तुम अव्यक्त , अकथ्य जैसे तुम अतीत --
तुम अमूल्य , अशेष , ओ मेरे मीत --
पावन जल से अभिसिक्त , सिन्दूर से अभिभूत --
तुम्हारी कजरामय पलकें देख हुआ अविभूत -----
आओ सखे ! नीहार लूँ जी भर --
ठमक मत , ओ सौन्दर्य की आकर -
तुम ही तो लक्ष्य , सृष्टि का सत्य -
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तुम ही पाथेय , तुम ही अमरत्व --
तुम्हारा सान्निध्य , तुम्हारा स्पंदन -
तुम्हारी चाहत का अनेक अभिनन्दन --
नील नभ , नील सागर , विशाल भूखंड , सब तेरे संग --
सर्वव्यापी पवन -सदृश , प्राण प्रिये ! तुम अखण्ड, तुम अखण्ड !!!!!
अमरनाथ ठाकुर , १९९६
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