भागती बस ने दर्जनों को कुचला
तो मन पिघला
क्योंकि कुचली लाशों में सब अपना ही नजर आया रे –
हाथ फैलाए भीख माँगते बुजुर्गों की होती देखी फजीहत
तो मन को मिली कोई नसीहत
क्योंकि सब अपना ही नजर आया रे –
पहले ही तिरस्कृत
फिर निष्कासित
लाठी पर लटकी वृद्धा को देख –
मन बिलखा रे ----
क्योंकि फिर उसमें अपना ही नजर आया रे ---
लुटती महिला, पिटता नौकर
नंग-धडंग अनाथ बच्चे
दीन-हीन भूखे गँवार
जो देखीं थर्रायी पथरायी आँखें हजार
पुनः रोया जार-जार ---
क्योंकि सब में अपना ही अपना नजर आया रे ---
इसलिए आज मन रोया रे !!!
इसलिए आज मन रोया रे !!!
अमरनाथ ठाकुर , १२ नवंबर २०१०.
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