Thursday, 8 December 2011

अमिलन





तुम हमेशा आती हो निर्बाध , अविराम -

तुम विश्वसनीया ,         मेरे नयनाभिराम -


मन्द-मन्द , कोमल -कोमल , हे पावन -पवन -

घट-संग जैसे , ठुमक - ठुमक         वन उपवन -


साथ में सुहाग रंग और मनोहारी मादक श्रीखण्ड-

नीहारूं ,  दौडूँ ,  भटकूँ ,  अलिप्त ,   मैं     पाखण्ड -


मैं जानूँ , तुम आगे - पीछे , तुम अगल - बगल , तुम आर - पार -

तुम यत्र तत्र , तुम सर्वत्र , फिर भी ये अमिलन हे पवन मिलनसार ---




अमरनाथ ठाकुर , १९९६ .

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