तुम हमेशा आती हो निर्बाध , अविराम -
तुम विश्वसनीया , मेरे नयनाभिराम -
मन्द-मन्द , कोमल -कोमल , हे पावन -पवन -
घट-संग जैसे , ठुमक - ठुमक वन उपवन -
साथ में सुहाग रंग और मनोहारी मादक श्रीखण्ड-
नीहारूं , दौडूँ , भटकूँ , अलिप्त , मैं पाखण्ड -
मैं जानूँ , तुम आगे - पीछे , तुम अगल - बगल , तुम आर - पार -
तुम यत्र तत्र , तुम सर्वत्र , फिर भी ये अमिलन हे पवन मिलनसार ---
अमरनाथ ठाकुर , १९९६ .
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