

लघु कविताएँ



1॰ प्रजातंत्र

अपना बाज़ार
अपनी दुकान ,
अपने ग्राहक
फिर भी नुकसान !

2. जातिवाद 

अपना कुनबा  
अपनी जाति ,  
अपनी ही संतति
फिर भी नहीं सदगति !

3॰ परिवारवाद / क्षेत्रवाद
  
अपना क्षेत्र
अपनी पार्टी
अपनी सरकार
अन्य की क्या सरोकार ।

4. माल्या और बैंक

अपनी टीमें
अपने कप्तान
अपने सब खिलाड़ी ,
तो फिर किसका गोल
और किसकी बाज़ी ?

5॰ कन्हैया की आज़ादी

न जाति  अर्जित
न गरीबी उपार्जित
तो क्यों बोले उत्पीड़न पोषित ?
न अपनी धरती
न अपना आकाश  
न अपना कोई जहान
फिर भी उन्मुक्त उड़ान ।

6॰ राहुल गांधी

खुद ही डॉक्टर
खुद ही बीमार
किसकी दवाई
से हो अब उपचार ?

7. अराजकता

अपना कोर्ट
अपने जज से भरा ,
तिस पर अपने वकील की बहस
तो फिर किस बात की सज़ा ?

8. लालू की सरकार

अपनी गाड़ी
अपना ड्राइवर
अपने यात्री
न अन्य  किसी को चढ़ाना
न किसी को उतारना
गाड़ी चले न चले
अपना पेट पले ।


 अमर नाथ ठाकुर , मार्च 2016 , कोलकाता । 

मैं हर पल जन्म नया लेता हूँ

 मैं हर पल जन्म लेता हूँ हर पल कुछ नया पाता हूँ हर पल कुछ नया खोता हूँ हर क्षण मृत्यु को वरण होता हूँ  मृत्यु के पहले जन्म का तय होना  मृत्य...