Saturday, 23 February 2013

क्षणिक सोचें



क्षण कराहते,
क्षण – क्षण कराहते,
क्षण – क्षण की इंतजारी में,
जीवन भर की यारी में.

होती क्षण भर की भी समझदारी
तो क्यों होती क्षण – क्षण की बेकरारी ,
और फिर क्षण –क्षण न पड़ती बेड़ी .
क्षण न घायल होते,
यदि क्षण भर भी कायल होते .

क्षण भर का संयम ,
क्षण भर का चिंतन ,
दूर करे
क्षण – क्षण का      ताप,
क्षण – क्षण का विलाप ,

क्यों फिर क्षण – क्षण से ऊब हो,
क्यों क्षण – क्षण का भी युग हो .

क्षण –क्षण बदलती  तस्वीर .
क्षण-क्षण बदलता चरित्र .
तस्वीर का चरित्र कौन पढ़ पाता .
चरित्र का तस्वीर कौन खींच पाता .
ये क्षण अनमोल है .
ये क्षण-क्षण का बोल है .


अमर नाथ ठाकुर , १ फरवरी , २०१३ , कोलकाता .

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