Friday, 11 April 2014

हमारी पार्टियां

कभी कालिमामयी
कभी रक्त-रंजित-सा  हुआ पंजा  
कीचड़ में लथपथ विद्रूप कमल । 

धुआँ छोड़ता फूटे शीशे वाला लालटेन
घूमी हैंडिल वाली पंकचर हुई साइकल ।

संगमरमरी पत्थर के बोझ से लदा हाथी पागल ।

निशाने से बेखबर तीर
जनता का सिर फोड़ता हथौड़ा
जेब काटता फसल लूटता  हँसुआ
सूख-सूख कर कृषकाय हुआ- सा तृण दल ।



अस्थि –पंजर लंगोट धारी के कंधे पर लटका एक हल । 
कचड़े के अंबार में बेतरतीब फंसा झाड़ू का कौशल । 

हमारी पार्टियाँ अपनी चुनाव चिह्नों के अनुरूप , 
चुनावी दंगल में उड़ा रही पार्टियाँ वोटरों को चूस-चूस । 



अमर नाथ ठाकुर , 10 अप्रैल, 2014 , कोलकाता । 

4 comments:

  1. Bhai kya abhivyakti hai lekhni mein..Shabaash Masal Jalti Rahni Chahiye

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    1. धन्यवाद , नलिन भाई ! आप हौसला बढ़ाते रहें और हम कुछ - कुछ लिखते रहेंगे ।

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  2. सटीक कटाक्ष ! मगर यही राजीनीति की गुणधर्म बन गयी है!

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    1. नरेन्द्र जी , धन्यवाद कमेन्ट के लिए !

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