झूठ ,फरेब और भ्रष्टाचार ---
यही हमारा अब व्यवहार ---
हिंसा , लूट और बेईमानी ---
जैसे ये 'गुण' हो गए हों खानदानी ---
ह्त्या , अपहरण और चोरी ---
बनी हमारी बेवशी और लाचारी ---
फिर ईर्ष्या , द्वेष और घृणा ---
इनके बिना -
हमने माना -
नहीं संभव सामाजिक ताना -बाना -----
यही बनते मील -स्तंभ ,
यही रास्ते 'आकाश' के---
यही सफलता -सूत्र
और कुंजी आज विकास के -----
नैतिकता जल रही , धरोहर हम गँवा रहे ----
भटक -भटक किधर हम जा रहे ---
अमर नाथ ठाकुर
२८ जनवरी ,२०१२.
उच्च भाव और अच्छी सोच अच्छा प्रयास
ReplyDeleteकभी फ़ुर्सत मिले तो गरीब के ब्लाग पर भी तशरीफ़ लाएं तो और खुशी होगी
www.akpathak3107.blogspot.com
सादर
आनन्द.पाठक
सर ,
ReplyDeleteसदा आपके आशीर्वचनों के आकांक्षी !
आपका चेला ,
अमर नाथ ठाकुर .